जनादेश 2024: मोदी-योगी दोनों के लिए साफ़ संदेश कि अब और नहीं
इस चुनाव के नतीजों ने कई साफ़ संदेश मोटे-मोटे अक्षरों में दीवार पर लिख दिए हैं–
1. यह नरेंद्र मोदी की हार है।
2. यह मोदी की हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक और पूंजीवादी नीतियों और तानाशाही रवैये की हार है।
3. यह योगी के बुलडोज़र राज की हार है।
4. यह मोदी सरकार के लिए साफ़ संदेश है कि अब नारों और जुमलों से काम नहीं चलेगा। अब काम करके दिखाना होगा, डिलीवरी करनी होगी।
5. नतीजे बता रहे हैं कि नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खुल गई है।
6. यह गोदी मीडिया के लिए भी संदेश है कि अब गोदी से उतर कर अपने पांव पर ज़मीन पर खड़े होइए।
7. यह विपक्ष के लिए भी संदेश है कि और एकजुटता और समझदारी से राजनीति करते हुए चुनाव लड़ना होगा।
8. और साफ़ अर्थों में यह संविधान और लोकतंत्र परस्त लोगों की जीत है। और उन्होंने विपक्ष के साथ अपने देश को बचाने की राह में पहला क़दम बढ़ा दिया है।
यह मोदी की हार क्यों है
यह मोदी की व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह से हार है। क्योंकि यह पूरा चुनाव मोदी ने अपने नाम से लड़ा। मैं–मैं, मोदी–मोदी, मोदी की गारंटी उनकी तरफ़ से पूरे चुनाव में सिर्फ़ यही सुनाई दिया। वो तो अब चुनाव परिणाम के बाद एनडीए सुनाई पड़ रहा है। एनडीए तो छोड़िए पूरे चुनाव में बीजेपी शब्द भी बहुत कम सुनाई पड़ा।
इस वजह से यह एनडीए का मुश्किल से बहुमत तक पहुंचना और बीजेपी का बहुमत से भी नीचे रहना मोदी और मोदी सरकार की हार है।
मोदी की व्यक्तिगत हार अपने चुनाव से लेकर बीजेपी के प्रदर्शन तक में निहित है।
नरेंद्र मोदी अपनी बनारस (वाराणसी) की सीट मुश्किल से जीत पाए। बनारस में नारा दिया गया था कि अबकी बार दस लाख पार। लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना भी मुश्किल हो गया। यह सब उनके प्रधानमंत्री रहते और पूरे देश में उन्हीं के नाम से चुनाव लड़े जाने के बावजूद हुआ।
यह चुनाव आयोग से लेकर सारी एजेंसियों और मीडिया तक को अपनी मुट्ठी में रखने के बावजूद हुआ।
यह विपक्ष के नेताओं और मुख्यमंत्रियों को जेल में डालने और विपक्ष के बैंक खाते फ्रीज़ करने के बावजूद हुआ।
यह इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये सारा पैसा हथियाने के बावजूद हुआ।
बनारस में 2014 में नरेंद्र मोदी ने 5,81,022 वोट पाए थे। जबकि उनके मुकाबले आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 2,09,238 वोट पाए। यानी मोदी जी ने उस साल 3,71,784 वोटों से जीत दर्ज की। उस चुनाव में भी कांग्रेस की तरफ़ से अजय राय उम्मीदवार थे और उन्होंने कुल 75,614 वोट पाए।
2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी 6,74,664 वोट पाए और उनके निकटतम प्रतिद्वद्वी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार 1,95,159 वोट पाए और कांग्रेस के अजय राय को मिले कुल 1,52,548 वोट। यानी इस तरह 2019 का चुनाव भी मोदी जी ने 4, 79,505 वोटों से जीता। यानी 2014 से भी बड़ी जीत।
लेकिन 2024 के चुनाव में जब उन्होंने बनारस में ही गंगा में खड़े होकर यह घोषित कर दिया कि मां गंगा ने उन्हें गोद ले लिया है और उन्हें नहीं लगता कि वे बॉयलॉजिकल जन्में हैं। यानी इसी के साथ उन्होंने ख़ुद को अवतार घोषित कर दिया इस चुनाव में बनारस ने उन्हें नाको चने चबवा दिए।
2024 के चुनाव में मोदी जी को बनारस में कुल वोट मिले 6,12,970 और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अजय राय को मिले 4,60,457 वोट। यानी इस बार मोदी जी कांग्रेस के स्थानीय नेता से महज़ 1,52,513 वोटों से ही जीत पाए।
