बिहार: चुनावों की घोषणा होने के चंद घंटों के भीतर गांव ने किया विधानसभा चुनाव का बहिष्कार

भिट्टी, कैमूर: मोहनिया विधानसभा सीट की भिट्टी पंचायत के एक 60 साल के ग्रामीण ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा "हमारे विधायक मर चुके हैं।"
भिट्टी और उसके आसपास के गांव वालों ने अगले विधानसभा चुनावों को बॉयकॉट करने का फ़ैसला लिया है। यह फ़ैसला उन वायदों को पूरा ना करने के चलते लिया गया है, जिनके तहत रेलवे अंडरपास बनाने और राष्ट्रीय राजमार्ग 19 (दिल्ली-कोलकाता ग्रांड ट्रंक रोड) तक रोड बनाने की बात कही गई थी। गांव वालों के मुताबिक़, मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग होने के चलते हर साल 25-30 लोगों की दुर्घटनाओं में मौत हो जाती है, बता दें यहां पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर के बेहद व्यस्त पांच समानांतर ट्रैक हैं।
चुनाव बहिष्कार के फ़ैसला की घोषणा, गांव के बाहर और अंदर पोस्टर छापकर की गई। यह घोषणा चुनावों की घोषणा के 48 घंटे के भीतर कर दी गई। गांव वालों को किसी स्वास्थ्य आपात के लिेए 10 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है, वहीं बच्चों को स्कूल जाने के लिए ख़तरनाक रेलवे ट्रैक को पार करना होता है।
मोहनिया में पहले चरण में मतदान होगा।
भिट्टी ग्राम पंचायत के एक निवासी प्रभु नारायण कहते हैं, "हमारे लिए कोई सड़क तक मौजूद नहीं है, जबकि हम पिछले 50 साल से इसकी मांग करते आ रहे हैं। यह मांग जगजीवन राम के जमाने से हो रही है। हमने कई आवेदन लगाए, लेकिन किसी पर सुनवाई नहीं हुई। अब हमने आगे वोट ना डालने का फ़ैसला किया है।"
भिट्टी ग्राम पंचायत में बरहौली, भोपतपुर, करिगांव, केवराही, ममरेजपुर, पांडेपुर, पुसौली और रसूलपुर समेत 10 गांव आते हैं। जलशक्ति मिशन पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक़ भिट्टी ग्राम पंचायत की आबादी 9,000 से भी ज़्यादा है।
पास के गांव के किसान रामानंद सिंह से जब हमने पूछा कि पिछले पांच सालों में मोहनिया विधायक ने क्या किया, तो उन्होंने अपने हाथ बांधते हुए कहा, "कुछ नहीं किया! विधायक ने एक बार गांव वालों से कहा था कि अंडरपास प्रोजेक्ट पास हो चुका है, लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है।"
स्वास्थ्य आपात की स्थिति में मीलों पैदल चलना होता है
जब इन गांवों के लिए स्वास्थ्य आपात की स्थिति बनती है, तो इनमें से ज्यादातर लोग तखत पर मरीज़ को लेकर रेलवे ट्रैक पार करते हैं, ताकि मुख्य सड़क तक पहुंच सकें, जहां से मोहनिया का सब डिवीजनल हॉस्पिटल सिर्फ 10 किलोमीटर रह जाता है।
अपनी उम्र के चौथे दशक में चल रही संजू देवी को जब भी कुछ खरीदना होता है, तो वह अपनी बेटी के साथ दो किलोमीटर पैदल चलकर जाती हैं। वह केवल रेलवे क्रॉसिंग चाहती हैं, ताकि उनका परिवार और बच्चे सुरक्षित रह सकें।
गांव वालों के लिए अपने घर पहुंचने के लिए 15 फीट चौड़े 400 मीटर लंबे कंक्रीट ट्रैक का सहारा है, इसके बाद उन्हें ईंटो की रोड पर चलना पड़ता है, जहां आम दिनों में भी चलने में दिक्कत आती है। बरसात की दिनों की स्थिति तो कोई सोच भी नहीं सकता।
यह केवल 4-5 गांवों की स्थिति है, इसलिए मायने नहीं रखती
गर्व के साथ खुद को भिट्टी पंचायत का मुखिया बताने वाले असलम अंसारी फोन पर न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "यह केवल चार, पांच गांवों की बात है, इसलिए यह कोई समस्या नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा, "हमने दूसरे विभागों को भी पत्र लिखा है, लेकिन इस काम में कुछ वक़्त लगेगा। अब जब आचार सहिंता लागू हो चुकी है, तो यह करना कैसे संभव है।"
जब हमने उनसे उनकी पत्नी शहीदन बीवी के बारे में पूछा, जो असल में चुनी हुई मुखिया हैं, असलम कहते हैं, "मैं उनका कामकाज देखता हूं, वह बस प्रधान हैं।"
यह मेरे हाथ में नहीं है, वो लोग झूठ बोल रहे हैं: विधायक
बॉयकॉट के बारे में बात करते हुए बीजेपी के मौजूदा विधायक निरंजन राम ने न्यूज़क्लिक से कहा,"सबकुछ झूठ है। मैंने इलाके में बहुत सारा विकास किया है। मैंने सड़कें बनवाई हैं और गांव में सबकुछ किया है।" हालांकि न्यूजक्लिक को गांव में कंक्रीट की सड़क दिखाई नहीं दी।
निरंजन राम आगे कहते हैं, "मैं अंडरपास नहीं बनवा पाया, क्योंकि उसमें रेलवे विभाग की अनुमति लगती है। मैंने इस बारे में पत्र भी लिखा है। मैं वह चीजें नहीं कर सकता, जो मेरे हाथ में नहीं हैं। मैं अपनी विधायक निधि का पूरा पैसा भी सिर्फ गांवों के विकास पर खर्च नहीं कर सकता।"
जब हमने उनसे भिट्टी की अंतिम यात्रा के बारे में पूछा, तो उन्होंने लापरवाही से जवाब देते हुए कहा, "मुझे याद नहीं कि कब मैं गया था। मैं पटना में टिकट के लिए आया हुआ हूं और इस बेकार के मुद्दे पर बात करने के लिए मेरे पास वक़्त नहीं है।"
भारत में रेलवे से जुड़ी दुर्घटनाएं
रोड के ना होने से गांव वालों को दुर्घटना का खतरा बना होता है। रेलवे ने 2018-19 में 16, 2017-18 में 28 और 2016-17 में 195 मौतें दर्ज की थीं।
1990 से 1995 के दौरान हर साल औसत तौर पर 500 से ज़्यादा दुर्घटनाएं हुईं। जिनमें 2400 के करीब मौतें हुईं और 4300 से ज्यादा घायल हुए। एक दशक बाद 2013 से 2018 के बीच हर साल 110 औसत दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें औसतन 990 लोग हर साल मारे जाते रहे और 1500 लोग घायल हुए। यह आंकड़े PTI के पास उपलब्ध जानकारी के आधार पर हैं।
रेलवे मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़, 2009-10 में 65, 2010-11 में 48, 2011-12 में 54, 2012-13 में 53, 2013-14 में 47, 2014-15 में 50, 2015-16 में 29 2016-17 में 20, 2017-18 में 10 और 2018-19 में 3 दुर्घटनाएं मानव रहित क्रॉसिंग की वज़ह से हुईं। वहीं 2016 से 2018 के बीच 32,000 जानवरों की मौतें हुई हैं।
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Within Hours of Election Announcement, Bihar Village Boycotts Assembly Polls
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