यूपी चुनाव: नहीं चल पा रहा ध्रुवीकरण का कार्ड

हमारे लोकतन्त्र की तकदीर तय करने जा रहे उत्तरप्रदेश के ऐतिहासिक चुनाव के लिए, जिसे प्रो. ज़ोया हसन ने हमारी living memory का सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव करार दिया है, पहला वोट पड़ने में अब 150 घण्टे भी कम का समय बचा है।
इस चुनाव में भाजपा अपनी डबल इंजन सरकार की उपलब्धियों और performance के आधार पर जनादेश नहीं मांग रही है। नए बजट से यह और साफ हो गया, जिसमें उसने खुल्लम-खुल्ला कारपोरेट के लिए बैटिंग की और किसानों, जवानों, गरीबों सहित सबको ठेंगा दिखा दिया। यहां तक कि हमारे समाज के सबसे कमजोर तबकों के जिंदा रहने की जो शर्त बना हुआ है, उस मनरेगा का बजट भी पिछले साल के खर्च ( revised estimate ) 98 हज़ार करोड़ से घटाकर 73 हजार करोड़ कर दिया है, इसी तरह सब्सिडी 1.40 लाख करोड़ से घटाकर 1.05 लाख करोड़ कर दी गयी।
इतने महत्वपूर्ण चुनावों की पूर्व बेला में, मोदी सरकार का यह बजट इस बात का ऐलान है कि उसे आम जनता की बिल्कुल परवाह नहीं है, वह सड़क पर उतरे किसान और जवान ही क्यों न हों ! जबकि लोगों को उम्मीद थी कि इसमें मतदाताओं को लुभाने की कोशिश होगी। बेशक यह अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत का प्रतिबिंब भी है कि आम जनता के लिए इस निर्णायक चुनाव के मौके पर भी देने के लिये अब उनके पास कुछ नहीं बचा है।
दरअसल,भाजपा फिर यह चुनाव अपने time-tested पुराने ध्रुवीकरण के फॉर्मूले पर लड़ रही है। इसका सबसे बड़ा सबूत स्वयं मोदी द्वारा पहले चरण की 26 सीटों के मतदाताओं को सम्बोधित करते हुए दी गयी virtual speech है। यह सम्बोधन योगी के कार्यकाल की बजाय पिछली सपा सरकार के कार्यकाल पर केंद्रित रहा।
यह देखना रोचक था कि उन्होंने शुरुआत 1857 से किया, " पश्चिम UP की इस धरती ने 1857 की क्रांति में देश को एकजुटता का संदेश दिया था। " फिर वे पलटी मारते हुए अंग्रेजों के ख़िलाफ़ क्रांतिकारियों द्वारा प्रयुक्त रोटी और कमल के फूल के प्रतीक को संकेतों में अपने चुनाव चिह्न कमल से जोड़ते हुए अपनी विभाजनकारी लफ्फाजी पर आ गये," कमल के फूल और रोटी ने हमेशा देश को बांटने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है।....5 साल पहले UP में दबंग और दंगाई ही कानून थे। उनका आदेश ही शासन था। व्यापारी लुटता था, बेटी घर से निकलने से घबराती थी। पश्चिम UP के लोग कभी नहीं भूल सकते कि जब यह क्षेत्र दंगे की आग में जल रहा था, तो सरकार उत्सव मना रही थी।" काश वे यह भी बताते कि उस " दंगे " को organise करने में उनके नेताओं की क्या भूमिका थी !
