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ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए NCERT वेबसाइट पर डाली गई शिक्षक प्रशिक्षण नियमावली को हटाया गया, LGBTQ+ समूहों ने किया विरोध

700 से ज़्यादा लोगों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र को सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भेजा गया।
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IIT दिल्ली, बॉम्बे, कानपुर, खड़गपुर के 43 LGBTQIA समूह और देशभर के 700 दूसरे लोगों ने NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) को ख़त लिखा है और मांग की है कि स्कूलों में विपरीत लिंगी (ट्रांसजेंडर्स) छात्रों के समावेश पर पहले जो शिक्षक प्रशिक्षण दस्तावेज़ लाया गया था, उसे एक बार फिर बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध करवाया जाए। यह ख़त, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण व महिला एवं बाल विकास मंत्री को भी संबोधित करते हुए लिखा गया है। साथ में "नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन को भी हस्तक्षेप करने के लिए संबोधित किया गया है।

क्या है मुद्दा?

"ट्रांसजेंडर बच्चों की स्कूली शिक्षा: चिंताएं और रोडमैप" नाम की नियमावली को एक समूह ने उत्पादित किया था, जिसमें एनसीईआरटी के लैंगिक अध्ययन विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफ़ेसर पूनम अग्रवाल, मौजूदा विभाग प्रमुख मोना यादव, प्रोफ़ेसर मिलय रॉय आनंद, दिल्ली यूनिवर्सिटी वयस्क और सतत शिक्षा और विस्तार विभाग के प्रोफ़ेसर राजेश, SATHIII (भारत में एचआईवी संक्रमण के खिलाफ़ एकजुटता और कार्रवाई) के उपाध्यक्ष एल रामाकृष्णन, अशोका यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान और मनोविज्ञान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर बिट्टू राजारमण-कोदैंया, स्वतंत्र शोधार्थी मानवी अरोड़ा, ट्रांसजेंडर रिसोर्स सेंटर की मैनेजिंग ट्रस्टी प्रिया बाबू, सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च, बैंगलोर में सहायक विक्रमादित्य सहाय, जूनियर प्रोजेक्ट फैलो आस्था प्रियदर्शनी और डेस्कटॉप पब्लिशिंग ऑपरेटर पवन कुमार शामिल थे।   

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में नलसा फैसला दिए जाने के बाद, लैंगिक और यौन संबंधी सवालों पर एनसीईआरटी का सक्रिय व्यवहार के नतीज़तन यह दस्तावेज़ बनाया गया था। इस नियमावली को एनसीईआरटी में लैंगिक अध्ययन विभाग द्वारा आगे बढ़ाया गया था। इसका उद्देश्य शिक्षकों और शिक्षक प्रशिक्षकों को ट्रांसजेंडर छात्रों की स्कूलों में जरूरत के प्रति संवेदनशील बनाना और उन्हें इस तरीके से प्रशिक्षित करना था, जिससे वे ट्रांसजेंडर छात्रों की शिक्षा तक पहुंच में मदद कर सकें। इन सुझावों में लैंगिक तौर पर तटस्थ स्कूल यूनिफॉर्म और शौचालयों का प्रावधान, इन लोगों को तीसरे जेंडर के आधार पर अलग-अलग स्कूली गतिविधियों में अलग किए जाने की प्रथा को हटाया जाना, प्रौढ़ता को रोकने वाले कारकों पर संवेदनशील और सूचनायुक्त विमर्श के साथ-साथ दूसरे लैंगिक समावेशी प्रावधान शामिल थे।

खुले खत में दावा किया गया है कि शिकायत के चलते, एनसीईआरटी के लैंगिक अध्ययन विभाग के दो वरिष्ठ शिक्षक, जिन्होंने इस नियमावली को बनाने में मदद की थी, उनका दूसरे विभागों में स्थानांतरण कर दिया गया। कई शिक्षाशास्त्री और डॉक्टर, इस नियमावली की वैज्ञानिक जरूरत से सहमति रखते हैं।

नियमावली का विरोध

अक्टूबर के आखिर में यह नियमावली एनसीईआरटी की वेबसाइट पर डाली गई थी। फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के बाद, इस नियमावली का मसौदा तैयार करने वाले समूह के सदस्यों को तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। सहाय को विशेष तौर पर निशाना बनाया गया। कई लोगों ने समूह की शरीर, यौन और लैंगिक राजनीति को निशाना बनाया ताकि उनके योगदान को कम कर, नियमावली को कमजोर किया जा सके। 

राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक विनय जोशी की शिकायत पर एनसीईआरटी को नोटिस भेजा। जोशी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि "लैंगिक संवेदनशीलता लाने की आड़ में यह स्कूली छात्रों को मनोवैज्ञानिक ढंग से डराने की साजिश है।" जोशी ने शिकायत में "नियमावली में दर्ज विसंगतियों" को ठीक करने की मांग की, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि यह विसंगतियां कौन सी हैं। 

नोटिस के मुताबिक़, शिकायत में चार मुद्दों को उठाया गया, 

1) द्वैध व्यवस्थाओं को हटाने से स्कूली बच्चों से समता का अधिकार छीन लिया जाएगा। 

2) घर और स्कूल में विरोधाभासी माहौल के चलते स्कूली बच्चे गैरजरूरी मनोवैज्ञानिक तनाव का शिकार बनेंगे। 

