किसने कहा है कि सिर्फ किसान ही विरोध कर रहे हैं?

नई दिल्ली: प्रदर्शनकारी किसानों के प्रति अपनी एकजुटता को जाहिर करने के लिए देश भर की कामगार आबादी के विभिन्न तबकों से समर्थन करने वालों की सूची लगातार बढ़ती ही जा रही है। इससे केंद्र के दावे पर सवाल उठ रहे हैं, जिसका दावा था कि विवादास्पद कृषि विधेयकों को लेकर चल रहा मौजूदा आन्दोलन मात्र एक-दो राज्यों के एक समुदाय तक ही सीमित है।
विभिन्न व्यापारिक निकाय, क्षेत्रीय संघ, परिवहन संघ, छात्र, विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों सहित तमाम अन्य संगठन सोमवार 7 दिसंबर को समूचे देश भर से 8 दिसंबर के एक दिन के ‘भारत बंद’ को अपना समर्थन देने की अपनी अपील के साथ आगे आये हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा नामक किसानों के शीर्षस्थ निकाय, जिसमें लगभग 500 किसान समूह शामिल हैं, द्वारा दिए गये दिल्ली चलो के आह्वान के बाद राष्ट्रव्यापी बंद के आह्वान में राजमार्गों पर चक्काजाम, बाजारों के बंद रहने के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में ब्लाक स्तर पर धरना प्रदर्शन आयोजित किये जाने की संभावना है। किसानों ने अपने समर्थकों से अपील की है कि विरोध दिवस के दिन वे दोपहर 3 बजे तक सड़कों पर चक्का जाम करें।
किसान मोर्चा के नेतृत्व में शामिल इन कृषक गुटों को उम्मीद है कि इससे केंद्र पर आवश्यक दबाव बनेगा, क्योंकि इसके एक दिन बाद वे 9 दिसंबर को अपनी माँगों को लेकर छठे दौर की वार्ता में शामिल होने जा रहे हैं। केंद्र के साथ वार्ता में जाने से पहले उनके इस भारत बंद कार्यक्रम के तहत सम्पूर्ण बंद के जरिये निश्चित तौर पर किसानों के आन्दोलन की ताकत का मुजाहिरा होने जा रहा है।
10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने अपने 5 दिसंबर के प्रेस वक्तव्य में किसानों के विरोध प्रदर्शनों को लेकर अपने “पूर्ण समर्थन” को दोहराया है, जिसमें “कठोर” कृषि संबंधी सुधारों को रद्द करने, विद्युत कानून में संशोधन एवं कानून को अधिनियमित करने के जरिये फसल की उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिए जाने की गारण्टी सहित कई अन्य माँगें शामिल हैं।
8 दिसंबर के बंद को समर्थन में दिए गए वक्तव्य में कहा गया है “....श्रमिकों एवं कर्मचारियों और उनकी यूनियनें सारे देश भर में सभी राज्यों में चल रहे किसानों को कई राज्यों के प्रशासन/पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और डराने-धमकाने को धता बताते हुए जारी संघर्षों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए कई आंदोलनों को चलाने में पूरे तौर पर सक्रिय रहे हैं।”
सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा है कि “(किसानों के आन्दोलन) के प्रति जो प्रतिक्रिया मिल रही है वह अभूतपूर्व है। उनके अनुसार बैंकिंग, बीमा के साथ-साथ रक्षा क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी एवं केंद्र और राज्य के कर्मचारियों के क्षेत्रीय संघों ने आंदोलनकारी किसानों को अपना समर्थन दिया है और केंद्र से अनुरोध किया है कि उनकी मांगों पर जल्द से जल्द सुनवाई करे।
इसी तरह भारतीय रेलवे में सबसे बड़े कर्मचारी महासंघ, आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन (एआईआरएफ) ने भी अपनी सभी सम्बद्ध यूनियनों से इस अखिल भारतीय हड़ताल को अपना समर्थन देने का आह्वान किया है। सरकार के स्वामित्व वाली भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से जुड़े दूरसंचार क्षेत्र के कर्मचारी इस अवसर पर किसानों के समर्थन में लंच के दौरान प्रदर्शन करेंगे और पट्टियाँ पहनेंगे।
सेन ने बताया “चूँकि इस दौरान नोटिस देने और हड़ताल करने की गुंजाइश बेहद कम बची थी, इसलिए 8 दिसंबर के दिन कई क्षेत्रों के कर्मचारी अपने कार्यस्थलों पर ही ज्यादातर रैलियों और प्रदर्शनों को आयोजित करेंगे। उनका कहना था कि सारे देश भर के विनिर्माण क्षेत्रों के औद्योगिक श्रमिक, किसानों के समर्थन में “रैली निकालने के साथ-साथ राजमार्गों पर चक्काजाम करने का काम करेंगे।”
