इतवार की कविता: लखीमपुर के शहीद किसानों का मर्सिया

लखीमपुर के शहीद किसानों का मर्सिया
जिस कार से टक्कर हुई वो कोई कार नहीं; हवा थी
जिन निर्भीक और मासूम किसानों की पगड़ियाँ
उछल कर धूल में गिरीं
वो मसख़रे के हाथ की सफ़ाई थी, अभिनय था
जो लोग गाड़ी के नीचे कुचल कर मार दिए गए
वे नकली पुतले थे
यह सब जिसपर वावेला है
वो लोकतंत्र की कला थी
संत की कल्पना थी
कोई गोली नहीं चली
यह तो किसी शास्त्रीय नृत्य का अंग था
तबले की थाप थी
जिसे आप समझ नहीं पाए
आप कलाहीन लोग
इसपर कोई कैसे उत्तेजित हो सकता है !
जबकि किसी कवि की कविता थी यह
या किसी लेखक की कथा का सूत्र वाक्य
या किसी नाटक का कलात्मक दृश्य
यह तो बस मृत्यु का सौंदर्य था
जो सड़क पर बिखर गया
लाल लहू नहीं, यह लाल रंग था
जो न जाने क्यूँ
अँधेरे के बाद भी रिस्ता रहा
सड़कों पर
ज़ेहनों पर
और हमारे दिलों पर...
- अदनान कफ़ील दरवेश
दिल्ली
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