इसकी तुलना अगर अमेठी में स्मृति ईरानी को हराने वाले किशोरी लाल शर्मा की जीत से की जाए तो वहां भी मोदी जी पीछे हो गए हैं। कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता ने मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को 1,67,196 वोटों से हराया।
अगर राहुल गांधी की जीत से तुलना की जाए तो मोदी जी की जीत कहीं नहीं ठहरती। राहुल गांधी ने रायबरेली में योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को 3,90,030 वोटों से हराया। केरल के वायनाड में भी राहुल गांधी ने 3 लाख 64 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की। वहां तो बीजेपी उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे।
राहुल गांधी की जीत या कांग्रेस के अजय राय की यह बढ़त बिल्कुल विपरीत परिस्थियों में हुई। यह परिस्थिति क्या थीं, उनका ऊपर ज़िक्र किया है।
अब बात मोदी या मोदी सरकार की सांप्रदायिक और पूंजीवादियों नीतियों की हार की
इन चुनाव परिणामों ने साफ़ बता दिया है कि आप कितना भी हिंदू-मुसलमान कर लो। मुस्लिम लीग, मटन, मछली, मंगलसूत्र, मुजरा कर लो। लेकिन यह सब अब नहीं चलेगा। आपको म से महंगाई और ब से बेरोज़गारी बोलना पड़ेगा।
पूरे देश के नतीजे बता रहे हैं कि आप की यह भेदभाव, बंटवारे और लड़ाने वाले मुद्दे अब नहीं चलेंगे।
यह नतीजे मोदी जी और बीजेपी दोनों के लिए संदेश है या सबक़ हैं कि अब और नहीं। अब बस कीजिए।
देश ने आपको बहुमत से भी नीचे ला दिया है। पिछली बार की अकेले की 303 सीटों की ही तुलना में आप 240 सीटों पर आ गए हैं। यानी पिछली बार से 63 सीटें कम। और यह सिर्फ़ 63 सीटों की कमी नहीं बल्कि आपसे वह ताक़त छीन लेना है जिसके बल पर आप अपनी मनमानी कर रहे थे और देश को तानाशाही की तरफ़ ले जा रहे थे। जनता ने उस पर ब्रेक लगा दिए हैं। और अगर आपके दावे एनडीए के 400 पार और बीजेपी 370 पार के नारों और दावों की बात की जाए। जिसे सही साबित करने के लिए गोदी मीडिया ने दिन-रात एक कर दिया। ओपिनियन पोल से लेकर एग्ज़िट पोल तक उसी नंबर पर ला खड़े किए और अपनी मिट्टी में मिल चुकी विश्वनीयता को और रसातल में ले गई। उस हिसाब से तो एनडीए का 300 पार भी न हो पाना और बीजेपी का सामान्य बहुमत भी न पाना बहुत बड़ी हार है।
हालांकि आप अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं। और जीत का जश्न मनाकर, पार्टी दफ़्तर में कार्यकर्ताओं के सामने भाषणबाज़ी करके एक बार फिर देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। यह आपकी जीत नहीं आपकी सांप्रदायिक और जनविरोधी नीतियों और आपके तानशाही रवैये की हार है।
नैतिकता का तकाज़ा तो यही है कि मोदी जी आपको अब प्रधानमंत्री पद त्याग देना चाहिए। लेकिन फ़िलहाल आपसे ऐसी उम्मीद करना बेकार ही है।
देश ने आपको साफ़ बता दिया है कि उसे हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा नहीं चाहिए। उसे रोटी और रोज़गार चाहिए।
अकेले अयोध्या की हार से भी आप सबक़ लें तो आपको समझ आ जाएगा कि जनता को राम के नाम पर राजनीति नहीं चाहिए। विकास के नाम पर विनाश नहीं चाहिए।
अयोध्या जो फ़ैजाबाद लोकसभा सीट कहलाती है। वहां समाजवादी पार्टी की जीत और बीजेपी की हार यही संदेश दे रही है कि जिस मंदिर के नाम पर आप पूरे देश में राजनीति कर रहे हैं। जिसके नाम पर आपने पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम की आग में झोंक दिया वही अयोध्या इसे पसंद नहीं करती। इसे समर्थन नहीं देती। लेकिन लगता है कि आप कोई सबक़ नहीं लेने वाले। हां बस इतना ज़रूर है कि अपनी हार को जीत साबित करते हुए आपने 4 जून के अपने ‘विजय उत्सव’ में अपने भाषण की शुरुआत जय श्रीराम की जगह जय जगन्नाथ से की। यानी अब आप अपनी राजनीति अयोध्या की जगह ओडिशा शिफ़्ट कर रहे हैं।