3) प्रौढ़ता को रोकने वाले कारकों का जिक्र, वयस्कों के लिए है 

4) मसौदा तैयार करने वाली समिति की योग्यताओं और साख पर सवाल। 

नियमावली को वापस लाने के साथ, खुले खत में यह मांग भी की गई कि बाल अधिकार आयोग एनसीईआरटी को दिया गया नोटिस वापस ले और विपरीत लिंगी लोगों के प्रति खुली घृणा जाहिर करने के लिए माफी मांगे।

ख़त में बताया गया है कि शिकायत के चलते एनसीईआरटी के लैंगिक अध्ययन विभाग में तीन सबसे वरिष्ठतम सदस्यों में से दो का स्थानांतरण कर दिया गया, इन लोगों ने यह नियमावली बनाने में सहयोग किया था। प्रोफ़ेसर यादव का स्थानांतरण, विशेष जरूरतों वाले समूहों की शिक्षा वाले विभाग में कर दिया गया, जबकि प्रोफ़ेसर अग्रवाल को केंद्रीय तकनीकी शिक्षण संस्थान पहुंचा दिया गया। तीसरे प्रोफ़ेसर जिनका स्थानांतरण नहीं हुआ, प्रोफ़ेसर आनंद, वे अगले विभागाध्यक्ष बनने वाले थे, लेकिन अब उन्हें बायपास कर, ललित कला विभाग की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर ज्योत्सना तिवारी को अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया। जबकि प्रोफ़ेसर तिवारी ने कभी लैंगिक अध्ययन विभाग में काम नहीं किया। 

चिंताएं

नियमावली को वापस लाने के साथ, खुले खत में यह मांग भी की गई कि बाल अधिकार आयोग एनसीईआरटी को दिया गया नोटिव वापस ले और विपरीत लिंगी लोगों के प्रति खुले तौर घृणा जाहिर करने के लिए माफी मांगे। ख़त में कहा गया कि नियमावली के खिलाफ़ मुख्य शिकायत और सोशल मीडिया पर हुआ विरोध, अधूरी जानकारी से उपजा है और यह ट्रांसफोबिक (ट्रांसजेंडर लोगों से घृणा करने वाला) है। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने शिकायत पर सुनवाई के दौरान ऊचित बुद्धिमत्ता का प्रयोग नहीं किया।

खत में कहा गया कि लैंगिक तौर पर तटस्थ शौचालयों से जो कथित तनाव की बात शिकायत में की गई है, वह गलत तरीके से बताई गई है। विकल्प से तनाव उत्पन्न नहीं होता, बल्कि विकल्प के ना होने से तनाव होता है। खत में सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा ट्रांसजेंडर्स के मुद्दों पर गठित की गई विशेषज्ञ समिति की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की बात गई थी, ताकि लिंग घोषित ना करने वाले बच्चों को भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत कल्पित शिक्षा दी जा सके, ताकि उनके खिलाफ़ होने वाले अत्याचार और भेदभाव को ख़त्म किया जा सके, जिससने उनकी स्कूल छोड़ने की दर में कमी आए। 

ख़त में कहा गया कि सोशल मीडिया पर दिखाया गया गुस्सा, उसी तरह की हिंसा है, जो ट्रांसजेंडर छात्रों को स्कूलों में झेलनी पड़ती है। सौदे को कई समूहों और लोगों से देशभर में समर्थन मिला था। इस पर हस्ताक्षर करने वाले अपने विरोधियों को समझाना चाहते थे कि नियमावली का मकसद शिक्षक, पालकों और दूसरे लोगों को ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति ज़्यादा दयाशील बनाना है। ताकि शिक्षा के आयाम का विस्तार किया जा सके। 

द लीफलेट से बात करते हुए IIT दिल्ली में लैंगिक और यौन अधिकार शोधार्थी व खुले ख़त के मसौदे को तैयार करने वाले वैवब दास कहते हैं, "नियमावली उस जागरुकता का प्रतिबिंब है, जो तय करती है कि शिक्षा किसी के शरीर की अखंडता से प्रभावित ना हो, बल्कि यह उसकी इच्छा से चले। यह एक ज़्यादा समावेशी और ज़्यादा दयाशील शिक्षातंत्र की तरफ़ सकारात्मक कदम है। नियमावली के खिलाफ़ जिस तरह का ऑनलाइन कैंपेन चलाया गया, उससे सवाल उठता है कि आजादी और व्यक्तिगत संप्रभुत का क्या मतलब है, अगर उसे सूचना की रिक्त्ता में इस्तेमाल किया जाए।"

यह खुला ख़त, NCTP (नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन) जैसे संस्थानों द्वारा हस्तक्षेप ना करने की प्रतिक्रिया में आया है। यह सार्वजनिक वक्तव्य संबंधित मंत्रालयों और परिषदों को भेज दिया गया है। अगर संबंधित संस्थाओं द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती, तो जनहित याचिकाएं दायर करने के कई सामूहिक और व्यक्तिगत प्रयास तैयारी में हैं, ताकि उन्हें मजबूर किया जा सके। 

साभार- द लीफलेट

(गौरी आनंद एक पर्यावरण वकील हैं और वे द लीफलेट टीम की शोध और संपादकीय टीम का हिस्सा हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

LGBTQ+ Groups Decry Pull-Out of Teacher Training Manual on Trans Students from NCERT Website

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