बेहतर सेवा स्थिति की मांग को लेकर आशा, आंगनवाड़ी और अन्य स्कीम वर्कर्स की दो दिन की हड़ताल

आंगनवाड़ी, आशा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मिड डे मील समेत अन्य स्कीम वर्कर्स ने हज़ारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर शुक्रवार और शनिवार को प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर किया गया। दो दिवसीय हड़ताल के तहत पूरे देश में जिला मुख्यालयों, ब्लॉक मुख्यालयों व कार्यस्थलों पर आंगनवाड़ी, मिड डे मील और आशा कर्मचारियों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए। इस दौरान कर्मियों ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया कि अगर आईसीडीएस, मिड डे मील व नेशनल हेल्थ मिशन जैसी परियोजनाओं का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्कर को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो देशव्यापी आंदोलन और तेज होगा।
आपको बात दे देशभर में तकरीबन एक करोड़ स्कीम वर्कर हैं। मुख्यतया तीन तरह के स्कीम वर्कर आज यूनियन के द्वारा संगठित हैं। आशा, आंगनवाड़ी और मिड-डे मील वर्कर। इनकी संख्या तकरीबन 65 से 70 लाख होगी। इन्हीं पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का आधार टिका हुआ है और इस कोरोना काल में इनकी भूमिका और अहम हो गई है। इसलिए प्रधानमंत्री ने अभी अपने भाषणों में इन्हें कोरोना योद्धा बताया है लेकिन कर्मचारियों का कहना है वो सिर्फ भाषणों तक ही रहा है। क्योंकि आज भी इन्हें बिना किसी सुरक्षा के काम करने पर मजबूर किया जाता है। सबसे दुखद तो यह है कि इन्हें अपने काम का वेतन भी नहीं दिया जाता है। कई राज्यों में स्कीम वर्कर्स को 1500 से 3000 रुपये दिए जाते हैं।
गौरतलब है कि स्कीम वर्कर्स में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा सहायिका, मिड-डे-मील रसोइए, ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशा (ASHA) तथा शहरी क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता ऊषा (USHA), तथा सरकार के कई अन्य योजनाओं में संलग्न कार्यकर्ता शामिल हैं। स्कूलों में कार्यरत शिक्षा मित्र समेत एएनएम योजना के कार्यकर्ता एवं आजीविका मिशन श्रमिक आदि मिलाकर विभिन्न योजनाओं से जुड़े हुए हैं। ऐसे लोग 43 साल से स्कीम वर्कर काम कर रहे हैं लेकिन आजतक नौकरी की सुरक्षा नहीं है, यही नहीं अभी तक इन्हे श्रमिक का दर्जा नहीं मिला है।
जबकि इनकी भूमिका स्वस्थ समाज के निर्माण में सबसे अधिक है। इस कोरोना काल में तो इनकी भूमिका बहुत बड़ी है,चाहे वो कोरोना संक्रमितों की देखभाल करना हो या सर्व करना या फिर समाज में माहमारी के खिलाफ जागरूकता करना ये सभी काम इन स्कीम वर्कर द्वारा किया जा रहा है। अगर हम इस माहमारी के समय को छोड़ भी दे तो भी इनका काम बहुत ही जरूरी है।
आपको बता दें कि 2 अक्तूबर 1975 को भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के साथ मिल कर आईसीडीएस स्कीम (समन्वित बाल विकास योजना) शुरू की थी और उस समय माना गया था कि पूरे विश्व के एक तिहाई कुपोषित बच्चे और गर्भवती महिलाएं भारत में हैं। इस स्कीम के बाद इस आकड़े में तेज़ी से सुधर हुआ है।
लेकिन सरकार अब लगातर इससे अपने हाथ पीछे खींच रही है जो स्थिति को ख़राब कर सकता है। सबसे पहले इसे यूनिसेफ़ की मदद से शुरू किया गया था। बाद में इसे केंद्र और राज्य सरकारों की 70-25 हिस्सेदारी में लाया गया। मोदी सरकार ने इसमें अपनी जिम्मेदारी को कम करते हुए राज्यों की हिस्सेदारी को बढ़ा कर 60-40 कर दिया है यानी इसमें काम के लिए 60 फ़ीसदी धन केंद्र और 40 फ़ीसदी राज्य सरकार देगी।
