फिल्म Double XL बॉडी शेमिंग की सोच पर करारी चोट है, दुनिया के नहीं अपने 'स्टैंडर्ड' में फिट रहिए

"दुनिया को ना, या तो सपनोंं के साइज़ से एतराज़ होता है या फिर उसे देखने वालों के साइज़ से... कुछ लोगों ने मिलकर एक स्टैंडर्ड सेट किया और न जाने कब हमने उसको नॉर्मल मान लिया।"
ये डायलॉग बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरौशी की अपकमिंग फिल्म 'डबल XL’ का है। इस फिल्म के जरिए मेकर्स ने बॉडी शेमिंग जैसे गंभीर मुद्दे को समाज के बीच हल्के-फुल्के अंदाज़ में रखने के साथ ही 'परफेक्ट बॉडी’ जैसे ढेर सारे स्टीरियोटाइप को भी तोड़ने की कोशिश की है। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह आपको दुनिया से नहीं बल्कि खुद के अंदर छिपी कुंठाओं से भी लड़ना सिखाती है। आप जो हैं, जैसे हैं ये आपको खुद को एक्सेप्ट करने की बात करती है।
बता दें कि डायरेक्टर सतराम रमानी की फिल्म 'डबल XL’ इस शुक्रवार 4 नवंबर को सिनेमाघरों में दस्तक दे रही है। ये फिल्म कॉमेडी में इमोशन का तड़का जरूर है, लेकिन हमारे समाज में अपने ही घरों से शुरू हुई किसी भी लड़की के शारीरिक रंग, रुप, बनावट, वजन और शेप को लेकर उसे 'फ़िट-अनफ़िट' करार देने की सो कॉल्ड कंडिशनिंग को बखूबी दिखाती है। फिल्म बड़ी ही आसान भाषा में ये समझाने में कामयाब होती है कि ‘परफेक्ट बॉडी’ की परिभाषा बस बाज़ार और पितृसत्ता ने मिलकर गढ़ी है। और जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे तब तक हम खुद को मजबूर करते रहेंगे कि हम दुनिया के बनाए खांचे में फिट हो जाएं। लेकिन जैसे ही हम खुद की बनावट से इतर अपने टैलेंट को समझ लेंगे हम कामयाब हो जाएंगे।
फिल्म में क्या है?
फिल्म में दो ओवर वेट लड़कियों की कहानी दिखाई गई है। जिन्हें हमेशा मोटी कहकर बुलाया जाता है, उनका मज़ाक बनाया जाता है। और तो और उन्हें उनके शरीर को जज करके करियर की सलाहें भी दी जाती हैं। लेकिन ये दोनों लड़कियां अपने लिए कुछ अलग सपने देखती हैं, या यूं कहें कि ऐसे सपने देखती हैं, जो इस समाज को उनके वेट की तरह ही ओवर वेट लगता है।
पहली लड़की है मेरठ के मिडिल क्लॉस परिवार की सीधी साधी लड़की राजश्री त्रिपाठी (हुमा कुरैशी) जो क्रिकेट प्रेजेंटर बनना चाहती है, लेकिन उसे एक जॉब में इंटरव्यू से पहले ही अनसलेक्टेट बता दिया जाता है, क्योंकि वो कंपनी के हिसाब से उनके जॉब क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठती। राजश्री की मां उसके ओवर साइज़ शरीर और सपने दोनों को बिना किसी तवज्जो के साइड में रख उसकी शादी करवा देना चाहती है।
कहानी में दूसरी लड़की है दिल्ली की सायरा खन्ना (सोनाक्षी सिन्हा), जो एक संपन्न परिवार से तो हैं, लेकिन एक बेकार रिश्ते में जी रही हैं। सायरा फैशन की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहती है, लेकिन उसे बार-बार ये कहा जाता है कि ये मोटी का डिजाइन करेगी कपड़े, पहले खुद तो किसी डिजाइन में फिट हो जाए। अपने सबसे बड़े दिन यानी फैशन ट्रावलॉग के लिए लंदन जाने की खबर मिलने के दिन उसे एहसास होता है कि वो जिसे अपना सबकुछ मानती है, वो उसके साथ ही नहीं है। खैर, सपनों को पूरा करने की होड़ में दोनों लड़कियां एक इत्तेफाक से दिल्ली में मिलती हैं और फिर लंदन का सफर तय कर लेती हैं। राजश्री सायरा की प्रोजेक्ट फिल्म की डायरेक्टर बन जाती हैं और सायरा के साथ इसलिए लंदन चली जाती हैं क्योंकि उन्हें जिस कंपनी में अपने साइज की वजह से इंटरव्यू भी देने का मौका नहीं मिला, उसका बॉस लंदन में हैं और वो उसे समझाना चाहती है कि साइज नहीं नॉलेज मैटर करता है।