फिर उन्होंने लोगों को बताया, " मैं भी मुख्यमंत्री रहा हूँ, जानता हूँ इन कठिन हालात से प्रदेश को बाहर लाना, दंगों से मुक्त करना मामूली काम नहीं है। " यहां गुजरात का जिक्र बेहद मानीखेज है, मोदी जी बिना किसी calculation के असावधानी में शायद ही इस तरह के रेफरेंस देते हों।
दरअसल वे अपने गुजरात मॉडल की याद दिलाते हुए UP के मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते थे कि जैसे उनके कार्यकाल में गोधरा के प्रायोजित दंगों के बाद गुजरात में पिछले 2 दशकों में मुसलमानों की आवाज खत्म कर दी गयी, सामाजिक-राजनीतिक जीवन में उन्हें marginalise कर दिया गया, मुसलमानों का ghettoisation करके एक ही शहर में हिन्दू अहमदाबाद और मुस्लिम अहमदाबाद बना दिया गया, उसी मॉडल पर योगी सरकार UP में चल रही है और अगर फिर मौका मिला तो वैसा ही हिन्दू बोलबाला यहां भी कायम कर दिया जायेगा।
जो बात अमित शाह और योगी bluntly कह रहे हैं, उसे ही मोदी जी इशारों-इशारों में, sophisticated ढंग से कह रहे हैं, उसे विकास का स्पिन देकर और अपने गुजरात मॉडल से जोड़ देकर और खतरनाक बना दे रहे हैं।
मोदी-शाह-योगी जनता को यह नहीं बताते कि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों में उनकी पार्टी के नेताओं की क्या भूमिका थी। उनके मंत्रिमंडल में सुशोभित हो रहे संजीव बालियान, UP के गन्ना मंत्री सुरेश राणा, सरधना के विधायक संगीत सोम की उसमें क्या भूमिका थी ? राणा और संगीत सोम समेत जिन लोगों पर कायम 77 मुकदमे बिना कोई ठोस कारण बताए योगी सरकार ने वापस ले लिए उनका भाजपा से क्या रिश्ता है ?
संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री और गृहमंत्री लगातार समुदाय विशेष के खिलाफ केंद्रित उत्तेजक बयानबाजी कर रहे हैं, ताकि माहौल charge हो और किसी तरह ध्रुवीकरण हो , " 10 मार्च के बाद बुल्डोज़र चलेगा ", " जो गर्मी दिखाई दे रही है, सब शान्त हो जाएगी ", " गर्मी कैसे शांत होती है मैं जानता हूँ।"
बहरहाल, पश्चिम UP से आने वाली ग्राउंड रिपोर्ट्स बता रही हैं कि इसका असर उल्टा हुआ है। इससे ध्रुवीकरण तो नहीं ही हुआ, उल्टे जाट समुदाय में, किसानों में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है और भाजपा विरोधी गोलबंदी और ठोस (consolidate ) हो गई है।
जनता अब पूरा खेल समझ चुकी है। सर्वोपरि किसान किसी झांसे में आने वाले नहीं हैं। राकेश टिकैत का एक tv चैनल पर मन्दिर-मस्जिद के फोटो पर जो outburst था, वह भाजपा के विभाजनकारी खेल के खिलाफ किसानों की इसी तीखी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति थी। उन्हें अब साफ समझ में आ रहा है कि उनकी मेहनत व फसल की वाजिब कीमत के जीवन-मरण संघर्ष को व्यर्थ कर देने के लिए भाजपा यह सारा शातिर खेल खेल रही है। वे अच्छी तरह समझ रहे हैं कि 700 से ऊपर शहादतों के बीच अपने 13 महीने चले आंदोलन के बल पर उन्होंने जाति-समुदाय-धर्म सबके पार जो विराट किसान एकता बनाई, भाजपा उसे छिन्न-भिन्न कर देना चाहती है और फिर सत्ता पर कब्ज़ा कर उन्हें रौंदने की तैयारी में है।