इन श्रमिकों के साथ मुख्यतौर पर पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में कार्यरत श्रमिक शामिल होंगे, जो किसान समुदाय के साथ अपनी एकजुटता को जाहिर करने के लिए संयुक्त प्रदर्शनों को आयोजित करने जा रहे हैं। दार्जिलिंग स्थित तराई संग्रामी चा श्रमिक यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अभिजीत मजुमदार ने न्यूज़क्लिक से फोन पर बातचीत में कहा कि इस क्षेत्र की उत्पादन ईकाइयों में गेट मीटिंग की जायेगी, जिसमें चाय बागानों में कार्यरत श्रमिकों एवं किसानों दोनों से संबंधित मांगों को उठाया जाएगा।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 8 दिसंबर के दिन परिवहन सेवाओं के पूरी तरह से ठप पड़ जाने की संभावना है, क्योंकि तकरीबन 27 से वाहन चालकों की यूनियनों ने दिनभर के लिए अपने वाहनों को सड़कों पर न उतारने की कसम खाई है। इसमें प्राइवेट टैक्सियाँ, ऐप-आधारित ओला और उबेर जैसी कारें एवं ट्रक, टूरिस्ट परिवहन चालक इत्यादि शामिल हैं।
दिल्ली के सर्वोदय ड्राईवर एसोसिएशन के अध्यक्ष कमलजीत सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया है कि परिवहन चालक समुदाय प्रदर्शनकारी किसानों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं। उनका कहना था कि “हम किसानों के समर्थन में एक दिन के लिए कई वाहन चालकों से वाहन न चलाने का अनुरोध करेंगे।” इसके साथ ही उन्होंने बताया कि उनके संघ में करीब 4.5 लाख कैब चालकों, जिनमें से ज्यादातर ऐप-बेस्ड हैं, जुड़े हुए हैं।
इस बीच वाहन चालकों के शीर्षस्थ निकाय आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) जो कि देश भर में 95 लाख ट्रक चालकों एवं अन्य संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती है, ने भी धमकी दे डाली है कि यदि केंद्र ने किसान समुदाय के मुद्दों का समाधान नहीं निकाला तो वे 8 दिसंबर से अपने संचालन को ठप करने जा रहे हैं।
करीब 23 किसान समूहों ने गुजरात खेडूत संघर्ष समिति नामक शीर्ष निकाय का गठन किया है और बंद के आह्वान को अपना समर्थन दिया है। गुजरात खेडूत समाज के अध्यक्ष जयेश पटेल ने पीटीआई के हवाले से अपने वक्तव्य में कहा है कि “किसानों के समर्थन में हमने मंगलवार के बंद को अपना समर्थन देने का फैसला लिया है। 10 दिसंबर को हम सारे गुजरात भर में विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं और इसके एक दिन बाद हमने गांधीनगर के सत्याग्रह छावनी में ‘किसान संसद’ का आयोजन किया है। 12 दिसंबर को यहाँ के किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली की ओर कूच करेंगे।”
हालाँकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय किसान संघ ने इस विरोध प्रदर्शन से खुद को अलग रखने का फैसला लिया है।
राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर किसानों के जारी विरोध प्रदर्शन को सोमवार को 12वां दिन हो चला है, जिसके तहत प्रदर्शनकारियों ने सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली से हरियाणा को जोड़ने वाले जीटी करनाल राजमार्ग पर अपना डेरा जमा रखा है। इसके साथ ही एक अन्य दिल्ली-हरियाणा के सीमान्त गाँव जो कि मुंडका के पास टिकरी बॉर्डर पर पड़ता है, वहाँ पर भी किसान जमे हुए हैं। किसानों ने उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी से जोड़ने वाले गाज़ीपुर बॉर्डर पर भी अपना कब्जा जमा लिया है।
सिंह ने न्यूज़क्लिक को सूचित किया कि ट्रांसपोर्टरों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने कल 6 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर का दौरा किया था और प्रदर्शनकारी किसानों को अपने समर्थन के प्रतीक के तौर पर 3 लाख रूपये की धनराशि का योगदान दिया है।
हाल के दिनों में दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे विरोध स्थलों पर किसानों के साथ एकजुटता के प्रयासों में भाग ले रहे विश्वविद्यालय के छात्र भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। आल इंडिया फोरम टू सेव पब्लिक एजुकेशन द्वारा सोमवार को जारी किये गए अपने बयान में देश भर के सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों से अपील की है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों और विश्वविद्यालयों में बंद के दिन किसानों के प्रति एकजुटता जाहिर करने के लिए विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करें।
