संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम जनसंख्या रिपोर्ट के आशय को समझना ज़रूरी है

यूनाइटेड नेशन्स वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2023 में चीन को पछाड़कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। अगले साल 1 जुलाई को चीन की आबादी 1.46 अरब तक पहुंच जाएगी और भारत की आबादी बढ़कर इससे केवल 0.02 अरब अधिक यानी 1.48 अरब हो जाएगी। यह मामूली वृद्धि अगले साल भारत को सबसे अधिक आबादी वाला देश बना देगी।
इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की आबादी 15 नवंबर को 8 अरब और वर्ष 2080 तक 10.4 अरब को पार कर जाएगी। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2060 तक दुनिया की आबादी में 50% की वृद्धि आठ देशों- कांगो, ईजिप्ट, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और तंजानिया में होगी।
वर्ष 2022 में जनसंख्या के आधार पर शीर्ष दस देश चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, नाइजीरिया, ब्राजील, बांग्लादेश, रूस और मैक्सिको हैं।
वर्ष 2050 में चीन पहले से दूसरे स्थान पर, इंडोनेशिया चौथे से छठे और बांग्लादेश आठवें से दसवें स्थान पर खिसक जाएगा। इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका 2022 में तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा, वहीं पाकिस्तान पांचवें और ब्राजील सातवें स्थान पर रहेगा।
सभी देशों में 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों की संख्या और उनका प्रतिशत बढ़ रहा है। वर्ष 2022 में जहां 10% है वहीं इस उम्र के लोग वर्ष 2050 में बढ़कर 16% हो जाएंगे। तब तक, उनकी संख्या पांच साल से कम उम्र के लोगों से दोगुना हो जाएगी। जन्म और प्रजनन दर में गिरावट के कारण, भारत सहित कुछ विकासशील देशों में, जनसंख्या के मामले में 25 से 64 आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत अधिक होगा। प्रत्येक सरकार को इस आयु वर्ग के जनसांख्यिकीय अंश को अधिकतम करने के लिए कार्यक्रम तैयार करना चाहिए।
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि COVID-19 महामारी ने तीन संकेतकों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इन तीन संकेतकों में औसत आयु, जन्म दर और विदेश जाने वाले प्रवासियों की संख्या शामिल हैं।
वर्ष 2019 में, वैश्विक औसत आयु 72.9 वर्ष थी जो वर्ष 2021 में घटकर 71 वर्ष हो गई। वर्ष 2050 तक, औसत आयु बढ़कर 77.2 वर्ष हो सकती है। COVID-19 महामारी का प्रभाव दुनिया भर में अलग-अलग रहा है। मध्य और दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई द्वीपों के लोगों की औसत आयु 2019 और 2021 के बीच तीन साल कम हो गई, जबकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में मृत्यु दर कम होने के कारण 1.2 साल की वृद्धि हुई है।
बोलीविया, बोत्सवाना, लेबनान, मैक्सिको, ओमान और रूस में 2019 और 2021 के बीच औसत आयु में चार साल की गिरावट आई है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों की जन्म दर लगभग स्थिर बनी हुई है। दुनिया भर में जन्म दर पहले ही अचानक गिर गई है। COVID-19 महामारी ने सभी प्रकार के प्रवास को सीमित करके इसमें योगदान दिया।
इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012 से दुनिया की जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 2012 में जनसंख्या वृद्धि दर 1.22% थी और वर्ष 2022 में गिरकर 0.84% हो गई। हालांकि पिछले दशक में विश्व की जनसंख्या 1% से भी कम की दर से बढ़ी लेकिन यह सबसे छोटी अवधि (11 वर्ष) में 7 से 8 बिलियन तक बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाद की एक अरब की जनसंख्या की वृद्धि 2038 में होगी, जो अब से 16 साल बाद होगी। उसके बाद, दुनिया की आबादी घटने लगेगी।
