"श्रम कार्ड" : यूपी सरकारी भत्ते की उम्मीद लगाए कामगार मायूस

घरेलू कामगार महिला संगठन का कहना है कि "श्रम कार्ड" धारकों के बैंक खाते भत्ते का पैसा नहीं आया है। जबकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया कि शीघ्र ही सभी श्रम कार्ड धारकों के खातों में 500 रुपये भेजे जाएंगे।
संगठन का दावा है कि लखनऊ की तमाम बस्तियों में सर्वेक्षण में उसको एक भी श्रम कार्ड धारक ऐसे नहीं मिले जिनके खाते में पैसा आया हो। सर्वेक्षण करने वाले संगठन का कहना हैं "श्रम विभाग" स्वयं इस संबंध में जांच करवा के उसके दावे की वास्तविकता को जान सकता है।
न्यूजक्लिक ने लखनऊ के बसतौली गाँव में श्रम कार्ड धारक कामगारों से बात की और उनकी समस्या को सुना।इसके अलावा “श्रम विभाग” से भी संपर्क किया।
श्रम कार्ड: क्या कहते हैं कामगार?
बस्तौली की तंग गलियों में रहने वाले कामगारों ने बताया कि विधानसभा चुनाव 2002 से पहले नवंबर '21 में “श्रम विभाग” की ओर से बस्तियों में "असंगठित क्षेत्र के मजदूरों" के “श्रम कार्ड” बनाने हेतु कैंप लगाये गये थे। जिसका मुख्य उपदेश सड़क किनारे रेहड़ी, खोमचा लगाने वाले, रिक्शा और ठेला चालक, नाई, धोबी, दर्जी, मोची, फल और सब्जी विक्रेता आदि की अर्थिक मदद कराना बताया गया था। श्रम कार्ड धारकों बनवाने वालों एक बड़ा वर्ग उन श्रमिकों का है जो निर्माण कार्य से जुड़े हुए हैं और काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते रहते हैं।
उन्होंने बताया था कि ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड असंगठित क्षेत्र के श्रमिक को 2 लाख रुपये का एक्सीडेंट बीमा कवर भी मिलता है। श्रम कार्ड बनाते वक़्त यह भी कहा गया था कि अगर श्रमिक किसी हादसे का शिकार हो जाता है, तो मृत्यु या फिर विकलांगता की स्थिति में उन्हें 2 लाख रुपये की राशि दी जाएगी। अगर श्रमिक आंशिक रूप से विकलांग होता है, तो उसे एक लाख रुपये की सहायता मिलती है।
पैसा-मुफ्त स्वास्थ्य सेवा कुछ नहीं
बस्तौली गाँव की सुशीला कहती हैं कि यह केवल उनकी समस्या नहीं है, बल्कि बड़ी संख्या में घरेलु कामगार महिलाएँ खाते में पैसा आने का इंतेज़ार कर रही हैं। घरेलु कामगार सुशीला बताती है कि कहा गया था कि "श्रम कार्ड" धारकों को स्वस्थ सेवाएँ भी मुफ्त दी जाएगी।
सुशीला ने बताया कि अगर यह कार्ड लेकर सरकारी अस्पताल जाओ तो वहां से भी भगा दिया जाता है।वह आगे कहती है कि लेबर ऑफिस से संपर्क करने से मालूम हुआ की अभी बजट ही नहीं है।उनका कहना है कई ऐसे कार्ड धारक भी हैं जिनको मालूम हुआ की पैसा उनके खाते में आ गया, लेकिन बैंक में देखा तो खाते में कुछ नहीं था।
क्या श्रम कार्ड बनाने वाले मनगढ़ंत फ़ायदे गिना रहे थे?
