गुजरात व राजस्थान में पशुओं में तेज़ी से फैल रहा लंपी रोग, मौत के आंकड़ों में वृद्धि

गुजरात में लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) के कारण मवेशियों की मौत का आंकड़ा 1,565 तक पहुंच गया है। यह बीमारी 20 जिलों के 2,083 गांवों में फैल गई है और लगभग 55,950 पशु इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। यह जानकारी राज्य सरकार ने सोमवार को दी है।
वहीं राजस्थान में इस बीमारी से 2100 गायों की मौत हो गई है। इस बीमारी से 40 हजार से ज्यादा गायें प्रभावित हैं। ये बीमारी राजस्थान के दस जिलों में फैल गई है। इसमें बिकानेर, जोधपुर और जेसलमेर शामिल हैं। वहीं इस बीमारी से 90 प्रतिशत गायों की मौत हो रही है। ये बीमारी सांड और भैसों में भी फैल रही है।
उधर कुछ लोगों का आरोप है कि मरने वालों की संख्या कहीं अधिक हो सकती है। गुजरात कांग्रेस की किसान शाखा के नेता पाला अंबालिया के हवाले से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, “मुंद्रा और मांडवी तालुका में मरने वालों की संख्या बढ़ी है जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। यहां यह आंकड़ा लगभग 20,000 से 25,000 तक हो सकता है। स्थिति बहुत गंभीर है। हर दिन गाय-भैंसों के शवों के ढेर देखे जा सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि गुजरात में इसका प्रकोप पहली बार मई के महीने में उस समय सामने आया था जब जामनगर, देवभूमि द्वारका और कच्छ जिलों में कुछ मौतें हुई थीं।
अंबालिया ने कहा कि उन्होंने देवभूमि द्वारका में जिला अधिकारियों को पत्र लिखा था, जिसके बाद स्थिति बेहतर हुई।
संक्रमित जानवरों को बुखार आना, आंखों और नाक से स्राव होना, मुंह से लार आना, पूरे शरीर में नरम छाले जैसी गांठें, दूध का उत्पादन कम होना और खाने में परेशानी होना शामिल है जिससे बीमार जानवर की मौत हो जाती है।
अंबालिया ने दावा किया कि सरकार अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए हताहतों के आंकड़ों को कम करने की कोशिश कर रही है।
गौ गोपाल समिति नामक एक संगठन चलाने वाले कच्छ के मुंद्रा निवासी नारन गढ़वी ने कहा कि कच्छ के 969 गांवों में केवल 14 पशु चिकित्सक हैं। बता दें कि ये समिति मवेशियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाती है।
गढ़वी का कहना है कि, “प्रागपार में 1,200 मौतें हुई हैं, वहीं भुजपुर में 800 गाय-भैंस की मौत हुई है, बिडाडा में इस बीमारी से लगभग एक हजार पशुओं की मौतें हुई हैं जबकि तलवना में 800 मौतें हुई हैं। ये कच्छ के कुछ गांव हैं और कई और भी हैं। हमारे अनुमान से कच्छ में इसके कारण कम से कम 30,000 गायों की मौत हुई है।"
उन्होंने कहा कि,, "उन्होंने इस रोग के प्रकोप और इसके प्रसार को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में अधिकारियों को चेताया था। लेकिन उन्होंने अब तक ध्यान नहीं दिया, जिससे स्थिति और खराब हो गई।"
लंपी रोग कैसे फैलता है
मच्छरों, मक्खियों, जूं व ततैयों से वायरस के जरिए यह रोग फैलता है। यह पशुओं के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के माध्यम से फैलती है।
लंपी रोग की प्रजातियां
लंपी रोग की मुख्यतः तीन प्रजातियां होती हैं। पहली और सबसे मुख्य प्रजाति 'कैप्रिपॉक्स वायरस' है। इसके अलावा अन्य दो प्रजातियों में गोटपॉक्स वायरस और शीपपॉक्स वायरस हैं।
लंपी रोग के लक्षण
पशुओं में बुखार आना, आंखों एवं नाक से स्राव, मुंह से लार निकलना, पूरे शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना, दूध उत्पादन में कमी आना और पशुओं को भोजन करने में परेशानी इस बीमारी के लक्षण हैं। इसके अलावा इस रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं। गर्दन और सिर के पास इस तरह के गांठें ज्यादा दिखाई देते हैं।
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