रिपोर्ट के मुताबिक चीन अगले एक साल तक दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा, जिसके बाद भारत दूसरे से पहले पायदान पर पहुंच जाएगा। सबसे अधिक आबादी वाला देश होना गर्व की बात नहीं है बल्कि यह बेहद चिंता का विषय है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में संसाधन नहीं बढ़ते हैं। हमारे देश की जनसंख्या वर्ष 2023 में 1.48 बिलियन तक पहुंच जाएगी और चीन से आगे निकल जाएगी, जबकि दूसरी ओर, चीन की जनसंख्या 1.46 बिलियन लोगों के साथ शीर्ष से घटने लगेगी। वर्ष 2064 तक 1.69 बिलियन तक पहुंचने के बाद भारत की जनसंख्या कम होनी शुरू हो जाएगी। इस सदी के अंत तक, भारत की जनसंख्या घटकर 1.53 बिलियन और चीन की 0.77 बिलियन हो जाएगी जो भारत की आबादी के आधे से भी कम है।
चीन अपनी आबादी को कैसे और क्यों नियंत्रित कर पाया और भारत क्यों पिछड़ गया, इस पर एक नज़र डालने की ज़रूरत है। वर्ष 1950 में चीन की जनसंख्या 540 मिलियन थी और 1951 में भारत की जनसंख्या 361 मिलियन थी। उस समय भारत में प्रजनन दर 5.9 थी और चीन की प्रजनन दर 6.11 थी। 1950 के दशक में चीन की जनसंख्या और प्रजनन दर भारत की तुलना में अधिक थी। भारत सरकार ने जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1952 में परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया था लेकिन चीन ने उस समय जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई कार्यक्रम लागू नहीं किया था।
जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के साथ चीन ने 1970 के दशक में लेट, लॉन्ग एंड फ्यू के नारे के तहत जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया, जिसने प्रजनन दर को 1970 से 1976 तक 6.11 से 4.85 तक कर दिया। लेकिन इस कम प्रजनन दर के साथ भी, चीन की जनसंख्या बढ़ रही थी जिसे नियंत्रित करना चीनी सरकार के लिए बहुत जरूरी था। नतीजतन, चीनी सरकार ने वर्ष 1979 में 'एक बच्चे की नीति' को सख्ती से लागू किया। हालांकि इस नीति की दुनिया भर में काफी आलोचना हुई थी लेकिन चीन ने 1979 से 2015 के बीच की अवधि के दौरान जनसंख्या वृद्धि पर काबू पा लिया। वर्ष 2015 में, इस योजना को समाप्त कर दिया गया। इस साल लोगों को दो बच्चे की अनुमति मिली और 2021 में तीन बच्चे की अनुमति दी गई।
'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू होने के बाद वर्ष 1985 में चीन की प्रजनन दर घटकर 2.52 रह गई और 15 साल बाद वर्ष 2000 में चीन की प्रजनन दर प्रतिस्थापन अनुपात (2.1) से घटकर 2.0 रह गई। दूसरी ओर, चीन की 'वन चाइल्ड पॉलिसी (1979) से 27 साल पहले 1952 में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत योजना शुरू करने वाले भारत ने 2000 में उपरोक्त प्रतिस्थापन अनुपात हासिल किया। चीन की तुलना में 21 वर्षों बाद भारत की प्रजनन दर 2.0 थी। पांच भारतीय राज्यों, बिहार (3.0), मेघालय (2.9), उत्तर प्रदेश (2.7), झारखंड (2.4) और मणिपुर (2.2) में प्रजनन दर वर्ष 2021 में भी उपरोक्त प्रतिस्थापन अनुपात से अधिक है।
परिवार नियोजन के लिए सरकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम के अलावा भारत में घटती प्रजनन दर का कारण छोटे परिवारों के प्रति लोगों की धारणा भी है। हालांकि चीन की तरह भारत में एक बच्चा की कोई नीति नहीं बनाई गई है और न लागू की गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ने खुलासा किया है कि देश के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रजनन दर 1.1 से 1.9 के बीच है। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में यह भारत सरकार का एक सकारात्मक पहलू है। भारत की जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए भारत सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं, महिला साक्षरता और रोजगार सुनिश्चित करना चाहिए।