इतवार की कविता : कंटीले तार लम्बी नुकीली कीलों के घेरे में लोकतंत्र

कंटीले तार लम्बी नुकीली कीलों के घेरे में लोकतंत्र
बेहद ठंडा
पथरीलापन
अचानक छू गया
गर्म रजाई में
जब ख़्याल में उतरे
हज़ारों हज़ार किसान
खुले आकाश तले
बर्फ़ीली हवाओं में
मज़बूत इरादों की दीवार बनाए
धारा के विपरीत
हौसले के आवेग की
लहरों के साथ
तन कर खड़े
प्रचलित किसान की
परम्परागत छवि को तोड़ते
आज की दुनिया में
सब से अलग
आंदोलन को इंसानियत के
काबिल बनाते
अपने संघर्ष में
उजाले की गति भरते
पूरी आज़ादी की शान से
लहराते एकता का तिरंगा
नसों में लहू के साथ
जीतने का जोश भरते
अपने मुद्दो पर अडिग
विनम्र अनुशासित
धर्म निरपेक्ष भाईचारे से बंधे
सरकार के तीन कृषि-क़ानूनों के ख़िलाफ़
लोकतांत्रिक ढंग से लामबंद
आती हैं ख़बरें
उन पर ज़ुल्म बढ़ने की
शहर का अंधिकांश सुविधाभोगी वर्ग
सिमटा है डर के खोल में
और
दिल्ली के बॉर्डर ने
निर्भीक उत्साह से छलकती
गुलज़ार आवाज़ें
स्त्रियों, युवा, बुज़ुर्ग और बच्चों की
किसान विरोधी क़ानून वापस लो
तब तक हम वापस नही जाएगें
अब यहीं हमारा डेरा है
छह महीने का राशन है
आगे और जुड़ेगा
अन्नदाता की अपील है
हमें दया की भीख नही
अपना हक़ चाहिए
हड्डियाँ छेदती इस ठंड से
वाकिफ़ हैं हम
हमें डराओ नही
पूस की शीत लहरी में ही
फसलों की रखवाली करते हैं
शरद में सितारों की छाँव तले
खेतों में पानी लगाते
घने कोहरे के भीतर धंस
बदलाव की पीली रौशनी में
श्रम साधना
ये बारिश, आधियां, धूप
हमारी दोस्त हैं
आज स्त्री मन की तहों में भी
इन क़ानूनों के ख़िलाफ़
विद्रोह की गर्जना है
हवाओं में दूर तक
बीज की तरह बिखर जाएगी
ये किसान स्त्रियां
हमारी सबसे मज़बूत बराबर की साथी
हर मोर्चे पर सक्रिय
पितृसत्ता की काली छाया से मुक्त
होती हुई
सही ख़बर के लिए
अपना अख़बार तक निकालती बेटियां
तुम्हारे शब्द बाणों से
घायल हुए हम
हमें कई नामों से नवाज़ा
आंतकवादी, खालिस्तानी, देशद्रोही
गद्दार, टुकड़े-टुकड़े गैंग और भी बहुत कुछ
हमारे आत्म सम्मान पर
घन चोट
जीवन को बचाने के लिए
मुट्ठी भर अनाज से
जुड़ता है हमारा सुख
उसे अडानी अम्बानी जैसे
अपने संरक्षित पूंजीपति को
बेच देना चाहते हो
अपनी ज़मीन नहीं देंगे
अपनी मेहनत की फसलें
जमाखोरी के गोदामों में
सड़ने नहीं देंगे
नहीं चाहिए ग़ुलामी
हम सब मिल कर
देंगे चुनौती
जैसे जंगल, ज़मीन नदी, गांव से
बेदख़ल किया
आदिवासी, दलित को
अब यही खेल हमसे
नहीं बिल्कुल नहीं
सलामत रखनी है अपनी धरती
सामने एक लक्ष्य
उनकी जायज़ मांगे
यह किसान उतना ही
देशभक्त है
जितना सरहद पर लड़ता जवान
जो तिरंगे के लिए शहादत देकर
तिरंगे में लिपट
किसानों के आंगन में
भेजा जाता रहा है
लोकतंत्र की जीवंतता का प्रतीक है
यह आंदोलन
तुम्हारे टी.वी. एंकर क्यों हमारे लिए
विषैले वायरस छोड़ते हैं
धैर्य से हम सब
सरकारी वार्ता में
शामिल होते रहे
बस
झूठे आश्वासनों में फंसे नहीं
अपने आंदोलनकारी साथियों की मौत को
शहादत का दर्जा देते
मन की बेचैनी में टीस थी
लोकतंत्र में यह हत्या लगती
उनके धीरज
सघन वट वृक्ष की फैली जड़ें
धरती के सीने में उतरी हुईं
इस फ़ौलादी एकता को
बांटना, काटना और कुचल देना
मुश्किल
तमाम साज़िशों में
सिद्धहस्त सत्ता
गणतंत्र दिवस की घटना
घटाई गई
संघर्ष की लोकप्रिय छवि को
कलंकित किया
सच पर झूठ की परतें
चढ़ाते रहे
दम्भ के हमले से
आहत
किसान नेता
अपना विकल दर्द
पलकों में ढांप नहीं पाए
यह आंसू
जन-जन के रक्त में घुल
सैलाब बन उमड़ा
किसानों के स्वाभिमान पर चोट थी
आंदोलन परवान चढ़ा
पूरे वेग से
आत्मविश्वास की लगन से
नारे दिशाओं में गूंजने लगे
“ज़ुल्मी जब जब ज़ुल्म करेगा
सत्ता के हथियारों से
चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा
इंक़लाब के नारों से...”
हमारी हार लोकतंत्र की हार है
इसी लोकतंत्र में
हम फतेहयाब होंगे
जो संघर्ष में मरते हैं
वे इतिहास में ज़िंदा रहते हैं।
किसानों से डरी सत्ता
बॉर्डर पर खाइयां कीले कंटीले तार दीवार
बहुपरत की सीमेंटेड बैरिकेडिंग
सर्मथक, आवश्यक सुविधाओं की पहुंच
बाधित
एक फोन की दूरी पर हूं कि जुमलेबाज़ी
और संचार माध्यम काट दिया है
किसानों ने कहा
यह लम्बे संघर्ष की कसौटी है
हम कांटो के पास फूल रोपेंगे
लाख घना अंधेरा हो
हम उम्मीद नहीं छोड़ते
तुम्हारा किया, आंदोलन का मज़ाक बनाना
सब याद रक्खा जाएगा
यह बेमिसाल इतिहास रच रहे थे
ताकि घरों के चूल्हे
जलते रहें
प्रेम और न्याय के पक्ष में
खड़े लोग
आबाद रहें
मनुष्यता के नए शब्द
गढ़े जा रहे थे
पूरे विश्व के आंदोलनजीवी
उन्हें मालूम था
उनकी मुठभेड़
ताक़त से है
तब भी इंतज़ार है
अच्छी ख़बर का।
- शोभा सिंह
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