'हम अगर उट्ठे नहीं तो...': देशभर में 5 सिंतबर को 400 से अधिक महिला संगठनों का प्रदर्शन

देशभर के 400 से अधिक महिला संगठनों और LGBTQIA समुदाय और मानव अधिकार संगठन ने मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। इन सभी संगठनो ने एक समन्वय कमेटी बनाई है। उन्होंने एलान किया कि सभी संगठन देशभर में 5 सिंतबर जिस दिन पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई थी उस दिन लोकतान्त्रिक अधिकारों और संविधान पर हो रहे हमले के खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा।
संगठनों ने अपने इस आंदोलन रूपरेखा को लेकर गुरुवार को डिजिटल माध्यम से प्रेस वार्ता की। जिसमे बताया गया कि वे देश भर में 'हम अगर उट्ठे नहीं तो...' अभियान का आरम्भ कर रहे हैं। जिसमें वो सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से अपनी माँगो को उठाएंगे। संगठनों ने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य भारत के लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर हो रहे लक्षित हमलों के खिलाफ आवाज बुलंद करना है।
ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच , सतर्क नागरिक संगठन, NFIW , भारतीय ईसाई महिला आंदोलन, AIDWA, AIPWA, NAPM, ANHAD सहित 400 से अधिक संगठनों का एक साथ आना अपने आप में ऐतिहसिक है। संगठनों ने अपने आंदोलन में महिला और LGBTQIA समुदाय के अधिकारों के साथ ही धारा 370 हटाए जाने, सीएए और एनआरसी जैसे प्रबंधनों को लेकर भी आवाज़ बुलंद की और सरकार पर संप्रदायिक क़ानून बनाने के आरोप लगाए।
समन्वय समिति ने संयुक्त बयान में कहा कि भारत का लोकतंत्र और संविधान एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है। देश में पिछले कुछ सालों में लोकतांत्रिक और विधि प्रणाली का पतन हुआ है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अन्य संस्थानों की कार्यप्रणाली, गंभीर समीक्षा के तले आ गई है और संसद के कामकाज का संगीन रूप से समझौता किया गया है। सरकार ने चुनावी फंडिंग में भ्रष्टाचार का व्यवस्थित आयोजन कर, चुनावी बांड की प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को एक संस्थागत रूप दिया है, जो निगमों को सत्तारूढ़ दल के संदूकों में काले धन को भरने की प्रकिया को मजबूती देता है। सरकार पर किसी प्रकार के सवाल न उठाये जा सकें और न ही उन्हें किसी भी निर्णय का ज़िम्मेदार ठहराया जा सके इसके लिए सूचना के अधिकार कानून को कमजोर करके नागरिकों के मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार पर प्रहार किया है।
आगे उन्होंने समाज में बढ़ती हिंसा को लेकर भी सरकार पर हमला बोला और कहा कि देश में फासीवादी और नव-उदारवादी ताकतों की वृद्धि, के परिणामस्वरुप समाज में हिंसा में बढोतरी हुई है जिससे खासकर LGBTQIA समुदायों के लोगों और महिलाओं के जीवन और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। अल्पसंख्यकों पर लगातार हमलों ने देश में भय और असुरक्षा का माहौल बना दिया है।
इसके साथ ही उन्होंने नागरिकता कानून को लेकर आलोचना की और कहा कि ऐसे कानूनों से समाज में घृणा फैल रही है। इसके साथ ही उन्होंने देशभर में जिस तरह महिलाओं ने इन कानूनों का सड़को पर उतरकर विरोध ही नहीं बल्कि इन आंदोलनों का नेतृत्व किया उसकी तारीफ की और कहा कि पूरे भारत में लोग सरकार के इस प्रतिगामी फैसले के विरुद्ध शांतिपूर्ण और अनोखे तरीके से उठे; महिलाओं ने संविधान की रक्षा के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया। दुर्भाग्य से, आंदोलन के जवाब में लक्षित सांप्रदायिक हिंसा को सत्ताधारी दल द्वारा समर्थित किया गया।
समिति ने सरकार के मज़दूर विरोधी होने का आरोप लगया और कहा कि 'कोरोना संकट ने वर्तमान शासन की गरीब-विरोधी विचारधारा को और उजागर कर दिया है। महामारी से निपटने के लिए लगाए गए अनियोजित और कठोर लॉकडाउन ने देश में आर्थिक तबाही और विनाश को जन्म दिया है। इससे तुरंत प्रभाव से लाखों गरीबों के सभी आय के अवसर समाप्त हो गए और वह बेरोजगार हो गए। इसका विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रवासी श्रमिकों की अपने बच्चों के साथ सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चलने वाले वाली हृदय-विदारक रिपोर्ट और तस्वीरें सामने आई हैं, जो कि लॉकडाउन की विशेषता बन गई है।'
इसके साथ ही सभी ने कश्मीर के हालत को लेकर चिंता जताई और कहा कि अगस्त 2019 में, सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द कर भारत के संविधान और संघीयता/संप्रभुता पर हमला किया है और जम्मू कश्मीर के राज्य होने के दर्जे को नष्ट किया। एक साल होने पर भी अभी तक वहां पर इंटरनेट सेवाए पूरी तरह बहाल नहीं हुई हैं, भाषण और लोकतंत्र पर पूरी तरह से पाबन्दी है, और कश्मीरी राजनैतिक कैदियों को बिना मुकदमे के भारत की जेलों में बंदी बना दिया गया है। यहाँ तक कि वहां पूर्व मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार कर घर में ही रखा गया है। हाल ही में, सरकार ने इस क्षेत्र के अधिवास कानून में इसीलिए संशोधन किया है।
समिति ने अपने बयान में आरोप लगाया कि सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम जैसे प्रतिगामी कानूनों ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। संपूर्ण LGBTQIA समुदाय की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत कम प्रावधान हैं। एससी / एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम और (SC / ST / OBC) के आरक्षण को कम करने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं।
इसके साथ ही इन संगठनों ने नई शिक्षा नीति की भी आलोचना की और इसे महिला विरोधी बताया। उन्होंने कहा यह शिक्षा प्रणाली के अधिक केंद्रीकरण, सांप्रदायिकरण और व्यावसायीकरण को सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। कोरोना को कम करने के नाम पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रदत्त कानूनों को कम करने के कदम उठाए गए हैं, जिससे शासन का महिला विरोधी रवैये का पता चलता है।
अंत में अपने संयुक्त बयान में संगठनों ने कहा कि भारत के संविधान को बचाने के लिए आंदोलन में महिलाएं और LGBTQIA व्यक्ति सबसे आगे रहे हैं। ‘हम अगर उट्ठे नहीं तो...’ “if we do not rise” अभियान संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए एक पहल है।
आंदोलन की रूपरेखा
समन्वय समिति ने दावा किया कि इस अभियान के हिस्से के रूप में, हजारों लोग और समूह देश भर में एक साथ ऑन-लाइन और ज़मीन पर वर्णित मुद्दों पर अपनी आवाज़ निम्न तरीकों से उठाएंगे।
• 2-4 मिनट के वीडियो बनाएं जाएंगे और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा करेंगे।
• फेसबुक पर लाइव प्रसारण करेंगे ।
• सोशल मीडिया पर सर्कुलेशन के लिए पोस्टर, एनीमेशन, मीम्स, गाने और अभिनय बनाए जाएंगे।
• शारीरिक दूरी मानदंडों का पालन करते हुए 5-10 लोगों के छोटे समूहों में इकट्ठा करेंगे और सोशल मीडिया पर तस्वीरें पोस्ट किये जाएँगे।
• स्थानीय अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया जाएगा।
अभियान के एक भाग के रूप में महिलाओं और ट्रांसजेंडर के खिलाफ हिंसा, स्वास्थ्य, महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी, प्रवासी श्रमिकों, महिला किसानों और यौनकर्मियों सहित विभिन्न विषयों पर फैक्टशीट भी जारी करने की योजना है।
इसके साथ ही समिति ने सभी कलाकारों, बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और संबंधित नागरिकों से 5 सितंबर को अभियान में शामिल होने की अपील की है।
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