वसंत, वैलेंटाइन, दिल्ली चुनाव और तुम प्रिये!

वसंत ऋतु आई हुई है प्रिये। वसंत पंचमी को बीते एक पखवाड़े से अधिक बीत चुका है और वैलेंटाइन डे भी अभी हाल में ही गया है। अब वैलेंटाइन डे वसंत पंचमी से बडा़ त्योहार बन गया है। और इस बार तो वैलेंटाइन वीक लोकतंत्र का भी बहुत बडा़ त्योहार बन कर आया है।
प्रिये, वसंत में सब कुछ मदमस्त हो जाता है। पेड़ों पर तरह तरह के रंग बिरंगे फूल लहलहाने लगते हैं। इस मामले में सरकार की नहीं चलती है इसलिए हर रंग के फूल खिलते हैं। सरकार की चलती होती तो एक ही रंग के, एक ही जैसे फूल खिलते। इधर फूलों पर भंवरे मंडरा रहे होते हैं उधर मानव मन भी चंचल होने लगता है। मानव मन का चंचल होना हिन्दू संस्कृति के आलमदारों को रास नहीं आता है। इसलिए चंचल मन को कंट्रोल करने के लिए वसंत ऋतु में बजरंग दल और श्री राम सेना भी अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
वैलेंटाइन डे भी वसंत ऋतु में ही मनाया जाता है। वैलेंटाइन डे से हफ्ते भर पहले ही वैलेंटाइन वीक रोज डे से शुरू हो जाता है। इस बार वसंत ऋतु में ही दिल्ली में चुनाव थे और रोज डे पर चुनाव का शोर शराबा भी बंद हो चुका था। लाउडस्पीकर बंद हो चुके थे। जो भी नफ़रत फैलाने वाले, गोली मारने वाले बयान आने थे, आ चुके थे। रोज डे (सात फरवरी) वाले दिन सिर्फ आपस में मिलने जुलने का दिन था, फूल देने का दिन था।
कमल का नहीं, गुलाब का फूल देने का दिन था। प्यार फैलाने का दिन था। चुनाव आयोग के कानून के हिसाब से भी, चुनाव प्रचार बंद हो गया था इसलिए नफ़रत फैलाना मना हो गया था। अब जब नफ़रत नहीं फैला सकते थे तो भाजपाइयों के पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए सात फरवरी को वे बस आराम फरमा रहे थे।
अगला दिन आठ फरवरी था वोट देने का दिन। प्रपोज डे यानी प्रपोज करने का दिन। जनता को, वोटरों को अपना प्रपोजल (वोट) ईवीएम में डालना था। प्रिये, तुमने बिना डरे अपना प्रपोजल ईवीएम में डाल दिया और बिना शर्माये वीवीपैट में देख भी लिया। तुम बहादुर हो प्रिये, तुम्हें बजरंग दल और श्री राम सेना से जरा भी डर नहीं लगा।
बीच में दो दिन इंतजार में बीत गये, प्रिये। चाकलेट डे और टैडी डे। ये दोनों दिन सारी निगरानी और उत्सुकता में बीत गये। आखिर तुमने जो प्रपोजल ईवीएम में डाले थे, उनकी रक्षा भी तो करनी थी। सबको इंतजार था प्रोमिस डे यानी ग्यारह फरवरी का। प्रिये, उसी दिन पता चलना था कि तुम्हारे प्रपोजल का क्या अंजाम होना है। पता चलना था कि कौन सा सूरमा प्रपोज डे के दिन सबसे अधिक प्रपोजल पाया है। प्रिये, तुमने बिना डरे, बिना किसी की भी धमकियों में आये, जो निर्भीक प्रपोजल प्रपोज डे को ईवीएम में डाला था, उसका परिणाम प्रोमिस डे को ही पता चला।
प्रिये, जब भी मैं तुम्हारी मधुर यादों में खो जाता हूँ तो मुझे सन पंद्रह का वसंत भी याद आता है। 2015 में भी तब वसंत ही था जब तुमने एक नये नवेले को चुना था। बजरंग दल और श्री राम सेना का आतंक तब भी था पर तुम्हें उस नये नवेले को चुनने में जरा सी भी झिझक नहीं हुई थी। बिना झिझके, बिना डरे तब तुमने उसे प्रपोज किया था।
प्रिये, तुमने उसे पिछली बार 2015 में भी प्रपोज किया था और आज भी किया है। पर इस बार यह अधिक साहस का काम है। इस बार बजरंग दल और श्री राम सेना के साथ साथ और तरह का आतंक भी मौजूद है। इस बार गोली मारने की धमकियां हैं, करंट लगाने की बातें हैं, आतंकवादी और पाकिस्तानी शब्द हैं, अधिक नफरत फैलाने का काम है। प्रिये, तुम्हारे साहस से मैं अभीभूत हूँ।
महाकवि निराला के शब्दों में:
अभी न होगा मेरा अंत,
अभी–अभी ही तो आया है,
मेरे वन में मृदुल वसंत,
अभी न होगा मेरा अंत
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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