न्यूज़क्लिक के साथ आए लेखक संगठन; कहा- अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सरकारी हमले के ख़िलाफ़ हम एकजुट

देश के प्रमुख कवि-लेखकों और संस्कृतिकर्मियों के संगठनों ने न्यूज़क्लिक पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी की निंदा करते हुए इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार बताया है।
आपको बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय ने मंगलवार, 9 फरवरी की सुबह न्यूज़क्लिक के दफ़्तर और प्रमुख संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और संपादक प्रांजल सहित इसके निदेशकों के घरों पर छापेमारी की। आपको मालूम हो कि अन्य जन मुद्दों के अलावा न्यूज़क्लिक इस समय दिल्ली की सीमाओं समेत देशभर में चल रहे किसान आंदोलन का व्यापक कवरेज़ कर रहा है। इसके चलते हाल में इस स्वतंत्र समाचार वेबसाइट और यू-ट्यूब पोर्टल की पाठक और दर्शक संख्या में भारी इजाफ़ा हुआ है।
न्यूज़क्लिक ने एक संक्षिप्त बयान में कहा कि, “सत्य की जीत होगी। हमें न्याय के तंत्र पर पूरा भरोसा है।”
दलित लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, प्रतिरोध का सिनेमा, न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव और जनवादी लेखक संघ ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि मोदी सरकार शुरुआत से ही सच का साथ देनेवाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को निशाने पर लेती आई है। प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, पुलिस—इन सभी महकमों का इस्तेमाल निडर मीडिया को डराने-धमकाने और ग़लत मामलों में फँसाने में किया जाता रहा है।
पूरा बयान इस प्रकार है:-
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 09/02/2021 को स्वतंत्र मीडिया पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ के दफ़्तर पर तथा उसके स्वत्वाधिकारी, निदेशकों और सम्बद्ध पत्रकारों के घरों पर छापे डालना बेबाक पत्रकारिता का दमन करने की कोशिशों की सबसे ताज़ा कड़ी है। मोदी सरकार शुरुआत से ही सच का साथ देनेवाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को निशाने पर लेती आई है। प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, पुलिस—इन सभी महकमों का इस्तेमाल निडर मीडिया को डराने-धमकाने और ग़लत मामलों में फँसाने में किया जाता रहा है। सीएए विरोधी आंदोलन और किसान आंदोलन के साथ इस तरह की दमनकारी हरकतों में और तेज़ी आई है।
ज़्यादा दिन नहीं हुए, अपनी आलोचनात्मक धार के लिए सुपरिचित छह पत्रकारों पर राष्ट्रद्रोह के आरोप के साथ एफआईआर दर्ज की गई थी। सिंघु बॉर्डर से पत्रकारों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। कश्मीर में पत्रकारों का उत्पीड़न लगातार जारी है और उत्तर प्रदेश में हाथरस मामले की रिपोर्टिंग करते पत्रकारों को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत गिरफ़्तार किए जाने की घटना भी अभी पुरानी नहीं पड़ी है।
‘न्यूज़क्लिक’ एक ऐसा मीडिया पोर्टल है जो इस सरकारी दहशत के माहौल में निर्भीकता से सच को लोगों तक पहुँचाता रहा है। सरकार की गोद में बैठकर लोकतंत्र की जड़ें खोदनेवाले मीडिया संस्थानों के मुक़ाबले ‘न्यूज़क्लिक’ मीडिया जगत के उस छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर भारतीय लोकतंत्र की उम्मीदें क़ायम हैं। उसके खिलाफ़ यह जाँच सरकार द्वारा उत्पीड़न की जानी-पहचानी चाल के निर्लज्ज इस्तेमाल का नमूना है।
हम अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के इस्तेमाल की निंदा करते हैं और ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय को अपना काम ज़रूर करना चाहिए, पर जाँच को उत्पीड़न का हथियार बनाना हर तरह से निंदनीय है।
जारीकर्त्ता:
जन संस्कृति मंच | दलित लेखक संघ | प्रगतिशील लेखक संघ | इप्टा | प्रतिरोध का सिनेमा | न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव | जनवादी लेखक संघ
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