सरकारों द्वारा होने वाली आर्थिक हिंसा की तरह है बढ़ती असमानता- ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट

ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने सोमवार, 17 जनवरी को असमानता पर अपनी 2022 की रिपोर्ट जारी कर दी है। इस रिपोर्ट में संगठन ने दुनियाभर की सरकारों की असमानता को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ने देने के लिए आलोचना की है। रिपोर्ट कहती है कि सरकारों ने "ऐसी स्थितियां बनने दीं, जिसमें कोविड-19 वायरस, अरबपतियों की संपदा वाले नए वेरिएंट में बदल गया।" रिपोर्ट कहती है कि हर चार सेकेंड में असमानता एक व्यक्ति को मारती है।
रिपोर्ट का दावा है कि दुनिया ने अरबपतियों की संपदा में अभूतपूर्व वृद्धि को देखा। जब से कोविड-19 चालू हुआ है, तबसे हर 26 घंटे में एक अरबपति पैदा होता है। रिपोर्ट में खोजे गए तथ्यों के मुताबिक़, दुनिया के 10 सबसे अमीर पुरुषों ने उस दौरा में अपनी संपत्ति दोगुनी कर ली, जब मार्च, 2020 से नवंबर, 2021 के बीच, दुनिया के कम से कम 16 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए।
ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट हर साल स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यू ई एफ- वर्ल्ड इक्नॉमिक फोरम) की बैठक से पहले जारी की जाती है। दुनिया में बढ़ती असमानता के लिए ज़िम्मेदार नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विश्व आर्थिक मंच अहम रहा है।
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों ने 2020 मार्च में महामारी की शुरुआत के बाद से अब तक अपनी संपत्ति में दोगुनी वृद्धि कर ली है। इसी अवधि में दुनिया की 99 फ़ीसदी आबादी की आय कम हुई है। रिपोर्ट बताती है कि इस उछाल के चलते, इन 10 लोगों की संपत्ति दुनिया के 3।1 अरब सबसे कम आय वाले लोगों के बराबर है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि महामारी के दौरान ऐतिहासिक सामाजिक असमानताएं भी भयावह तरीके से बढ़ी हैं। आज, 252 पुरुषों के पास इतनी संपत्ति है, जितनी सारी महिलाओं और लड़कियों के पास है। इन लोगों के पास इतनी संपत्ति है, जितनी अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों के एक अरब लोगों के पास है।
रिपोर्ट दावा करती है कि वैश्विक असमानता में वृद्धि और संपदा का केंद्रीयकरण, पूरे नवउदारवादी दौर का मुख्य तथ्य रहा है। इसके मुताबिक़, 1995 से वैश्विक आबादी के शुरुआती एक फ़ीसदी ने "दुनिया के सबसे कम संपत्ति वाले 50 फ़ीसदी लोगों की तुलना में 20 गुना ज़्यादा संपत्ति अर्जित की है।"
बढ़ती असमानता: ढांचागत नीतियों में चुने गए विकल्पों का नतीज़ा
रिपोर्ट में बड़े पैमाने की इस असमानता को आर्थिक हिंसा करार दिया गया है, "जो तब होती है, जब सबसे अमीर और ताकतवर लोगों के लिए सहूलियत वाली ढांचागत नीतियां बनाई जाती हैं।" अमीर लोगों पर जरूरी कर लगाने में सरकारों द्वारा की जाने वाली आनाकानी के चलते उनका मुनाफ़ा अधिकतम हुआ है, जबकि इसके लिए बड़े पैमाने पर दूसरे लोगों को दुख भोगने को मजबूर होना पड़ा है। रिपोर्ट बताती है कि कैसे कुछ सरकारों ने सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य और शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च की नीतियों पर तब भी कटौती की, जब महामारी जारी थी, जिसके चलते जरूरी चीजों में महंगाई बेइंतहां बढ़ रही थी।