लंदन में सायरा का प्रोजेक्ट शूट होता है, वो हर बॉ़डी को किसी साइज में फिट करने के लिए नहीं बल्कि हर एक के लिए अलग आउटफिट डिजाइन करने में लग जाती है। वहीं राजश्री का क्रिकेट प्रेजेंटर बनने का सपना भी पूरा हो जाता है। यहां इन दो लड़कियों को इनका प्यार श्रीकांत (महत राघवेंद्र) और जोरावर रहमानी (जहीर इकबाल) भी मिल जाते हैं। अंत में हर फिल्म की तरह इस फिल्म में भी सब अच्छा- अच्छा होता है, जो आपको फील गुड की फीलिंग देता है।
बॉडी शेमिंग और इसका सामान्यीकरण
गौरतलब है कि बॉडी शेमिंग को हमारा समाज बड़े ही प्यार-लाड़, मामूली हंसी-मज़ाक के आड़ में पालता-पोसता आए हैं और अब इसका सामान्यीकरण कर दिया जा चुका है। पितृसत्ता में शरीर को हमेशा से अत्यधिक महत्व दिया गया है और चूंकि यहां केवल शरीर को अहमियत दिया जाता है, इसलिए इसकी निंदा भी अधिक होती है। फिल्म में भले ही केवल लड़कियों के बॉडी शेमिंग तक सिमित रखा गया है, लेकिन पितृसत्ता में ना सिर्फ महिलाओं को बल्कि पुरुषों की शारीरिक बनावट को भी बराबर महत्व दिया जाता है। इसलिए दोनों ही वर्गों का शारीरिक बनावट के प्रतिमानों पर सटीक ना बैठने से उनका शरीर निंदा एवं हंसी का पात्र बन जाता है।
किसी भी महिला के शरीर के लिए सिर्फ कोमल, सुंदर जैसे पर्यायवाची का इस्तेमाल किया जाना और पुरुष को काबिल, ताकतवर, सोचने और फैसले करने की क्षमता रखने वाला बताया जाना पितृसत्तात्मक सोच है। पितृसत्ता नारी के शरीर को प्रकृति का हिस्सा मानती है एवं उसका तन ही उसकी विशेषता बन जाती है तो दूसरी ओर पुरुष की विशेषता उसकी संस्कृति, विचार और मन है। यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि पितृसत्ता ना सिर्फ शरीर के रूप को परिभाषित करती है बल्कि हमें यह बताती है कि कौन सी शारीरिक बनावट प्रशंसनीय है। इसलिए हम ना सिर्फ अलग दिखने वाली महिलाओं और पुरुषों को हीन दिखाते हैं, बल्कि ट्रांस या अन्य समुदाय के लोगों को हीन नजरों से देखते हैं।
मालूम हो कि 2021 में मिस यूनिवर्स का किताब जीतने वाली हरनाज़ कौर संधू ने भी भले ही कई सौदंर्य प्रतियोगिताएं जीती हों लेकिन उन्हें भी अपने शरीर के कारण बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ा था। हरनाज़ अपने कुछ इंटरव्यू में भी बता चुकी हैं कि पहले मोटे और फिर बहुत पतले होने के कारण उन्हें लोग टोकते रहते थे।
बहरहाल, पितृसत्ता और उपभोक्तावाद के प्रचलन में बॉलीवुड का भी बहुत बड़ा योगदान है। फिल्मों में अभिनेताओं की सो कॉल्ड परफ़ेक्ट बॉडी के विचार ने समाज में जेंडर आधारित भेदभाव को बढ़ावा दिया, जिसके चलते महिला-पुरुष के जेंडर से इतर ट्रांस समुदाय व मानसिक व शारीरिक विकलांगता झेल रहे लोगों को हाशिए पर लाया गया। ऐसे में ये फिल्म एक बढ़िया उदाहरण है समाज में और अपने मन में बैठे सुंदरता के मानकों को चुनौती देने का, दूसरों की टिप्पणियों से अलग अपने आप को तराशने का।
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