जब आईसीडीएस के तहत स्कीम वर्कर को काम पर रखा गया था तब उनकी ज़िम्मेदारी 6 साल तक के बच्चों और महिलाओं के लिए काम करने की थी, लेकिन आज इसे अंब्रेला स्कीम बना दिया गया है। इसके अंदर मातृत्व सहयोग योजना, किशोरी योजना, पोषण अभियान, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान सब जोड़ दिए हैं। कई और काम होते हैं जैसे वेलफ़ेयर स्कीम के सर्वे, धर्म, एनआरआई, किन्नरों का सर्वे, पशुओं की गणना, गांवों में शौचालयों के निर्माण की संख्या, गांव के भीतर पेंशन फ़ॉर्म भरना, कई राज्यों में राशन कार्ड बनाने के काम, बीपीएल का रिकॉर्ड भी इन्हीं को रखना होता है। इसी के साथ इन्हें बीएलओ का काम भी सौंपा जाता है। काम के कुछ घंटे सरकार तय ज़रूर करती है लेकिन काम उन घंटों से कहीं अधिक होता है। या यूँ कहें कि स्कीम वर्कर का काम 24 घंटे होता है।
यदि किसी आशा या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के कार्य दिवस को देखें तो इनके अन्याय पूरी तरह स्पष्ट हो जाते हैं। किसी आशा से उम्मीद की जाती है कि वह अपने क्षेत्र के अंतर्गत गांवों के सभी निवासियों की स्वास्थ्य स्थिति की जांच करे। वह रोजाना चक्कर लगाती है और तत्काल चिकित्सा या अन्य सुविधाएं मुहैया कराती हैं। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य तथा सुरक्षित प्रसव में इनकी प्रमुख भूमिका है, आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं को उचित समय पर अस्पताल पहुंचाती हैं। आशा कार्यकर्ता से गर्भनिरोधक व्यवस्था, बच्चों के प्रतिरक्षण तथा पोलियो ड्रॉप या डी-वर्मिंग टैबलेट जैसी नियमित अभियान वाली दवाओं के वितरण की उम्मीद की जाती है। अपने क्षेत्र में हर प्राधिकारियों के साथ बैठक में भाग लेने के अलावा वह दर्जनों रजिस्टरों में सभी गतिविधियों का पूरा रिकॉर्ड रखती हैं।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा सहायिकाओं का काम सिर्फ डे-केयर सेंटर में शिशुओं की देखभाल करना है लेकिन उनका काम किशोर बच्चों,गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं की देखभाल, पोषण आदि तक बढ़ जाता है। मिड-डे-मील बनाने वाली कार्यकर्ता स्कूल में न केवल खाना बनाती हैं बल्कि स्कूलों में आवश्यक खाद्य वस्तुओं के संचयन, स्कूलों की सफाई और अन्य प्रकार के कामों में सहायता करती हैं।
इसके बाद भी सरकार इन्हे कर्मचारी नहीं मानती है और उन्हें अंशकालिक स्वयंसेवक (वॉलिंटिर्स) माना जाता है। इसलिए इन्हें वेतन नहीं दिया जाता बल्कि प्रोत्साहन राशि दी जाती है। लेकिन सवाल वही है कि क्या यह अंशकालिक स्वयंसेवक के रूप में किया जा सकता है? 4500 और 2250 रुपये प्रतिमाह में कोई अपना गुज़ारा कैसे कर सकता है? कई राज्यों में तो यह राशि दो हज़ार से भी कम है।
स्कीम वर्कर में अधितर महिलाए काम करती है। उन्हें आज तक कर्मचारी ही नहीं माना गया बल्कि उन्हें स्वेच्छासेवी माना जाता है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रदर्शन
देशव्यापी प्रदर्शन के दौरान पहले दिन असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, यूपी, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में सड़कों पर उतरे। आशा कार्यकर्ताओं ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के सामने प्रदर्शन किया, जबकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों ने परियोजना मुख्यालय में प्रदर्शन किया।स्कीम वर्कर के इस दो दिवसीय प्रदर्शन को दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है।
कोरोना महामारी को देखते हुए कर्मचारियों ने छोटे छोटे समूह में प्रदर्शन किया और जिस राज्य में बाढ़ जैसी आपद थी वहां केवल दो घंटे का काम बहिष्कार किया और काले बैज पहन कर काम किया है। केरल में भारी वर्षा के बावजूद, आशा कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार के कार्यालयों के सामने प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भेजा। इस प्रदर्शन में कई स्थानों पर उनके परिवार के सदस्य और आम जनता भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए।