घरेलु कामगार अफसाना के घर में 6 लोग हैं जो 4 हज़ार रुपये के किराये के घर में रहते हैं। अफसाना के अनुसार उनके घर के सभी लोग कामगार हैं और सभी के श्रम कार्ड बनाये गए थे। "लेकिन किसी को न आर्थिक मदद मिली न कोई और सरकारी सुविधा का लाभ मिला। वह कहती हैं कि लगता है श्रम कार्ड बनाने वाले अधिकारी अपनी तरफ से मंगढ़ात फायदे गिना रहे थे। बैंक के चक्कर लगते लगते हम लोग थक चुके हैं और सरकार से उम्मीद भी नहीं बची है।"
खाते में कोई पैसा नहीं आया
रिंकी देवी कहती हैं कि वह दर्जी हैं और उनके पति पेंटर हैं। उनका और उनकी देवरानी का श्रम कार्ड बना है। रिंकी के अनुसार, उनको बताया गया था की सभी कार्ड धारकों के खातें में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 500 रूपये प्रतिमाह भेजा जायेगा।लेकिन अभी तक उनके खातें में कोई पैसा नहीं आया है।वह कहती हैं की अगर कुछ अतरिक्त पैसा मिलता तो बच्चो के लिए और अच्छे आहार का इन्तेजाम कर सकती थी।
बड़ी उम्मीद की थी श्रम कार्ड से
बस्तौली के छोटे से घर में रहने वाली कमला बताती है कि दिसम्बर 2021, में उनका कार्ड बना था, लेकिन अभी तक उनको इस से कोई लाभ नहीं मिला है। घरेलु कम कर के गुज़ारा करने वाली कमला कहती हैं, "पैसे भेजने के अलावा मुफ्त स्वस्थ सेवाओं का भी देने को कहा था।बिजली का काम करने वाले रामदास कहते की तालाबंदी बाद से काम ख़त्म हो गया है। वह और उनकी पत्नी मिलकर घर चला रहे हैं।" बड़ी उम्मीद थी की श्रम कार्ड से सरकारी मदद मिलेगी लेकिन यह उम्मीद भी टूटती दिख रही है।
इसी इलाके की मीरा का कहना है, "श्रम कार्ड" बनने से बहुत उम्मीद जागी थी लेकिन मोदी ने सब पर पानी फेर दिया।उन्होंने कहा की उनके घर की बहु (पिंकी) का भी कार्ड है , लेकिन उसके पैर के ऑपरेशन में 1.5 लाख का ख़र्च हुआ, लेकिन कोई सरकारी सह्यायता नहीं मिली।"
हमको नहीं परिवार को लाभ मिला
नंदा खेड़ा में रहने वाले अरशद कहते हैं 6-8 महीने पहले उनका कार्ड बना था।वह मजदूरी कर के अपना घर चलते हैं। अरशद बताते हैं, "श्रम कार्ड" से अभी तक कोई लाभ नहीं मिला है। लेकिन हमारे परिवार के कुछ लोगों को पहले इस कार्ड से एक-दो बार लाभ हुआ था।"
क्या कहते हैं अधिकारी?
जब इस बारे में श्रम कार्यालय से सम्पर्क किया तो उप श्रमायुक्त राकेश द्विवेदी ने बताया की जिन असंगठित कामगारों के श्रम कार्ड अक्टूबर 2001, तक बने थे उनके खाते में पैसा जा चुका है। लेकिन अब बजट ख़त्म हो चुका है। उप श्रम आयुक्तअ (असंगठित ) शमीम अख्तर ने बताया की खाते में निरंतर पैसे भेजने की कोई स्कीम नहीं है। वह लोग (असंगठित कामगार) आयुष्मान भारत योजना स्वस्थ सुबिधा ले सकते हैं। शमीम अख्तर ने कहा कि "श्रम कार्ड" के ज़रिये भत्ते को लेकर लोगो में भ्रम है।
"श्रम पोर्टल" लॉन्च
दरअसल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले वर्ष "श्रम पोर्टल" लॉन्च किया था। इसके बाद इस पोर्टल पर अब तक देश के करीब 28 करोड़ लोग पंजीकृत हो चुके हैं। जिसकी उम्र 16 से 59 वर्ष के बीच है। इनमें से उत्तर प्रदेश से लगभग 7.5 करोड़ श्रमिक शामिल हैं।
कामगार महिलाओं की नाराज़गी
बता दें कि 22 अगस्त संबद्ध घरेलू कामगार महिला संगठन के तत्वावधान में श्रम कार्यालय पर प्रदर्शन कर उप श्रमायुक्त को ज्ञापन सौंपा गया। यह मुख्य रूप से पिछड़े साल बने श्रम कार्ड के बारे में था जिसको बनाते समय सरकार ने श्रम कार्ड धारकों के खातों में पैसा भेजने का ऐलान किया था किन्तु आज तक उसमें कोई पैसा नहीं आया जिसे लेकर घरेलू कामगार महिलाओं में बहुत आक्रोश है। धरने में शामिल ऐडवा की नेता मधु गर्ग ने कहा, "अगर पैसा नहीं भेजना था तो विधान सभा चुनावों से पहले “श्रम कार्ड” बनाने का क्या मकसद था? क्या चुनावों से पहले "श्रम कार्ड" भी केवल एक जुमला था।"
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