रिपोर्ट बताती है कि सरकार के इस तरह के नीतिगत फ़ैसलों से ना केवल कुछ लोगों की संपदा में बेइंतहां वृद्धि हुई है, बल्कि इससे हम लोगों को सीधा नुकसान हुआ है, खासकर गरीब लोगों, महिलाओं, लड़कियों, खासतौर पर वंचित तबके को बहुत घाटा हुआ है।
रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए प्रोफ़ेसर जयती घोष ने लिखा है कि असमानता में इस तरीके की वृद्धि के प्रभाव बेहद बड़े होंगे। इसके पीड़ित वह लोग होंगे, जिनके पास पहले ही संसाधनों की कमी है, इनमें से ज़्यादातर कम और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोग होंगे, इस पीड़ित वर्ग में महिलाएं, लड़कियां और सामाजिक तौर पर वंचना के शिकार लोग और अनौपचारिक कामग़ार ज़्यादा शामिल होंगे।" उन्होंने कहा कि त्रासदी यह है कि इन पीड़ित समूहों में से कोई भी नीतियों को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है।
असमानता मारती है
रिपोर्ट कहती है कि महामारी के चलते एक करोड़ सत्तर लाख लोगों की मौत हुई है, जिनमें से ज़्यादातर असमानता के चलते मारे गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, कुछ देशों में कोविड-19 के चलते गरीब़ लोगों के मरने की संभावना अमीरों के चलते चार गुना रही। "और मध्यम व निम्न आय वाले देशों में कोविड-19 से संक्रमित होने वाले लोगों के मरने की संभवना, अमीर देशों के लोगों से दोगुनी होती है।"
रिपोर्ट कहती है कि "उम्र की तुलना में आपकी आय ज़्यादा मजबूत सूचकांक होती है, जो बताए कि आपकी कोविड-19 से मरने की संभावना कितनी है।" रिपोर्ट का दावा है कि अगर सही वक़्त पर वैक्सीन लग जाता तो लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती थी। लेकिन तकनीक पर नियंत्रण के कॉरपोरेट लालच के चलते वैक्सीन में छुआछूत किया गया और लाखों लोगों को मुनाफ़े के चलते वैक्सीन तक पहुंच से रोका गया। रिपोर्ट के मुताबिक़, "पारंपरिक अनुमानों के आधार पर असमानता हर दिन 21,300 लोगों की मौत की वज़ह बनती है।"
उदाहरण के लिए अमेरिका में अश्वेत अमेरिकियों में कोविड-19 के चलते होने वाली मौत की दर, श्वेत आबादी की तुलना में बहुत ज़्यादा है। कोविड-19 के चलते श्वेत लोगों की तुलना में 34 लाख अश्वेत ज्यादा मारे गए हैं।
वैश्विक असमानता और कोविड-19 के प्रभाव पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि "मौजूदा विभाजन का सीधा संबंध नस्लभेद, गुलामी और साम्राज्यवाद की ऐतिहासिक विरासत से है।"
रिपोर्ट कहती है कि अगर शुरुआती 10 अरबपतियों पर ही महामारी के दौरान कमाए गए भारी मुनाफ़े पर 99 फ़ीसदी कर लगा दिया जाता है, तो इससे 812 अरब अमेरिकी डॉलर इकट्ठे किए जा सकते हैं। इतना पैसा कम से कम 80 देशों में वैक्सीन देने और सामाजिक सुरक्षा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा, लैंगिक आधार पर होने वाले हिंसा को खत़्म करने और पर्यावरण सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले जरूरी कदमों के लिए लगने वाले खर्च को पूरा कर सकता है। रिपोर्ट तो यह दावा तक करती है कि इतने कर के बाद भी शुरुआती 10 अमीरों के पास 80 अरब रुपये बचे होंगे, जो "उन्हें महामारी से पहले के दौर से बेहतर स्थिति में रखेगा।"
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