लेकिन उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु जहां आपने कैमरों के सामने 45 घंटे की “चुनावी मौन साधना” की, वहां के नतीजे बता रहे हैं कि आपका नफ़रत का बाज़ार अब सरगर्म नहीं रहा। आपके नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकानें खुल गई है। भले ही आपके बड़े बाज़ार या मॉल की अपेक्षा यह छोटी दुकानें है। लेकिन यहां ग्राहक आ रहे हैं और आप देखना कुछ ही दिनों में आपके बाज़ार की दूसरी दुकानें भी अपना सामान और बोर्ड बदलने वाली हैं।
यह चुनाव मोदी जी के साथ योगी जी के लिए भी साफ़ संदेश लाए हैं कि आपकी भी हिंदू-मुस्लिम की राजनीति और ख़ासतौर पर बुलडोज़र की नीति यूपी के लोगों को पसंद नहीं है। वरना क्या वजह है कि उत्तर प्रदेश में मोदी और योगी दोनों ब्रांड और डबल इंजन होने के बावजूद यहां बीजेपी की बुरी गत हुई है।
बीजेपी यहां 62 से सीधे 33 सीटों पर पहुंच गई है। यानी सीधे लगभग आधी सीटों का नुकसान। जबकि इस बार तो आपका नारा 80 में से 80 का था। और 65-70 सीटें तो आप मानकर ही चल रहे थे।
अयोध्या के परिणाम से योगी जी आपको भी व्यक्तिगत तौर पर सबक़ लेना चाहिए कि सिर्फ़ मंदिर बनने से या भव्य दीपावली मना लेने से लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता। तीज-त्योहार तभी अच्छे लगते हैं जब जेब में पैसे हों। वरना उसकी भव्यता ग़रीब जनता की आंखों में खलती ही है। और उसे अपनी ग़रीबी और बेबसी का और ज़्यादा एहसास कराती है।
और योगी जी आपको यह सोचना होगा कि किस तरह आपके बुलडोज़र के ऊपर से साइकिल निकल गई। आपको समझ आ जाना चाहिए कि लोगों को बुलडोज़र पसंद नहीं है।
और लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की हार से भी आपको सबक़ लेना चाहिए कि थार हो या बुलडोजर, जो भी जनता को कुचलेगा उसे जनता माफ़ नहीं करेगी।
यह गोदी मीडिया के लिए भी संदेश है कि अब गोदी से उतर कर अपने पांव पर ज़मीन पर खड़े होइए। आप गोदी से उठकर सीधे हेलीकॉप्टर में उड़ने लगे और जनता के मुद्दों की, उनकी समस्याओं की न सिर्फ़ अनदेखी करने लगे बल्कि उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। आपके दस साल के सतत नफ़रत भरे प्रसारण, हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव, फेक और प्रोपेगैंडा न्यूज़ सबको जनता ने नकार दिया। आपने सरकार से एक भी सवाल पूछे बिना सिर्फ विपक्ष को गरियाने का कार्यक्रम चलाए रखा। ओपिनियन पोल से लेकर एग्ज़िट पोल तक आपने हर तरह से जनता को गुमराह करने की कोशिश की। लेकिन सब फेल कर गया।
इस परिणाम में विपक्ष के लिए भी संदेश है कि समय रहते एकजुटता, सही मुद्दों की पकड़ और ज़मीन पर मेहनत बहुत ज़रूरी है। चुनाव आते आते आपने जो एकता बनाई अगर वह साल भर पहले बनाई होती और जो अंतिम समय में जनता के बीच जाने का काम किया वह पूरे पांच साल किया होता तो आज परिणाम कुछ और होते।
ख़ैर देर आयद दुरस्त आयद। विपक्ष की अंतिम समय में ही बनी जैसी भी एकजुटता और ज़मीनी मुद्दों ने जो काम किया इससे एक बेहतर नतीज़ा सामने आया। पूरे बदलाव में हमेशा समय लगता है।
वास्तव में जनता ने विपक्ष के साथ चुनाव लड़ा और काफी बेहतर नतीजे आए। लोगों ने अपने लोकतंत्र और अपने संविधान को बचाने के लिए विपक्ष के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी और उसमें पहली जीत दर्ज की। हालांकि अभी सफ़र लंबा है, लड़ाई लंबी है। लेकिन इस दौर में इतना बहुत है यार…
किसी शायर ने कहा है कि
“वो हब्स था कि लू की दुआ मांगते थे लोग”
हब्स, हवा न चलने से होने वाली उमस, घुटन को कहते हैं। यानी इतनी उमस थी, घुटन थी कि लोग कह रहे थे कि भले ही गर्म हवा चले लेकिन चले तो सही। सांस तो आए।
तो सांस तो आ गई है अब बाद-ए-नौ-बहार (बसंत की ठंडी और ख़ुशबू भरी हवा) के लिए थोड़ी और मेहनत, थोड़ा और इंतज़ार करना होगा।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)
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