तिरछी नज़र: आत्मनिर्भर भारत के सबक़

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘सरकार जी’, जब से वे सरकार जी बने हैं, तब से ही बहुत कोशिश कर रहे हैं। सरकार जी देश को अपने ऊपर निर्भर बनाने की यथा संभव कोशिश कर रहे हैं। जब कभी भी कोई बात उठती है तो प्रश्न यही उठाया जाता है कि वे नहीं तो और कौन। अर्थात देश उन्हीं पर निर्भर है। सरकार जी और उनके सारे समर्थकों की निगाह में इसी को 'आत्म-निर्भर' बनना कहते हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार जी इसी को, देश को अपने ऊपर निर्भर बनाने को ही आत्मनिर्भरता कहते हैं। सरकार जी ने यह भी चाहा और कोशिश की है कि देश के लोग देश पर निर्भर न हों, अपने आप पर ही निर्भर हों। तो आत्मनिर्भरता के पहले सबक की शुरुआत नौकरी से की गई। सरकार जी का मानना है कि लोगों को नौकरी के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, आत्मनिर्भर होना चाहिये। वैसे तो सरकारी नौकरियाँ थीं ही गिनती की पर सरकार जी की सरकार ने नौकरियों का ऐसा टोटा कर दिया है कि लोगों को झक मार कर नौकरियों के मामले में आत्मनिर्भर होना ही पड़ रहा है।
सरकार जी और उनके ढेर सारे मंत्रियों और मुख्य मंत्रियों ने बताया है कि नौकरी के पीछे मत भागो, खुद का काम करो। पकौड़े बनाओ, पंक्चर लगाओ। पान खिलाओ, बीड़ी-सिगरेट पिलाओ। अरे! ये भी न करना चाहो तो नौकरी के पीछे क्यों भागते हो, भैंस पाल लो। लेकिन नौकरी के लिए सरकार पर निर्भर मत रहो। आत्मनिर्भर बनो, अपना काम शुरू करो। जिन दिनों सरकार जी आत्मनिर्भर बनने के ये पकौड़े बनाने जैसे फार्मूले बता रहे थे उन्हीं दिनों अखबार भी उन लोगों की कहानियां छाप रहे थे जो पकौड़े तल तल कर नोट छाप रहे थे। आयकर विभाग भी पकौड़े वालों के यहाँ रेड मार कर पकौड़े बनाने के रोजगार की 'वैल्यू' बढ़ा रहे थे। यानी अखबार और आयकर विभाग भी देश के युवाओं को रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे थे।
इधर सरकार जी 'नौकरी में आत्मनिर्भरता' के इस फार्मूले पर काम कर रहे थे उधर मोदी जी के मित्र कार्पोरेट घराने मोदी जी को समझा रहे थे कि अगर सभी पकौड़े बनाने में, पंक्चर लगाने में लग गये तो उनके यहां चाकरी कौन करेगा, मजदूरी कौन करेगा। उनके कारखाने कैसे चलेंगे। सरकार जी में समझ की कमी थोड़ी न है। बोले, तो अब तुम ही दो लोगों को नौकरियाँ। सरकार जी ने झटपट कार्पोरेट टैक्स कम कर दिया। बताया गया कि अब कार्पोरेट बनायेगा देश को आत्मनिर्भर। वही देगा देश भर को नौकरियाँ।
खैर कार्पोरेट ने सारे के सारे पैसे डकार लिए और डकार भी नहीं ली। किसी को भी नौकरी नहीं मिली, बल्कि छिन और गईं। बेरोजगारी दर और अधिक बढ़ गई। देश की जनता आत्मनिर्भर होते होते रह गई। इससे पहले कि सरकार जी देश की जनता को आत्मनिर्भर बनाने के और फार्मूले ढूंढते, कि कोरोना आ गया। कोरोना छा गया।
