कला विशेष : माधवी पारेख के चित्रों में संवेदना और स्मृतियों की परत

दि प्ले, तैल रंगों में, चित्रकार: माधवी पारेख , साभारभारत की : समकालीन कला - एक परिपेक्ष्
माधवी पारेख महिला चित्रकारों में एक चर्चित नाम है। जिनकी कला शैली गुजराती लोककला से प्रेरित हैं। जिनके चित्रों में आकृतियां भागती, दौड़ती हैं, हमेशा हमारे इर्द गिर्द किसी नवीन कहानी को प्रस्तुत करतीं हैं, जिनमें बच्चों सी अद्भुत कल्पनाशीलता है। काले रंगों वाली रेखा बहुल, विषयानुसार रंगों के प्रयोग वाले चित्र ऊर्जा से भरपूर हैं।
ये चित्र माधवी पारेख के जीवंत व्यक्तित्व का ही बखान करते हैं। चिकित्सक बनने की ख्वाहिश रखने वाली माधवी उस समय के प्रचलन अनुसार कम उम्र में ही शादी हो जाने से अपने सपनों को अपने चित्रकार पति के अनुसार ढाल लेती हैं और बखूबी लोककला परंपरा को आधुनिकता से जोड़ते हुए अपनी एक नई चित्रण शैली विकसित करती हैं। निस्संदेह माधवी के इस विकास में, इस सृजनात्मक पहचान बनाने में प्रख्यात चित्रकार मनु पारेख का योगदान रहा है।
कला अभिव्यक्ति के लिए कई बार जरूरी नहीं होता कि कलाकार विधिवत प्रशिक्षित हो। कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जो बगैर किसी कला संस्थान से अकादमिक शिक्षा ग्रहण किए कम समय में ही अपनी पहचान बना लेते हैं। माधवी पारेख भी ऐसी ही चित्रकार हैं।
लोककलाओं की अपनी भाषा है चाहे वो धार्मिक अनुष्ठानों से सम्बद्ध हो या सांस्कृतिक, उनके चित्रों की रेखाओं में एक गति है, बिंबों में, रंगों में ऊर्जा है, जो ऐतिहासिक है। भारत के ग्रामीण आदिवासी अंचलों में रची जाने वाली इस विशिष्ट भारतीय कला में सहज, सरल निरंतरता है।
इस कला में जनमानस की धार्मिक-सांस्कृतिक भावनाएं जुड़ी हैं। जो उनके सुखद जीवन, पुरानी पीढ़ी की याद और नवजीवन के आगमन आदि की कामना से जुड़ी हैं। अतः भारतीय जन उसकी अस्मिता को लेकर सतर्क रहते हैं। पुनरावृति से परहेज़ नहीं करते। हमारे देश में हर क्षेत्र की अपनी लोक कला है। पश्चिम बंगाल का पटचित्र, ओडिशा के धार्मिक अनुष्ठानों में बनाई जाने वाली पट चित्रकला, असम, बंगाल में सोलापिथ काली (एक विशेष प्रकार की लकड़ी) से बनाई जाने वाली कला। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश के गांवो में मिट्टी के दीवारों पर उत्कीर्ण करके दिवाली आदि त्योहारों में 'सांझी' 'आहोई' आदि जैसे अलंकारिक चित्रण किया जाता रहा है, बिहार की मधुबनी चित्रकारी विश्वविख्यात है। ऐसे में राजस्थान की पिछवई और फड़, महाराष्ट्र की बरली चित्र और हैदराबाद की कलमकारी आदि। ये सभी भारत की समृद्ध कला परंपराएं हैं।
लोककला शैली में संस्कृति और धार्मिकता से परे कला के सौंदर्य और सार्थकता का अहसास हो जाता है। तो वह कला और उस कला को साकार करने वाला कलाकार अपनी कृतियों को मौलिक रूप दे पाता है। उसकी कला क्षेत्रियता से परे अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाती है। माधवी पारेख ऐसी ही समकालीन चित्रकार हैं। जिन्होंने गुजरात की लोक चित्रण शैली को एक नया रूप दिया है।
माधवी पारेख का युवा अवस्था का फोटो
माधवी पारेख और उनकी कला से मेरा परिचय तब हुआ जब मैं भारत के वरिष्ठ चित्रकार मनु पारेख से 1993 में बनारस के ए बी सी आर्ट गैलरी में साक्षात्कार ले रही है थी। मनु पारेख जी ने ही बताया कि उनकी पत्नी माधवी पारेख एक कुशल चित्रकार हैं और लोक कला शैली में चित्रण करती हैं, हालांकि उन्होंने दृश्य कला की विधिवत शिक्षा नहीं ली है। हमें भी माधवी की कला के प्रति गहन लगाव का अहसास तभी हो गया जब हमने पाया कि दिल्ली से यात्रा के दौरान उन्होंने ढेरों लघु रेखाचित्र बना रखे थे। जिसे उन्होंने मुझे दिखाया।
