पंजाब: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की हालिया यात्रा के मायने!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पंजाब में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इसी के तहत सर-संघचालक मोहन भागवत तीन दिन पंजाब के दौरे पर रहे। इस दौरान उन्होंने प्रांत प्रचार प्रमुखों और संगठन में अलग-अलग जिम्मेदारियां संभाल रहे 800 से ज़्यादा सक्रिय कार्यकर्ताओं से 'विशेष चर्चा' की।
आरएसएस, भाजपा का पैतृक संगठन है। भाजपा (और आरएसएस) का लक्ष्य पंजाब को साधना है। तकरीबन दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में राज्य के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अलग पार्टी बनाकर भाजपा से हाथ मिलाया था लेकिन बुरी तरह मात खाई थी। बाद में वह और कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ और अन्य कई कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। किसान आंदोलन के दौरान भाजपा का शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूट गया था। तभी से भाजपा पंजाब में अपने पांव जमाने की कवायद में है लेकिन उसे कामयाबी हासिल नहीं हो रही। बावजूद इसके कि बेशुमार सिख चेहरों को पार्टी में शामिल कराया गया।
भाजपा सूबे में शुरू से ही हिंदू राजनीति करती आई है और शिरोमणि अकाली दल खुद को सिख हितों का अभिभावक और प्रवक्ता कहता रहा है। इसीलिए सुर मिलते रहे। राजसुख भी! फौरी तौर पर दोनों जुदा हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी का 'अटल' फैसला है, आगामी लोकसभा चुनाव अपने बलबूते लड़ा जाएगा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की तीन दिवसीय पंजाब यात्रा भी यही संकेत देती है।
कार्यकर्ताओं के साथ विभिन्न बैठकों में मोहन भागवत ने निर्देश दिए कि पंजाब में संघ का दायरा विकसित किया जाए। संघ परिवार के विस्तार के लिए हर हफ्ते कार्यक्रम आयोजित किए जाएं और गांव स्तर पर पहुंच बनाई जाए। बच्चों तक को आरएसएस से जोड़ा जाए। मीडिया को सरसंघचालक मोहन भागवत की बैठकों से एकदम दूर रखा गया। सूत्रों के मुताबिक भागवत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य के सिख समुदाय को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ लाने की पुरज़ोर कोशिश की जानी चाहिए। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर बताया कि संघ परिवार इसलिए भी सिखों का साथ चाहता है कि लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मिल सके। सूबे में सिख समुदाय के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बेशक कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य समुदाय और वर्गों के लोगों के मत भी। हासिल जानकारी के मुताबिक मोहन भागवत ने आरएसएस कार्यकर्ताओं को यह निर्देश भी दिए कि पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों को भी ज़्यादा से ज़्यादा संघ के साथ जोड़ा जाए।
पंजाब में 'डेरे' चुनावी राजनीति में अहम भूमिका अदा करते हैं। राधा स्वामी सत्संग ब्यास राज्य का प्रमुख डेरा है। मोहन भागवत अपनी जालंधर यात्रा के दौरान विशेष रूप से वहां गए और डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों से उनकी दो घंटे तक बैठक हुई। बताया जाता है कि उन्होंने आने वाले लोकसभा चुनाव के मुद्दे पर विशेष तौर पर बातचीत की।
संघ प्रमुख के डेरा ब्यास में जाने के भी राजनीतिक निहितार्थ हैं। इस डेरे से बड़ी तादाद में पंजाब के लोग जुड़े हुए हैं। राज्य के रिवायती राजनीतिक दलों के नेता इस डेरे में अक्सर नतमस्तक होते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी यहां आ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी। कई अन्य केंद्रीय मंत्री भी।
राज्य में आरएसएस का सहयोगी संगठन राष्ट्रीय सिख संगत भी इन दिनों खूब सक्रिय है। भाजपा की कोशिश है कि राष्ट्रीय सिख संगत के जरिए शिरोमणि अकाली दल के जनाधार में सेंध लगाई जाए। अपनी पंजाब यात्रा के दौरान मोहन भागवत ने राष्ट्रीय सिख संगत के नेताओं से अलग से बैठक की और उन्हें दिशा-निर्देश दिए कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे सिख समुदाय में किस तरह 'विशिष्ट भूमिका' निभाएं। बताते हैं कि उनका ज़ोर इस बात पर रहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से खफा किसानों को 'उदार' किया जाए।
दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी मूल अवधारणा में सिखों को अलग कौम नहीं मानता। हिंदू समाज का एक अंग मानता है। सिखों का प्रभावी तबका इसे नामंजूर करता आया है। इस मुद्दे पर अतीत में सिखों और आरएसएस में टकराव होता रहा है। लेकिन आरएसएस ने अपनी रणनीतियां जारी रखीं। गौरतलब है कि 2001 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में आरएसएस ने माना था कि सिख अलग समुदाय है और उसकी अपनी एक पहचान है। लंबे विवाद के बाद यह माना गया था लेकिन संघ अपनी रणनीति से पीछे नहीं जाता और भीतर ही भीतर अपने एजेंडे पर बाकायदा काम कर रहा है। खैर, सूत्रों के अनुसार आरएसएस चीफ छह महीने बाद फिर पंजाब आ रहे हैं।
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