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निकाय चुनाव के नतीजों से पता चलता हैं कि जनता ने 'सांप्रदायिक राजनीति' को नकार दिया: माकपा

'स्थानीय निकाय चुनाव से पहले और बाद में माकपा कार्यकर्ताओं को हिंसक हमलों का सामना करना पड़ा और पार्टी ने बीते पांच महीने में छह कार्यकर्ता खो दिये। हालांकि पार्टी ने संयम बनाये रखा और आम लोगों का ध्यान इन अत्याचारों की ओर दिलाने का फैसला किया।'
माकपा

केरल में सत्तारूढ़ माकपा ने रविवार को विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि हाल ही में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से पता चलता हैं कि राज्य की जनता ने उनकी 'सांप्रदायिक राजनीति' को नकार दिया है और वे वाम दलों के नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष मोर्चे के साथ खड़े हैं।

माकपा की राज्य इकाई के प्रभारी सचिव ए विजयराघवन ने कहा, 'सभी वाम दल 'धर्मनिरपेक्षता को बरकरार' रखते हुए मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव लडेंगे।'

राज्य समिति की दो दिवसीय बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव से पहले और बाद में पार्टी कार्यकर्ताओं को हिंसक हमलों का सामना करना पड़ा।

विजयराघवन ने कहा, 'स्थानीय निकाय चुनाव से पहले और बाद में माकपा कार्यकर्ताओं को हिंसक हमलों का सामना करना पड़ा और पार्टी ने बीते पांच महीने में छह कार्यकर्ता खो दिये। हालांकि पार्टी ने संयम बनाये रखा और आम लोगों का ध्यान इन अत्याचारों की ओर दिलाने का फैसला किया।'

उन्होंने दावा किया कि भाजपा अपने सांप्रदायिक एजेंडे की वजह से राज्य में कोई चुनावी लाभ हासिल नहीं कर पाई। उन्होंने कहा कि वाम दलों ने श्रमजीवी वर्ग और किसानों के वोट प्राप्त कर चुनाव में जीत हासिल की।

सनद रहे कि केरल में स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम बुधवार देर रात आ गए। इनमें राज्य में सत्तारूढ़ लेफ्ट की बड़ी जीत हुई है। 941 ग्राम पंचायतों में से 514 और 14 जिला पंचायतों में से 10 जिले लेफ्ट की झोली में गए। इसके अलावा 152 ब्लॉक पंचायतों में से 108 पर सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को जीत मिली।

केरल में स्थानीय निकाय के चुनावों इसलिए अधिक महत्वपूर्ण थे क्योंकि  राज्य विधानसभा के चुनाव भी चार महीने बाद ही होने हैं। इस पृष्ठभूमि में, स्थानीय निकाय चुनावों को भारत में एकमात्र वामपंथी राज्य सरकार के सत्ता में बने रहने को सुनिश्चित करने के राजनीतिक संघर्ष के रूप में देखा जा रहा है जिसने वर्षों से एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष रुख अपनाया है।

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