माधवी पारेख का जन्म 1947 में अहमदाबाद के सांजया गांव में हुआ था। उनके पिता एक गांधीवादी शिक्षक और गांव में पोस्ट मास्टर थे। कुछ विद्रोही सी और उच्च भावनाओं वाली गांव की अल्हड़ माधवी जब नौ वर्ष की थीं तभी उनकी सगाई बारह वर्ष के मनु पारेख से हो गई थी। उस समय मनु पारेख सर जे ॰ जे॰ स्कूल आफ आर्ट्स में अध्ययनरत थे । माधवी भी बम्बई रहने लगीं। मनु पारेख के साथ वे कला प्रदर्शनी देखने जाती थीं। वे आधुनिक कला से परिचित होती थीं और चित्रकला की ओर प्रेरित होती गईं। मनु पारेख वीवर सर्विस सेंटर में कला निर्देशक के रूप में कोलकाता जाते हैं। माधवी अपनी कला की शुरुआत कोलकाता प्रवास को ही मानती हैं। इस दौर में माधवी ने ईसा मसीह की मूर्तियों से प्रेरित हो ईसा पर चित्र श्रृंखला बनाई। ईसा मसीह और बुद्ध पर कोई कलाकार चित्र बनाता है तो यह उसकी वैचारिक संवेदनशीलता और गंभीर सोच का ही परिणाम है। 1971 में धार्मिक चरित्र काली पर बनाई कृति को पेरिस में काफी प्रसिद्धि मिली।
माधवी के प्रेरणा तत्व गुजराती कला में भी उपस्थित हैं। वहां की भील जनजाति के, सबसे बड़े त्योहार 'पिठौरा' पर घर की दीवारों पर बनाई जाने वाली चित्रकला 'पिथौरा ' बनाई जाती है। इस कला में भी मिट्टी के भीत पर गोबर और चूने से लीप कर परंपरागत रंगों में चित्र बनाए जाते हैं। यह चित्र केवल घर के पुरूष ही बनाते हैं, महिलाएं नहीं।
हलांकि माधवी का काम उनसे इतर है। इसमें मनुष्यों के चेहरे में नाक काले रंगों में है। सर्पाकार आकार वाले, विचित्र जीव जंतु भ्रमण करते नजर आते हैं। देवी दुर्गा नारी शक्ति की प्रतीक रूप में राक्षस का विनाश करती हुई दिखती हैं।
जैसा कि ज्यादातर होता है हमारे बचपन की स्मृतियां, जिसमें हमने निश्चिंतता और उमंग भरा, खेलकूद से भरपूर, जिसमें हमें हर त्योहारों का इंतजार रहता था, हमारे दिलो-दिमाग पर छाईं रहती थीं। इन स्मृतियों को माधवी ने भी अपने चित्रों में विषय के रूप में जिया है। जिसमें भागते, दौड़ते मनुष्य जानवर, पंछी बार बार उनके चित्रों में उभरते, तैरते नजर आते हैं और हमें भी अभिभूत करते हैं। ये विषय, ये चित्र गंभीर, विचारों, दर्शन से दूर हैं, इसलिए आम जन को लुभाते हैं, अपनी ओर आकर्षित करते हैं। लेकिन माधवी समकालीन कलाकारों के समान ही वर्तमान में ही जीती हैं। अतः उनके चित्रों में प्रतिकात्मक ढंग से वर्तमान घटनाक्रमों का समावेश रहता है। माधवी पारेख की चित्रण शैली भारतीय कला संस्थानों में सिखाए जाने वाले कला तकनीकों से आक्रांत नहीं हैं। इसमें उनके चित्रकार पति मनु पारेख के कला संबंधी सुझाव जरूर काम आते होंगे। मुझे याद है मनु पारेख ने अपने साक्षात्कार में जो 1993 में मैंने लिया था, के दौरान माधवी और उनके चित्रों की बहुत तारीफ किया करते थे। यह उन दोनों के स्वस्थ संबंधों को ही दर्शाता है।
जैसा कि माधवी पारेख के कला सृजन में दिखता है, माधवी बेहद परिश्रमी हैं। कोरोना वायरस के दौरान लॉक डाउन में भी क्रियाशील रहीं थीं। सफलता और शोहरत की नई बुलंदियों पर पहुंची हैं - माधवी और मनु पारेख की कुछ कलाकृतियां। करिश्मा स्वाली जो कि चाणक्य इंटरनेशनल की मैनेजिंग डायरेक्टर और क्रिएटिव डायरेक्टर हैं के सहयोग और निर्देशन में माधवी की बारह और मनु पारेख की दस कलाकृतियों को कपड़ों पर कशीदाकारी द्वारा उतारा गया। जिसमें माधवी की 1971 में बनाई गई ' वर्ल्ड ऑफ काली' पर बनाई गई कशीदाकारी वाली टेपेस्ट्री को मुसी रोहिना के एक दिग्गज कंपनी ने अपने सेट का हिस्सा बनाया है । माधवी के 'वर्ल्ड ऑफ काली ' को कशीदाकारी द्वारा कपड़े पर उतारा गया और इस कपड़े का डिजाइन किया। इतालवी क्रियेटिव फैशन डिजाइनर मारिया ग्राडिया चिउरी ने।
'द वर्ल्ड ऑफ काली' जो माधवी ने 1971 बनाया था उसी समय से ही चर्चित रही। इस चित्र में काली को लोक चित्रकला शैली में ही चित्रित किया गया है। काली आधुनिक हथियारों से लैस है। आकृतियां गहरे काले और मोटे-पतले, लहरियादार रेखाओं में है। कहीं कहीं विषयानुसार कूछ रंगों जैसे पीले और लाल रंगों को प्रमुखता दी गई है। देवी की आंखों में आक्रोश का भाव है।
माधवी को अनेकों पुरस्कार मिले हैं। देश - विदेश में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगती रहती है। वर्तमान समय में माधवी पारेख दिल्ली में ही रह रही हैं।
(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)
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