इस मंच के जरिये, जो कि तमाम छात्र संघों की अपनी-अपनी राजनीतिक सम्बद्धता से परे हटकर एकजुट हुई हैं, ने अपने बयान में कहा है कि “भारत के स्वाधीनता संघर्ष के दौरान हाशिये पर खड़े श्रमिकों एवं किसान जनों द्वारा नेतृत्व प्रदान किया था जबकि आज भारतीय राज्य ने किसानों के लोकतान्त्रिक आन्दोलन को संबोधित करने के बजाय अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया है।”
इस शीर्षस्थ निकाय ने केंद्र सरकार पर हाल के दिनों में तीन कृषि विधेयकों को पारित करने के माध्यम से “कॉर्पोरेट लूट” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है, जो कि देश में शिक्षा के भविष्य के समान ही नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के जरिये “बाजारीकरण” के माध्यम से बर्बाद किया जा रहा है।
इसके साथ ही छात्रों के साथ अब विश्वविद्यालय के कर्मचारी और शिक्षाविद भी इस बात को सुनिश्चित करने के लिए शामिल हो रहे हैं कि सिर्फ किसान ही आंदोलित नहीं हैं। इस सिलसिले में आल इंडिया यूनिवर्सिटी एम्प्लाइज कन्फ़ेडरेशन और जॉइंट फोरम फॉर मूवमेंट ऑन एजुकेशन ने 8 दिसंबर के अखिल भारतीय बंद के आह्वान को अपना समर्थन दिए जाने की घोषणा की है।
किसानों के इस एक दिन के बंद के आह्वान ने विपक्षी दलों को भी एकजुट कर दिया है, जिसमें 15 से अधिक दलों ने प्रदर्शनकारी किसानों के समूहों को भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ उनकी लड़ाई में अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी है।
भारतीय किसान यूनियन (चडूनी) की हरियाणा ईकाई के संगठन मंत्री हरपाल सिंह ने सिंघू बॉर्डर से न्यूज़क्लिक से फोन पर हुई बातचीत में बताया है कि उनके राज्य में 100 से भी अधिक की संख्या में मौजूद “सभी” खाप पंचायतों ने भी बंद के आह्वान को अपना समर्थन देने का फैसला लिया है।
योजना के बारे में जानकारी देते हुए उनका कहना था कि “हमने दोपहर 3 बजे तक राजमार्गों को जाम रखने का आह्वान दिया है; देश भर के नागरिकों से भी अपील की जाती है कि वे प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में दिन भर के लिए अपनी दुकानें बंद रखें।” उन्होंने आगे बताया कि सिर्फ एम्बुलेंस एवं आपातकालीन सेवाओं को ही इस आन्दोलन के दौरान छूट दी जायेगी।
आल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) के महासचिव हन्नन मोल्लाह के अनुसार भले ही “निश्चित तौर पर” बंद का आह्वान यह ध्यान में रखते हुए दिया गया है कि इससे प्रदर्शनकारी किसानों की मांगों को स्वीकार करने में सरकार पर दबाव पड़े, लेकिन उन्हें इस जारी वार्ता से किसी भी प्रकार के निर्णायक समाधान की “उम्मीद” नहीं है।
केंद्र सरकार के साथ किसानों के वार्ताकारों में शामिल मोल्ला ने न्यूज़क्लिक के साथ हुई बातचीत के दौरान बताया है कि “केंद्र सिर्फ समय बर्बाद करने की कोशिश में लगी हुई है और विरोध प्रदर्शन के खुद से ही मंद पड़ जाने की बाट जोह रही है। अब यह हमारे उपर निर्भर करता है कि हम कब तक अपने आंदोलनों के माध्यम से दबाव बनाए रख सकते हैं।” वे आगे कहते हैं “इसी सन्दर्भ में इस बंद के आह्वान को दिया गया है और देश भर में इसके सफलतापूर्वक संपन्न होने को देखे जाने की आवश्यकता है।”
गुजरात के 23 किसान समूहों द्वारा शीर्षस्थ निकाय का गठन
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कुलमिलाकर 23 किसान समूहों ने मिलकर गुजरात खेडूत संघर्ष समिति नामक शीर्षस्थ निकाय का गठन किया है और केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा आहूत मंगलवार के ‘भारत बंद’ के आह्वान को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।
गुजरात खेडूत समाज के अध्यक्ष जयेश पटेल के अनुसार एक शीर्षस्थ संगठन के गठन का फैसला गुजरात खेडूत समाज और गुजरात किसान सभा की एक बैठक के दौरान रविवार के दिन लिया गया।
वे कहते हैं “हमने किसानों के समर्थन में मंगलवार के भारत बंद को अपना समर्थन दिया है। 10 दिसंबर के दिन हम सारे गुजरात में विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं, और इसके एक दिन बाद हमने गांधीनगर के सत्याग्रह छावनी में ‘किसान संसद’ का आयोजन किया है। 12 दिसंबर के दिन यहाँ से किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली की ओर कूच करेंगे।”
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