इसीलिए किसान नेता डटकर, जी-जान लगाकर मोदी-शाह-योगी तिकड़ी के साम्प्रदायिक अभियान का मुकाबला कर रहे हैं और मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं, जरूरत पड़ने पर गोदी मीडिया को भी नहीं बख़्श रहे हैं, उसे भी बेनक़ाब कर रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसानों ने 31जनवरी को "विश्वासघात दिवस " मनाया और मिशन UP पुरजोर ढंग से आगे बढ़ाने का ऐलान किया। किसान नेताओं ने बजट को किसानों से बदला लेने वाला, आंदोलन के लिए उनको सजा देने वाला बजट करार दिया है, जिसमें न किसानों की आय दोगुना करने की चर्चा है, न MSP गारण्टी और किसान सम्मान निधि बढ़ाने या कर्ज़ माफी की बात है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने 3 फरवरी को प्रेस कान्फ्रेंस कर एक बेहद भावपूर्ण अपील में
UP के किसानों से " इस चुनाव में किसान विरोधी भाजपा को सजा देने " की अपील की है। UP के 56 संगठनों की ओर से जारी मोर्चे की अपील में कहा गया है, " किसान साथी, हमारी इज्जत आपके हाथ में है।.. किसानों का अपमान करने वाली भाजपा को सबक सिखाने के लिए आज हमें आपकी मदद चाहिए। BJP सरकार सच झूठ की भाषा नहीं समझती, अच्छे-बुरे में भेद नहीं समझती, संवैधानिक-असंवैधानिक का अंतर नहीं जानती। यह पार्टी बस एक ही भाषा समझती है-वोट, सीट, सत्ता।..इस किसान विरोधी सरकार के कान खोलने के लिए इसे चुनाव में सजा देने की जरूरत है। एक किसान का दर्द किसान ही समझ सकता है। हमें विश्वास है कि आप वोट डालते वक्त हमारी इस चिट्ठी को याद रखेंगे।"
मोर्चा का राष्ट्रीय नेतृत्व लखनऊ, वाराणसी , गोरखपुर, मेरठ, आगरा, मुरादाबाद समेत up के 9 प्रमुख केंद्रों पर सामूहिक तौर पर प्रेसवार्ता तथा अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से इस अपील को लेकर किसानों के बीच जाएगा। किसान विरोधी कारनामों, दमन, वायदाखिलाफी, उपेक्षा,किसानों के हत्यारों को संरक्षण जैसे अपराधों के लिए भाजपा को सजा देने अर्थात चुनावों में शिकस्त देने के लिए आह्वान किया जाएगा।
यह साफ है कि आज के हालात में भाजपा की सत्ता में पुनर्वापसी उसे जनता के जीवन के मूलभूत सवालों के प्रति और संवेदनहीन, उनके आंदोलनों के प्रति और निर्मम बनाएगी। भाजपा के सत्ता में रहते अब न किसानों के लिए कोई उम्मीद बची है, न छात्रों-बेरोजगार युवाओं के लिए, न मेहनतकशों के लिए। ऊपर से उसे नफरत का कुचक्र रचकर जनता की एकता को तोड़ देने और पूरे विमर्श को बदल देने में महारत हासिल है।
ऐसी ताकत को सत्ता से बाहर किये बिना जनता के जीवन में बेहतरी की, यहाँ तक कि अपने अधिकारों के लिए लड़ पाने के लोकतान्त्रिक space की भी उम्मीद नहीं बचती।
आज हर जागरूक नागरिक के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता भाजपा राज से मुक्ति है, ताकि जनता खुली हवा में सांस ले सके, लोकतन्त्र बहाल हो सके, नफरत का राज खत्म हो, जनता की बेहतरी की लड़ाई आगे बढ़ सके।
प्रो. ज़ोया हसन के शब्दों में, " जनता के popular गुस्से ने राजनीतिक विमर्श बदल दिया है, सामाजिक--आर्थिक प्रश्न अब केंद्र में आ चुके हैं, लोग hate politics से थक चुके हैं। जीवन का भोगा हुआ कटु यथार्थ अब सबसे ऊपर आ चुका है, वह बहुसंख्यकवाद की राजनीति का counterweight साबित होगा।"
2013-14 से गंगा-जमुना में बहुत पानी बह चुका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तरप्रदेश के किसान अपने ऐतिहासिक आंदोलन के अगुआ नेताओं की मार्मिक अपील पर जरूर अमल करेंगे। उत्तर प्रदेश का मैदान, नफरती जन-विरोधी राजनीति के लिए वाटरलू बनेगा।
लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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