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि से शिशु और मातृत्व मृत्यु दर में कमी आएगी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार अभी भी 11 प्रतिशत बच्चों का घर पर प्रसव हो रहा है और 24 प्रतिशत बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं। यद्यपि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए प्रजनन दर में कमी एक महत्वपूर्ण पहलू है, वहीं शिशु मृत्यु दर भी जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करती है। यदि कोई बच्चा जल्दी मर जाता है, तो यह प्रजनन क्षमता और जन्म दर दोनों को प्रभावित करेगा, जिससे दोनों में वृद्धि होगी क्योंकि माता-पिता हमेशा निःसंतान होने से डरते रहेंगे। बच्चों के संतुलित विकास के लिए उनका आहार पोषक तत्वों से भरपूर होना चाहिए। भारत में 36 प्रतिशत बच्चे आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण औसत विकास नहीं कर पाए हैं। इस मामले में, देश के लगभग 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं।
प्रतिस्थापन अनुपात की तुलना में उच्च प्रजनन दर वाले भारत के राज्यों में से तीन राज्यों बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता दर बहुत कम है। बिहार में 49.5 फीसदी, झारखंड में 44.5 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 42.8% महिलाएं निरक्षर हैं। प्रजनन दर और साक्षरता दर के बीच सीधा संबंध है। जिन राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर विशेष रूप से अधिक है, वहां जन्म और प्रजनन दर दोनों कम हैं। इसलिए सरकार को जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए लड़कियों की शिक्षा और रोजगार सुनिश्चित करना चाहिए।
इस रिपोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार विकासशील देशों में 25 से 64 आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत अधिक होगा। भारत में भी इस आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत अन्य दो श्रेणियों अर्थात 25 वर्ष से कम और 64 वर्ष से ज्यादा की तुलना में अधिक है। सरकार को चाहिए कि वह इस वर्ग के लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर मुहैया कराए। देश में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लाखों शिक्षित युवा हर साल विदेश पलायन करते हैं। इस अंतरराष्ट्रीय प्रवास के परिणामस्वरूप ब्रेन ड्रेन, कैपिटल ड्रेन और जनसांख्यिकीय स्थिति का नुकसान हुआ है। चीन ने अपने देश में ऐसी व्यवस्था की है कि लगभग हर नागरिक को उसकी क्षमता के अनुसार रोजगार मिल जाता है। चीन ने देश की आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल करने के लिए अपनी बड़ी आबादी का पूरा फायदा उठाया है। हमारी सरकार को भी इस श्रेणी (25-64 वर्ष) का पूरा लाभ उठाना चाहिए ताकि उनकी क्षमता के अनुसार रोजगार देकर देश के आर्थिक विकास को बढ़ाया जा सके।
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार को परिवार नियोजन के राष्ट्रीय कार्यक्रम को गंभीरता से लागू करना चाहिए। भारत सरकार को चीन की तरह 'वन चाइल्ड पॉलिसी' को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि अपने लोगों को गारंटीकृत शिक्षा और रोजगार प्रदान करने की आवश्यकता है। परिवार नियोजन कार्यक्रमों का उचित क्रियान्वयन आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। आर्थिक विकास के लाभ से लोग जागरूक हो जाते हैं और परिवार के सदस्यों की जरूरतों और सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए स्वेच्छा से अपने परिवार के आकार को कम करते हैं। सरकार लोगों को छोटे परिवारों के लाभ के बारे में जागरूक करे और गुणवत्तापूर्ण रोजगार, बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा सहायता के साथ साथ स्कॉलरशिप भी प्रदान करे। एक जन-समर्थक और प्रकृति के अनुकूल आर्थिक विकास पथ तैयार करे।
लेखक पटियाला स्थित पंजाबी विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व प्रोफेसर हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
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