दो दिवसीय हड़ताल के तहत हिमाचल प्रदेश के ग्यारह जिलों के जिला मुख्यालयों, ब्लॉक मुख्यालयों व कार्यस्थलों पर सीटू से सम्बंधित हि.प्र.आंगनबाड़ी वर्करज़ एवम हेल्परज़ यूनियन व हि.प्र.मिड डे मील वर्करज़ यूनियन द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए। इस दौरान सीटू से सम्बंधित आंगनबाड़ी वर्करज़ एवम हेल्परज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा नीलम जसवाल व महासचिव राजकुमारी तथा हि.प्र.मिड डे मील वर्करज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा कांता महंत व महासचिव हिमी कुमारी ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि अखिल भारतीय हड़ताल के आह्वान के तहत हिमाचल प्रदेश में दर्जनों जगह धरने-प्रदर्शन किए गये जिसमें प्रदेशभर में हज़ारों योजनाकर्मियों ने भाग लिया।
ऐक्टू से सम्बद्ध 'दिल्ली आशा कामगार यूनियन' के सदस्यों ने स्कीम वर्कर्स के देशव्यापी प्रतिवाद के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए प्रदर्शन किया। इस दौरान कर्मचारियों ने बताया किस हालत में वो काम करने को मज़बूर है। उन्हें बिना किसी सुरक्षा के कंटेनमेंट ज़ोन में सर्व के लिए भेजा जाता है। इस दौर उन्हें कोई भी सुरक्षा नहीं दी जाती है। कर्मचारियों ने अपने लिए न्यूनतम वेतन और सुरक्षा उपकरण की मांग की।
अपने बयान में यूनियनों ने कहा कि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रोजाना सैकड़ों की संख्या में कोरोना संक्रमित हो रहे है। कई कर्मचारियों की इससे मौत भी हो चुकी है। कुछ मामलों को छोड़कर, परिवारों को कोई बीमा राशि का भुगतान नहीं किया गया था। सरकार इन कर्मचारियों को बुनियादी सुरक्षा गियर भी उपलब्ध नहीं करा रही है। बयान में कहा गया है कि कई राज्यों में कर्मचारियों को छह महीने से उनका मानदेय भी नहीं मिला और लॉकडाउन शुरू होने के बाद से मिड डे मिल श्रमिकों को भुगतान नहीं किया गया है।
अपने प्रदर्शन में कर्मचारियों ने 15 मांगें रखी थी जिसमे से मुख्य मांगें इस प्रकार है:-
-स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दो, जब तक सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं, मानदेय 21 हजार रुपया करो।
-सभी स्कीम वर्कर्स एवं प्रवासी मजदूरों को ₹10000 लॉकडाउन भत्ता दो।
- निजीकरण व ठेकाकरण बंद करो।
-श्रम कानूनों पर हमला बंद करो, सम अधिकारों की कटौती बंद करो।
- कोरेन्टाइन सेंटरों में काम करने वाले रसोइयों की मजदूरी का अविलंब भुगतान करो।
-मध्यान्ह भोजन योजना को एनजीओ को सौपना बंद करो।
-रसोइयों को 10 महीने की बजाय साल भर का मानदेय दो एवं मानदेय का नियमित भुगतान करो।
- सभी स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और पूरे वेतन की गारंटी हो।
- सभी स्कीम वर्कर्स को तुरन्त पीपीई किट मुहैय्या करवाया जाए।
- कोरोना रोकथाम कार्य में संलग्न सभी स्कीम वर्करों के लिए 50 लाख के मुफ्त जीवन बीमा और 10 लाख के स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की जाये।
- सभी स्कीम वर्कर्स की कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी की जाए।
इसके साथ ही कर्मचारियों ने सरकार को चेतवानी दी की अगर उन्होंने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में उनका आंदोलन और उग्र होगा। इसके साथ ही उन्होंने 9 अगस्त को किसान मज़दूरों के देशव्यापी प्रदर्शन जेल भरो का समर्थन किया।
आशा, आंगनवाड़ी और अन्य स्कीम वर्कर्स की राष्ट्रव्यापी हड़ताल की तस्वीरें
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