जलवायु परिवर्तन के कारण भारत ने गंवाए 259 अरब श्रम घंटे- स्टडी

ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, आर्द्र गर्मी के प्रभाव के चलते, भारत ने 2001 से लेकर 2020 के बीच में सालाना लगभग 259 अरब श्रम घंटे गँवा दिए हैं। इन उत्पादक घंटों को गंवाने की वजह से भारत को 624 अरब डॉलर (46 लाख करोड़ रूपये) का नुकसान सहना पड़ा है, जो कि देश के 2017 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 7% के बराबर है।
अध्ययन में ‘आर्द्र गर्मी’ शब्द का इस्तेमाल उन परिस्थितियों को संदर्भित करने के लिए किया गया है जिसमें मौसम या तो गर्म और शुष्क या इतना गर्म और आर्द्र हैं जो श्रम उत्पादकता में कमी की वजह बनती हैं।
शोध के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर आर्द्र गर्मी से वर्तमान में 650 अरब घंटों से अधिक का वार्षिक श्रम का नुकसान उठाना पड़ रहा है (जो कि 14.80 करोड़ पूर्ण-कालिक नौकरियां गंवाने के बराबर है), जो पिछले अनुमानों की तुलना में 400 अरब घंटे अधिक है। अध्ययन में कहा गया है, “श्रम हानि के अनुमानों में ये अंतर कोविड-19 महामारी की वजह से होने वाले नुकसानों के बराबर है।”
2001 से 2020 के बीच में, उच्च आर्द्र गर्मी के साथ काम करने से सालाना करीब 677 अरब श्रम घंटों का नुकसान हो रहा है, जिसमें वैश्विक कामकाजी उम्र की आबादी का 72 फीसदी हिस्सा (करीब 4 अरब लोग) इसी प्रकार की जलवायु परिस्थितियों वाली पृष्ठभूमि में निवास करते हैं, जो प्रति व्यक्ति सालाना कम से कम 100 घंटों के भारी श्रम नुकसान की वजह बनता है।
पिछले अनुमानों ने संकेत दिया था कि आर्द्र गर्मी में काम करने के जोखिम के कारण श्रम हानि प्रति वर्ष तकरीबन 248 अरब घंटे की हो रही थी, जिसमें वैश्विक कामकाजी आयु की 40% आबादी (करीब 2.2 अरब लोग) प्रति व्यक्ति सालाना 100 घंटे से अधिक की भारी श्रम हानि वाले स्थानों पर रह रहे थे।
2017 में वैश्विक स्तर पर वार्षिक तापमान वृद्धि से उत्पन्न होने वाली श्रम उत्पादकता हानि पीपीपी (क्रय शक्ति समानता) में 2.1 ट्रिलियन डॉलर होने को अनुमानित किया गया, जो कि कई देशों में उनके सकल घरेलू उत्पाद के 10% से अधिक के बराबर पाई गई है। अध्ययन में कहा गया है, “पिछले चार दशकों में वैश्विक गर्मी से संबंधित श्रम हानि में कम से कम 9% की बढ़ोत्तरी हुई है (नए अनुभवजन्य मॉडल का उपयोग करने पर सालाना > 60 अरब घंटों की हानि), इस बात को दर्शाता है कि यदि इसमें जरा सा भी जलवायु परिवर्तन (<0.5 सेंटीग्रेड) होता है तो इससे वैश्विक श्रम और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।”
खुले में काम करने वाली कामकाजी उम्र की आबादी द्वारा उठाई जा रही श्रम हानि सबसे अधिक दक्षिण, पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में है। इसमें भी खास तौर पर सबसे अधिक श्रम नुकसान स्पष्ट रूप से भारत में है, जो कि कुल वैश्विक नुकसान के लगभग आधे के लिए जिम्मेदार है। इतना ही नहीं दूसरे सर्वाधिक प्रभावित देश चीन की तुलना में भारत में श्रम हानि चार गुना से अधिक देखने को मिलती है।
प्रति व्यक्ति कामकाजी-उम्र की आबादी में श्रम हानि का अर्थ सालाना वैश्विक स्तर पर 15.5 करोड़ नौकरियों की हानि के बराबर है। भारत इस नुकसान के लगभग आधे हिस्से (तकरीबन 6.2 करोड़ नौकरियों के नुकसान के बराबर) के लिए उत्तरदायी है। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि ये वार्षिक नुकसान वैश्विक कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुए अस्थाई काम के नुकसान के समकक्ष हैं। अनुमान के मुताबिक इसके कारण महामारी की पहली तिमाही के दौरान तकरीबन 13 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर काम के घंटों का नुकसान होने का अनुमान है।
अध्ययन में कहा गया है, “उच्च आर्द्र गर्मी से पड़ने वाले प्रभाव जिन्हें हम यहाँ रिपोर्ट कर रहे हैं, वह वायु प्रदूषण जैसी अन्य पर्यावरणीय स्वास्थ्य चुनौतियों के कारण होने वाले प्रभावों से कहीं अधिक या तुलनीय हैं, जिसके कारण 2016 में 1.2 अरब कार्य दिवसों का नुकसान हो गया या सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता का अभाव बना हुआ था। इन वजहों से 2015 के लिए 22 अरब कार्य दिवसों के नुकसान को अनुमानित किया गया है।”
ये श्रम नुकसान उच्च आर्थिक लागतों के तौर पर हमारे सामने प्रस्तुत होती हैं। इनका प्रभाव भी देश के हिसाब से महत्वपूर्ण तौर पर भिन्न हो सकता है। चीन और भारत को एक बार फिर से भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, और इंडोनेशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति वर्ष 90 अरब पीपीपी डॉलर से अधिक का नुकसान हो रहा है। भारत को उच्च आर्द्र गर्मी से अपने 2017 के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 7% के बराबर वार्षिक उत्पादकता हानि का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
अपने निष्कर्ष में, शोधकर्ताओं ने कहा है कि श्रम हानि पर आर्द्र गर्मी के प्रभाव की मात्रा और वितरण खुले में काम करने वाले श्रमिकों और उन परिवारों की लोचनीयता और खुशहाली के लिए महत्वपूर्ण जोखिमों को दर्शाता है, जो अपनी आजीविका चलाने के लिए इन श्रमिकों पर निर्भर हैं। इसमें कहा गया है, “यदि वैश्विक गरीबी, घरेलू जलवायु लोचनीयता एवं राष्ट्रीय आर्थिक विकास की चुनौतियों से निपटना है तो इसके लिए श्रमिकों का सुरक्षित काम के वातावरण में बने रहकर आय को अर्जित करना बेहद महत्वपूर्ण है।”
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अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें:-
India Lost 259 Billion Hours of Labour Due to Climate Change, New Study Finds
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