Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सय्याद की जै-कार है, सय्याद रहम दिल/ पहले से कुछ बड़े नए पिंजरे बना दिए

‘इतवार की कविता’ में आज पढ़िए कवि-पत्रकार मुकुल सरल की कुछ चुनिंदा नई ग़ज़लें।
cage
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

1. 

रहबर ने रास्तों में ही रहज़न बिठा दिए

ये कौन ना-ख़ुदा हैं कि कश्ती डुबा दिए

 

दिल बट गया, जां बट गई सरहद के बीच में

हमने ये कैसे मुल्क के नक़्शे बना दिए

 

धर्मों की राजनीति ने क्या गुल खिलाए हैं

परचम के साथ हाथ में ख़ंजर थमा दिए

 

नफ़रत ने यार कैसा ये नुक़सान कर दिया

दो-चार पल थे प्यार के वो भी गंवा दिए

 

तेरी नहीं, मेरी नहीं, ये किसकी बात थी

ग़ैरों की बात में ही हसीं पल बिता दिए

 

सय्याद की जै-कार है, सय्याद रहम दिल

पहले से कुछ बड़े नए पिंजरे बना दिए

 

पहले उजाड़े गांव ये शहरों के नाम पर

फिर बस्तियों के नाम पे घेटो बना दिए

 

लो देख लो मकां मेरा भीतर से हाल क्या

लो खिड़कियों से मैंने ये परदे हटा दिए

 

ऐसी हुई तरक़्क़ी मैं अब क्या कहूं ‘सरल’

हाकिम ने हर गली में ही मक़्तल बना दिए

 

2. 

नफ़रतों के सिलसिले मेरे नगर तक आ गए

पहले चौराहे तलक थे अब तो घर तक आ गए

 

सोचते थे जो किनारे बैठ कर महफूज़ हैं

आंख जब उनकी खुली देखा भंवर तक आ गए

 

बज गई ख़तरे की घंटी अब तो यारो जागिए

देखिए साये भी अब दीवारो दर तक आ गए

 

मंज़िलों की बात ही क्या रास्ता भी खो गया

किस सफ़र पे निकले थे हम किस सफ़र तक आ गए

 

कौन आके ले गया मौज-ए-बहाराँ मुल्क की 

क्या हुआ मौसम को गुलशन बे-समर तक आ गए

 

दिल में उनके हम जगह पा जाएंगे अब है यकीं 

दूर तारों से चले थे अब नज़र तक आ गए

 

हम तो निकले थे ‘सरल’ आवारगी में बस यूं ही

यूं ही चलते चलते तेरी रहगुज़र तक आ गए 

 

3.  

बात वो साफ़ साफ़ कहता है

इसलिए मुश्किलों में रहता है

 

जंग कोई खेल तो नहीं यारो

फिर भी क्यों जंग जंग कहता है

 

चौके छक्के नहीं है किरकिट के

जान जाती है, ख़ून बहता है

 

पूछ उस से तू जंग का मतलब

वो जो सरहद के पास रहता है

 

हुक्मरां लड़ते अपनी कुर्सी को

बस बहाना ही मुल्क रहता है

 

टी.वी. इक टूलकिट है हाकिम का

झूठ नस नस में इसकी बहता है


4. 

अगर फ़ोटो हक़ीक़त से भी ज़्यादा अच्छा आया है 

तो समझो कैमरे में फिर कोई फ़िल्टर लगाया है

 

नहीं दिखते हैं उनके ऐब तो फिर ये समझ लीजे

मुखौटा है या चेहरे पर बहुत मेकअप चढ़ाया है

 

अगर सच बोलने में डर रहा है आइना फिर तो

उन्होंने आइने को तोड़ने का डर दिखाया है

 

अगर ख़ामोशी ओढ़े बैठे हैं दानीशवर समझो

ज़बां खींची गई है या कोई इक़राम पाया है

 

ये जो हम सुन रहे हैं एक ही व्यक्ति का जै-कारा

हक़ीक़त है नहीं ये दर-असल कैसट बजाया है

 

ये हीरो ऐसे ही परदे पे हीरो बन नहीं जाते

कोई संवाद लिखता है किसी ने गाना गाया है

 

वो जिसको तुम महा-मानव समझते, पूजते हो तुम

वो मानव भी नहीं ए-आई* का अवतार आया है

 

‘सरल’ तुम देख लो और सोच लो अब अपने बारे में

बहुत ही बोलते हो तुम, चलो वारंट आया है

 

( *ए-आई (AI)- Artificial intelligence)

 

5. 

आई है जो मुश्किल घड़ी ना आप टलेगी

कोशिश से ही ये बिगड़ी हुई बात बनेगी

 

यूं बैठ के चुपचाप न देखो ये तमाशा

काटे से ही ये पांव की ज़ंजीर कटेगी

 

ये ज़ुल्म की मीनार है लोहे की बनी है

लोहे के हथौड़े से ही मीनार गिरेगी

 

रौशन करो दीये औ मशाले भी जलाओ

ज़ुल्मात की ये रात है ऐसे न ढलेगी

 

दीवार न नफ़रत की उठाओ कि कहें सच

दीवार ये फिर आपके ही सिर पे गिरेगी

 

कुछ देर की ही बात है तुम देखना फिर से

तुम देखना हर झूठ की बुनियाद हिलेगी

 

— मुकुल सरल

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest