विवान सुंदरम: एक पॉलिटिकल कलाकार

निरंतर प्रयोगशील और अन्वेषी (explorer) चित्रकार, लेखक और ऐक्टिविस्ट विवान सुंदरम (1943-2023) के लिए कला कभी तटस्थ नहीं हो सकती थी — वह हमेशा पक्षधर (partisan) ही हो सकती थी। दिल्ली के एक अस्पताल में 29 मार्च 2023 को जब विवान सुंदरम ने आख़िरी सांसें लीं, तब हमारे बीच से एक ऐसा अद्भुत कल्पनाशील और विचारक कलाकार रुख़सत हो गया, जिसकी चिंता और कला के केंद्र में मेहनतकश लोग और उत्पीड़ित जन थे और उनका प्रतिरोध संघर्ष था।
यह बात नोट की जानी चाहिए कि चित्रकार विवान सुंदरम और उनके कला कर्म पर जब भी बात होगी, उसे पॉलिटिक्स से नहीं काटा जा सकता। विवान का जीवन और उनकी कला पूरी तरह पॉलिटिकल रही — वह बायें बाजू की पॉलिटिक्स में रचे-बसे थे। वह अमेरिकी साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और हिंदुत्व फ़ासीवाद के मुखर विरोधी थे, और यह विरोध उनकी कला में बार-बार, नये और प्रयोगशील रूप में, प्रतिबिंबित होता रहा।
मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि वामपंथी राजनीतिक चेतना ने विवान की कला को समृद्ध किया। इसने उनकी कला को अलग, स्वतंत्र, विशिष्ट पहचान दी। विवान सीपीआई (एम) के काफ़ी क़रीब थे, हालांकि वह पार्टी के मेंबर कभी भी नहीं थे। वह सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) के संस्थापक सदस्य थे।
एक बात और नोट करने की है। विवान सुंदरम अपनी ख़ानदानी विरासत किसी पुरुष पुरखे से नहीं, एक स्त्री पुरखे/पुरखिन से — अमृता शेरगिल से — जोड़ते थे, और इस पर वह आजीवन फ़ख़्र करते रहे। विवान सुंदरम पर बात हो और अमृता शेरगिल का जिक्र न आये, यह लगभग असंभव था। और विवान को इस पर एतराज़ भी नहीं था!
शेरगिल फेमिली पेंटिंग
आधुनिक भारतीय चित्रकला की एक अत्यंत महत्वपूर्ण शख़्सियत अमृता शेरगिल (1913-1941) विवान सुंदरम की मौसी थीं। अमृता की सगी बहन इंदिरा शेरगिल विवान की मां थीं। विवान के पिता का नाम कल्याण सुंदरम था। वह भारत के विधि आयोग के अध्यक्ष (1968-1971) थे।
विवान सुंदरम का जन्म 28 मई 1943 को शिमला में हुआ था। उन्होंने चित्रकला की पढ़ाई एमएस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा में की और आगे की पढ़ाई लंदन के स्लेड स्कूल में की।
विवान जब लंदन में पेंटिंग की ट्रेनिंग ले रहे थे, उन्हीं दिनों, मई 1968 में, पेरिस (फ्रांस) में छात्रों का ज़बर्दस्त सत्ता-विरोधी आंदोलन हुआ था, जिसने फ्रांसीसी सरकार को हिला दिया था। इस आंदोलन का विवान पर गहरा असर पड़ा और इसने उनकी विचारधारात्मक दिशा तय कर दी — वह वामपंथ से जुड़ गये।
वर्ष 1968 समूची दुनिया में गहरी उथल-पुथल का वर्ष था, जिसका विवान पर बहुत असर पड़ा। पेरिस में छात्र आंदोलन चल रहा था, वियतनाम पर अमेरिकी साम्राज्यवाद के हमले और युद्ध के विरोध में दुनिया में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे, और भारत में नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान संघर्ष जोर पकड़ रहा था।
विवान सुंदरम बुनियादी तौर पर चित्रकार थे। लेकिन उन्होंने, आगे चलकर, अन्य कला विधाओं में भी काम किया—मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, फ़ोटोग्राफ़ी, इंस्टालेशन, वीडियो आर्ट। उन्होंने अमृता शेरगिल पर एक किताब भी लिखी।
1991 में जब अमेरिका ने पहली बार इराक़ पर हमला किया था, तब उसके विरोध में विवान सुंदरम ने ‘इंजन ऑयल’ (Engine Oil) शीर्षक से इंस्टालेशन लगाया था। इस प्रदर्शनी के माध्यम से विवान ने बताया था कि अमेरिकी साम्राज्यवाद की यह कार्रवाई खाड़ी क्षेत्र का तेल भंडार हड़पने के लिए थी।
इंजिन ऑयल पेंटिंग
बाबरी मस्जिद विध्वंस और बंबई में मुसलमानों के क़त्लेआम (1992-92) पर आधारित उनका ‘मेमोरियल’ काफ़ी चर्चित हुआ था।
2017 में विवान सुंदरम ने, सांस्कृतिक सिद्धांतकार आशीष राज्याध्यक्ष और साउंड आर्टिस्ट डेविड चैपमैन के साथ मिलकर, एक सार्वजनिक कला प्रोजेक्ट तैयार /प्रदर्शित किया था, जो 1946 के रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह (नौसेना विद्रोह) और बंबई के मज़दूर वर्ग पर आधारित था। इसका शीर्षक बहुत मौजूं, गहरे अर्थ से भरा हुआ थाः ‘विफल कार्रवाई के अर्थ : विद्रोह 1946.’
विद्रोह की यही चेतना विवान के जीवन में थी।
(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
(सभी पेंटिंग्स सोशल मीडिया/गूगल से साभार)
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