इतवार की कविता: सभी से पूछता हूं मैं… मुहब्बत काम आएगी कि झगड़े काम आएंगे

ग़ज़ल
अँधेरों में न तो रुपया, न हीरे काम आएंगे,
वहाँ केवल चिराग़ों के उजाले काम आएंगे.
सभी से पूछता हूँ मैं, हमें जब साथ जीना है,
मुहब्बत काम आएगी कि झगड़े काम आएंगे.
बुज़ुर्गों की विरासत है इसे कूड़े में मत फेंको,
मुसीबत में ये सिक्के ही तुम्हारे काम आएंगे.
हमारे बीच की ये खाइयाँ तक़लीफ़ ही देंगी,
गिराओ मत ये पक्के पुल पुराने, काम आएंगे.
किसी इंसान की पीड़ा से मतलब ही नहीं जिनको,
कभी ऐसे फरिश्ते क्या किसी के काम आएंगे.
बग़ीचे में जो कांटे बो रहे हो, वो चुभेंगे ही,
किसी गफ़लत में मत रहना कभी ये काम आएंगे.
हमेशा आदमी ही आदमी के काम आएगा,
न तो मंदिर, न ये मस्जिद न गिरजे काम आएंगे.
डिज़ाइनदार कुर्ते और जेकेट का ज़माना है,
सियासत में न अब खादी, न चरखे काम आएंगे.
- अशोक रावत
(आगरा)
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