अब सरकार जी ने सोचा कि देश आत्मनिर्भर बने न बने, ऑक्सीजन तक विदेशों से आयात करनी पड़े, वेंटिलेटर सहायता के रूप में मंगवाने पड़ें, पर इस आपदा में लोगों को पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देना है। पहले तो पहले लॉकडाउन में सरकार जी ने आवागमन के सारे साधन बंद कर दिए। क्या हवाई जहाज, क्या रेल गाड़ी और क्या बस, सब बंद। आना-जाना सब बंद। आत्मनिर्भरता का दूसरा पाठ था पहला लॉकडाउन। खाने को नहीं है तो भूखे रहो। सब्र टूट जाये, अपना गांव देहात बुलाने लगे तो न बस, न ट्रेन। आत्मनिर्भर बनो और पैदल जाओ। साथ में लाठियां भी खाओ। सरकार जी द्वारा देश के नागरिकों को सिखाया गया आत्मनिर्भरता का यह पहला लॉकडाउन दूसरा सबक था। पहला सबक तो नौकरी में आत्मनिर्भरता थी।
जब दूसरी लहर आई तो सरकार ने पूरा प्रबंध कर दिया कि लोगों को आत्मनिर्भरता का अगला, यानी तीसरा सबक सिखाया जाये कि बीमारी से खुद ही लड़ना है, सरकार कुछ नहीं करेगी। अपने लिए, अपने मां-बाप के लिए, अपने भाई-बहन के लिए, अपने मित्रों के लिए, सब के लिए बीमारी से खुद ही लड़ना है।
सरकार जी ने इतना अच्छा बंदोबस्त कर दिया कि इलाज के लिए डाक्टर ढूंढना है तो खुद ही ढूंढो, अस्पताल और उसमें बिस्तर भी खुद ही ढूंढो। ऑक्सीजन सिलेंडर खुद ढूंढो और उसमें भरवाने के लिए ऑक्सीजन भी खुद ही ढूंढो। वेंटिलेटर की जरूरत आन पड़े तो वह भी तो खुद ही ढूंढना है न भाई। दवाइयां नहीं मिल रही हैं तो खुद ढूंढो और ढूंढने पर भी न मिलें तो ब्लैक में खरीदो। और इंजेक्शन, वह तो ब्लैक में भी मिल जाये तो अपने को भाग्यशाली मानो। और बच न पाओ तो श्मशानघाट भी रिश्तेदार ढूंढ ही लेंगे। अब सरकार ने हम सबको इतना आत्मनिर्भर तो बना ही दिया है कि ये सारे काम हम बिना शिकायत किये कर लेते हैं। अब सरकार जी जनता को और कितना आत्मनिर्भर बनायें। आखिर सरकार जी को बंगाल के बाद अब लक्षद्वीप भी तो देखना है कि नहीं! एक जान और इतने सारे काम।
ऐसा नहीं है कि सरकार जी आत्मनिर्भरता के इन सबकों को सिखा कर ही मान जायेंगे। अब सरकार जी की अगला सबक लोगों को खाने-पीने की चीजों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का है। वह मंशा तो पूरी हो ही जाती अगर ये देशद्रोही, रुरल नक्सली, खालिस्तानी किसान सरकार की राह में रोड़ा न बनते। ये तीनों किसान विरोधी कानून इसी सबक को सिखाने के लिए ही तो लाये गये हैं। इन कानूनों को जरा ढंग से लागू हो जाने दीजिए। फिर देखियेगा, अनाज और अन्य खेती उत्पाद इतने मंहगे हो जायेंगे कि जब आप, आपके बच्चे, भाई-बहन, सगे-संबंधी और मित्र भूखे मरेंगे तो आप खेती में भी आत्मनिर्भर बनना चाहेंगे। खुद की ही खेती करना चाहेंगे। अगले सबक के रूप में सरकार जी चाहेंगे कि लोग-बाग पेट्रोल और डीजल के मामले में आत्मनिर्भर बनें। सरकार ने पेट्रोल और डीजल में तो यह स्थिति बना तो दी ही गई है कि अगर अनुमति मिल जाये तो लोग अपना तेल अपने आप ही निकालने में लग जायें, आत्मनिर्भर हो जायें।
ठीक ही तो है, जब पिसेगा भारत!
तभी तो आत्मनिर्भर बनेगा भारत!!
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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