ख़रीदो, ख़रीदो, चमन बिक रहा है

''चमन बिक रहा है''
ख़रीदो, ख़रीदो, चमन बिक रहा है
ये शाख़ें ख़रीदो, गुलों को ख़रीदो
कबूतर बिका, बुलबुलों को ख़रीदो
ये कोयल की बोली, ये कू कू बिकाऊ
सभी है बिकाऊ के जो है टिकाऊ
परिंदों की बिकने लगी हैं उड़ानें
चले आओ भाई सजी हैं दुकानें
बहारें ख़रीदो के ख़ुशबू ख़रीदो
ये झेलम ख़रीदो के सरयू ख़रीदो
बिकाऊ हैं अब देखो गंगो-जमन भी
बिकाऊ है इन्सानियत का चलन भी
बिके जा रहे हैं ज़बानों के चैनल
बिकाऊ हैं अब सच की राहें मुसलसल
बिकाऊ है अब पत्ता-पत्ता ये कलियां
नगर ही नहीं गांव की सारी गलियां
बहुत माल है अपने पुरखों का प्यारे
ख़रीदो ख़रीदो ये दिलकश नज़ारे
कहो अब ये चिड़ियों से मत चहचहाऐं
के अब बिकने वाली हैं घर की हवाऐं
किसी शाख़ पर अब न बैठें परिंदे
जो बोली लगाऐ वही शाख़ चुन ले
बिकाऊ है सामान सब इस चमन का
नहीं डर रहा अब तो दार-औ-रसन का
बिके अब न उल्फ़त का बरगद बचा लो
उठो नौजवानो ! ये संसद बचा लो
- ओमप्रकाश 'नूर’
रुड़की
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