इतवार की कविता : मिलते रहा करो!

मिलते रहा करो!
जब नहीं रहूँगा मैं
तुम्हारी आँखें धारासार बरसेंगी
पर नहीं जान पाऊँगा मैं
बेहतर है रो लें हम अभी
साथ-साथ
तुम भेजोगे फूल
नहीं देख पाऊँगा मैं उन्ह़े
बेहतर है भेज दो अभी
तुम करोगे स्तुति मेरी
मैं नहीं सुन पाऊँगा
बेहतर है अभी करो मेरी प्रशंसा
मेरी ग़लतियों को माफ़ कर दोगे
पर नहीं जान पाऊँगा मैं
बेहतर है अभी माफ़ कर दो उन्हें
मुझे याद करोगे मेरे बाद
मैं नहीं महसूस कर पाऊँगा
बेहतर है मुझे अभी याद कर लो
तुमने मेरे साथ और वक़्त
गुज़ारने की तमन्ना की है
बेहतर है अभी गुज़ार लो
मेरे जाने की ख़बर मिलते ही
चल पड़ोगे घर मेरे
संवेदना जताने के लिए
पर साल भर से हमने बात तक नहीं की
अभी इसी वक़्त देखो मेरी ओर
अकेले मैं बोल सकता हूँ
साथ हो तो कर सकते हैं बात
अकेले ख़ुश हो सकता हूँ
तुम्हारे साथ उत्सव मना सकता हूँ
अकेले मुस्कुरा भर सकता हूँ
तुम्हारे साथ खिलखिला सकता हूँ
यही ख़ूबसूरती है
इन्सानी रिश्तों की
एक दूजे के बिना
कुछ भी नहीं हम
मिलते रहा करो!
- त्ज़ु फेंग
अनुवाद: हूबनाथ
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