नई दिल्ली ने आख़िरकार कश्मीर के राजनीतिक दलों के लिए खोले बातचीत के दरवाज़े

श्रीनगर: तक़रीबन दो सालों तक दरकिनार रहने के बाद जम्मू और कश्मीर के ये राजनीतिक दल 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार नई दिल्ली के साथ फिर से बातचीत की शुरुआत करने जा रहे हैं।
नेशनल कॉन्फ़्रेंस (NC) सहित पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और जम्मू और कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ़्रेंस (JKPC) जैसे तमाम राजनीतिक दल इस दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में सबसे सख़्त विपक्षों में से एक का गवाह बने हैं, हालांकि बीजेपी इन क्षेत्रीय दलों में से हर एक पार्टी के साथ कभी न कभी एक पूर्व सहयोगी के तौर पर काम करती रही है। सैकड़ों अन्य लोगों के साथ मज़बूत नेशल कांन्फ़्रेंस और पीडीपी सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को धारा 370 के निरस्त होने से पहले हिरासत में ले लिया गया था। भाजपा की तरफ़ से सामूहिक गिरफ़्तारी का वह क़दम इस क्षेत्र के कथित विशेष दर्जा के छीन लिये जाने के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के विरोध की आशंका को नाकाम करने के लिए उठाया गया था।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि तक़रीबन दो साल बाद तमाम पार्टियां– जिनमें पूर्व पीडीपी मंत्री अल्ताफ बुखारी की अगवाई में नवगठित ‘अपनी पार्टी’ शामिल है और जिसे 'किंग्स पार्टी' के तौर पर ज़्यादा अहमियत दी जाती है–24 जून को राष्ट्रीय राजधानी में शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व से मिलेंगी।
5 अगस्त के फ़ैसले के ख़िलाफ़ पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) नाम से बने एक राजनीतिक मोर्चे की तरफ़ से तक़रीबन छह महीने तक निष्क्रिय रहने के बाद श्रीनगर में एक बैठक का आयोजन किया गया और उसके बाद ही यह स्थिति सामने आयी है। औपचारिक रूप से पिछले ही साल वजूद में आये पीएजीडी पर भाजपा नेतृत्व की तरफ़ से हमले किये जाते रहे हैं और यहां तक कि गृह मंत्री की ओर से इसे "गुपकार गैंग" भी कहा गया था, जिस सिलसिले में पीएजीडी घटकों ने बड़े पैमाने पर उनकी आलोचना भी की थी।
हालांकि, पीएजीडी के नवनियुक्त प्रवक्ता भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद युसूफ़ तारिगामी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें इस तरह के किसी भी घटनाक्रम की "जानकारी नहीं" है। लेकिन, कई दूसरे लोगों ने उम्मीद जतायी है कि नई दिल्ली संभवत: बातचीत का दरवाज़ा खोले, ताकि इस क्षेत्र में एक नई राजनीतिक प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त हो सके।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक राजनेता ने बताया, “ऐसे संकेत और दृष्टांत मिल रहे हैं, जहां से रचनात्मक जुड़ाव के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। मुझे लगता है कि दिल्ली के नेतृत्व को भी यह अहसास हो गया है कि जिस तरह से कश्मीर के साथ निपटा जा रहा है, वह तरीक़ा लंबे समय तक नहीं चल सकता...अब राजनीतिक तबकों की भागीदारी होनी चाहिए।”
पीएजीडी अध्यक्ष नेशनल कान्फ़्रेंस के नेता फारूक़ अब्दुल्ला ने इस मोर्चे के 9 जून को हुई पिछली बैठक के बाद इसी तरह की सम्मति जतायी थी। अब्दुल्ला ने कहा था, "अगर वे (नई दिल्ली) हमें बुलाते हैं, तो बातचीत में शामिल होने का दरवाज़ा हमने बंद नहीं किया है। हमारे विकल्प खुले हुए हैं, जो लोगों के हित में होगा, हम वह सब करेंगे।"
पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती ने पीटीआई से कहा, "नई दिल्ली के साथ बातचीत को लेकर कोई स्पष्ट एजेंडा तो नहीं है। हालांकि, मैंने अपनी पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (PAC) से इस पर चर्चा करने को लेकर बैठक आयोजित करने के लिए कह दिया है।"
कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक नेतृत्व और नई दिल्ली के बीच की यह ताज़ा बातचीत की बात जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के एक और संभावित विभाजन और इस क्षेत्र में राज्य दे दर्जे की आंशिक बहाली के ज़बरदस्त अटकलों के बाद सामने आयी है। हांलांकि बाद में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इन अटकलों के दावे पर विराम लगा दिया था। फिर भी, कई लोगों का मानना है कि इसमें कई सारी बातें तो हैं।
दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक जम्मू और कश्मीर में जब से केंद्र सरकार ने कई राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव किये हैं, तब से यहां के हालात बेहद तनावपूर्ण रहे हैं। केन्द्र सरकार ने यहां कई बदलाव तो मनमाने ढंग से किये हैं, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का क़दम भी शामिल है। पीएजीडी से जुड़ी पार्टियां इस क्षेत्र की 5 अगस्त से पहले की स्थिति की बहाली की मांग भी तभी से करती रही हैं, यह एक ऐसी मांग है, जिसे पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच किसी भी औपचारिक बातचीत से पहले एक पूर्व शर्त के रूप में रखी है।
श्रीनगर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता का कहना है, “राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाजिब है और सभी पार्टियां और कारोबारी जगत, नागरिक समाज और यहां तक कि प्रभावित होने वाले बाहरी लोग भी इसकी मांग करते रहे हैं। इसलिए, राज्य का दर्जा बहाल होना तो तय है।"
पिछले महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि दोनों पड़ोसियों के बीच बातचीत के बीच का गतिरोध तभी ख़त्म हो सकता है, जब नई दिल्ली 5 अगस्त के अपने फ़ैसले को वापस ले ले और कश्मीर की अर्ध-स्वायत्तता की स्थिति को बहाल करे। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के अध्यक्ष वोल्कन बोज़किर ने इन दोनों देशों से उन क़दमों से "बचने" के लिए कहा था, जो पूरे जम्मू और कश्मीर क्षेत्र की स्थिति को बदल दे।
राजनीतिक दलों का मानना है कि "बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव" और जमीन पर लक्ष्यों को "हासिल नहीं कर पाने की नाकामी" ही इन पार्टियों के साथ केंद्र के फिर से जुड़ाव में अहम भूमिका निभा रही है, जिसका ‘इल्ज़ाम’ लगाने की कोशिश वे सालों से करते रहे हैं।
उस राजनीतिक कार्यकर्ता का कहना है, “चल रही उस परिसीमन प्रक्रियाओं को लेकर कई आशंकायें हैं, जिन्हें सुचारू रूप से लागू करने को लेकर स्थानीय नेताओं के समर्थन की ज़रूरत है। यह फ़ैसला किसी और तरह के प्रशासनिक फ़ैसले की तरह नहीं है, इससे आने वाले दिनों के राजनीतिक नतीजों पर असर पड़ेगा।”
‘अपनी पार्टी’ के नेता अल्ताफ़ बुखारी, जिन्हें इस बैठक में आमंत्रित किए जाने की उम्मीद है, उन्होंने इस घटनाक्रम का "स्वागत" किया है। उन्होंने एक स्थानीय समाचार एजेंसी, केएनओ से कहा है, “हम तो खुले तौर पर कहते हैं कि हमारा दिल्ली से रिश्ता है। जम्मू-कश्मीर की समस्याओं का समाधान नई दिल्ली में है, न कि इस्लामाबाद, न्यूयॉर्क या लंदन में है।
भले ही दिल्ली ने नेशनल कान्फ़्रेंस और पीडीपी जैसी "वंशवादी पार्टियों" सहित बाक़ी राजनीतिक दलों के साथ 'विश्वास निर्माण' की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी हो, लेकिन यह देखा जाना अभी बाक़ी है कि इस क्षेत्र में 'शांति वार्ता' को लेकर क्या बीजेपी हुर्रियत कान्फ़्रेंस के प्रति अपने रुख़ में बदलाव कर पायेगी या नहीं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
https://www.newsclick.in/after-stonewalling-new-delhi-opens-doors-kashmir-political-parties
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।