कोरोना संकट के बीच अदालतों के सख़्त रवैए के बाद भी सरकारों की मनमानी?

“हमें अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण कोरोना मरीजों की मौतों को देखकर दुख हो रहा है। ऑक्सीजन की सप्लाई न करना एक आपराधिक कृत्य है। इस तरह से लोगों की जान जाना नरसंहार से कम नहीं है।”
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतों पर ये सख्त टिप्पणी की। अदालत ने आगे कहा कि हमें लगता है कि ये समाचार राज्य सरकार के उस दावे के बिल्कुल विपरीत तस्वीर दिखाते हैं कि प्रदेश में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति है। हाईकोर्ट ने मेरठ और लखनऊ जिलों में ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीजों की मौत के वायरल वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट्स का भी संज्ञान लिया। बेंच ने कहा कि लोगों को परेशान किया जा रहा है। जिला और पुलिस प्रशासन दोनों कुछ नहीं कर रहे हैं। लोग अपने करीबियों और प्रियजनों की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की भीख मांग रहे हैं।
आपको बता दें कि कोरोना संकट के बीच ऑक्सीजन से लेकर, अस्पतालों में बेड और दवा की क़िल्लत की ख़बरों को लेकर अब देशभर की अदालतें सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को पिछले कुछ दिनों से जमकर फटकार लगा रही हैं। कई जगह समाजसेवी संगठनों ने पीआईएल दाख़िल किया है और कई मामलों में अदालतों ने इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकारों से जवाब माँगा है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया कारण बताओ नोटिस
मंगलवार, 4 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने सख़्त रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा कि दिल्ली को पर्याप्त ऑक्सीजन सप्लाई करने के कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने के लिए उनके ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का मामला क्यों नहीं दर्ज किया जाए। अब केंद्र सरकार हाई कोर्ट के कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँची है।
HC directs Centre to show cause as to why contempt not be initiated against it for failing to comply with order on supply of oxygen to Delhi
— Press Trust of India (@PTI_News) May 4, 2021
मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ़ कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 30 अप्रैल के आदेश में कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मुहैया कराए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दो मई को दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति की समस्या को निपटाने का आदेश दिया था।हाई कोर्ट ने केंद्र को कहा कि आप रेत में शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन छुपा सकते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे।
There's SC order, now we also say Centre will have to supply 700 MT oxygen daily to Delhi right away by whatever means: HC orally observes
— Press Trust of India (@PTI_News) May 4, 2021
पटना हाई कोर्ट ने कहा, कोरोना से निपटने में बिहार सरकार पूरी तरह नाकाम
बिहार में हर दिन गहराते कोरोना संकट के बीच राज्य सरकार की कार्यशैली को लेकर पटना हाई कोर्ट ने भी कड़ी आपत्ति जताई है। शिवानी कौशिक की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अपनी नाराज़गी जताई और कहा कि कोरोना से निपटने में बिहार सरकार पूरी तरह नाकाम हो रही है, पूरी व्यवस्था ही ढेर हो चुकी है।
मंगलवार को अदालत ने कहा कि बार-बार आदेश के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं होना शर्म की बात है। इसके साथ ही काफी तल्ख टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में तो राज्य में कोविड प्रबंधन की जिम्मेदारी सेना को सौंप देनी चाहिए। इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई छह मई तक के लिए स्थगित कर दी। अब इस मामले में सुनवाई छह मई को होगी। माना जा रहा है कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर पटना हाई कोर्ट की फटकार के बाद ही राज्य भर में 15 मई तक के लिए लॉकडाउन लगाया गया है।
बिहार में कोरोना के हर दिन बढ़ते संक्रमण को लेकर चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था पर कोर्ट की नाराज़गी इस बात को लेकर थी कि राज्य के विभिन्न अस्पतालों में निरंतर ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर अब तक कोई ठोस एक्शन प्लान क्यों नहीं दिया गया है। अस्पतालों में बिस्तर और वेंटीलेटर की कमी है। वहीं केंद्रीय कोटा से हर दिन मिलने वाले 194 मीट्रिक टन की जगह 160 मीट्रिक टन ही क्यों आपूर्ति की जा रही है। कोर्ट के निर्देश के बावजूद इएसआई अस्पताल, बिहटा पूरी क्षमता के साथ नहीं चालू किया जा सका है।
सुनवाई के दौरान भी हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के पास डॉक्टर, वैज्ञानिक, अधिकारियों की कोई सलाहकार समिति तक नहीं है जो अपने अनुभवी विचार इस महामारी से निपटने के लिए दे सके। कोर्ट के आदेश की अवहेलना और हर दिन औसत 12 हज़ार एक्टिव केस मिलने पर नाराज़ खंडपीठ ने यहाँ तक कह दिया कि या तो सरकार बेहतर निर्णय ले या फिर कोर्ट कोई बड़ा निर्णय लेने को बाध्य होगा।
सरकार अदालत के आदेशों की पूरी तरह अनदेखी कर रही है : गुजरात हाई कोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि वो इस बात से बहुत व्यथित है कि कोरोना के मामले में सरकार उसके आदेशों की पूरी तरह अनदेखी कर रही है। अदालत ने अहमदाबाद नगर निगम को आदेश दिया है कि वह कोविड-19 अस्पतालों में विभिन्न श्रेणियों के बेड की उपलब्धता का रियल टाइम अपडेट प्रदान करने के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड पेश करे।
क़ानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव डी कारिया की खंडपीठ ने कहा, "हम राज्य सरकार और निगम के रवैए से बहुत व्यथित हैं। इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। पिछले तीन आदेशों से, हम रियल टाइम अपडेट के मुद्दे का उल्लेख कर रहे हैं, लेकिन आज तक, राज्य या निगम द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है।"
कर्नाटक हाई कोर्ट ने केंद्र से पूछा- आप चाहते हैं कि लोग मरें?
कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार से ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के लिए कहा। मंगलवार को राज्य सरकार की तरफ़ से अदालत को जानकारी दी गई कि राज्य में फ़िलहाल रोज़ाना 1692 मेट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत है और केंद्र सरकार ने उसके कोटे को 802 से बढ़ाकर 856 मेट्रिक टन किया है।
क़ानूनी मामलों की वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस अभय श्रीनिवास ने केंद्र सरकार के वकील ने नाराज़गी जताते हुए कहा, "आप चाहते हैं कि लोग मरें? आप हमें यह बताएं कि आप राज्य (कर्नाटक) को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा कब बढ़ाएंगे?"
"You want people to die? Tell us when you are going to increase Oxygen quota?" Karnataka High Court to Central govt
report by @Rintumariam#Karnataka #Oxygen #CovidIndia
https://t.co/XlmuN0YA8D— Bar & Bench (@barandbench) May 4, 2021
केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि वो सरकार से बातचीत किए बिना अदालत के सामने कोई बयान नहीं दे सकते हैं और वो बुधवार को राज्य में ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के बारे में केंद्र सरकार से बात करेंगे।
कोर्ट को राज्य सरकार ने बताया कि उन्हें रेमडेसिवीर दवा भी ज़रूरत से आधी मिल रही है। अदालत ने इस मामले में बुधवार को आदेश पास करने को कहा है।
बॉम्बे हाईकोर्ट में होगी बीसीसीआई पर 1000 करोड़ के जुर्माने की याचिका पर सुनवाई!
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर विचार करने के लिए अपनी मंज़ूरी दे दी है जिसमें माँग की गई है कि आईपीएल को रद्द किया जाए। इसी याचिका में यह माँग भी कई गई है कि कोरोना महामारी के बीच आईपीएल आयोजित करने के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर 1000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाए और इस पैसे को लोगों के उपचार के लिए दवाओं और चिकित्सकीय ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ख़र्च करने के निर्देश दिए जाएं।
अदालत ने इस पर गुरुवार को सुनवाई करने के निर्देश दिए हैं लेकिन इस बीच आईपीएल को इस सीज़न के लिए स्थगित कर दिया गया है तो रद्द करने की याचिका का अब तो कोई महत्व नहीं रह जाता है लेकिन देखने वाली बात होगी कि बॉम्बे हाईकोर्ट क्या जुर्माना लगाने की बात मानता है या नहीं।
इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि चीफ़ जस्सिट दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली बेंच गर्मी की छुट्टियों के दौरान भी कोरोना से जुड़ी जनहित याचिकाओं की सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट की गर्मियों की छुट्टियां 10 मई, 2021 से शुरू होंगी और छह जून, 2021 को समाप्त होंगी।
ऑक्सीजन और दूसरी ज़रूरी दवाएँ युद्ध स्तर पर मुहैया कराएं : राजस्थान हाई कोर्ट
कोरोना संक्रमितों के इलाज को लेकर बरती जा रही कोताही और केंद्र सरकार की ओर से पर्याप्त मात्रा में राजस्थान को ऑक्सीजन व रेमडेसिवीर नहीं देने को लेकर दायर जनहित याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र व राज्य सरकार को जवाब तलब कर उपलब्धता सुनिश्चित करने का रोडमैप पेश करने को कहा है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की जानकारी रियल टाइम में करे। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को निर्देश दे दिए गए हैं कि वो अस्पतालों को ऑक्सीजन और दूसरी ज़रूरी दवाएँ युद्ध स्तर पर मुहैया कराएं। अदालत ने राज्य सरकार से भी कहा कि वो ऐसे प्लांट से ऑक्सीजन जेनेरेट करने के बारे में सोचें जो प्लांट फ़िलहाल बंद पड़े हैं लेकिन उन्हें चालू किया जा सकता है।
गौरतलब है कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए भारत निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने भी आयोग के खिलाफ कठोर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ईसीआई (इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया) अकेले कोविड की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार है और उसके अधिकारियों को" शायद हत्या के लिए" बुक किया जाना चाहिए।
मालूम हो कि चार राज्यों के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव के दौरान प्रचार से लेकर मतगणना तक जमकर कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ी थी। चुनाव ड्यूटी पर तैनात कई कर्मचारियों और शिक्षकों की मौत की खबरें भी सामने आईं। चुनावों के बीच कोविड -19 की नई लहर ने हर दिन संक्रमण के मामलों और मौतों का नया रिकॉर्ड बनाया। बढ़ते मामलों के बीच पीएम मोदी और अन्य नेताओं की रैलियों में हज़ारों हज़ार की भीड़ नजर आई। सड़क से सोशल मीडिया पर भारी अपील के बावजूद न चुनाव टले और न ही मतगणना। ऐसे में जाहिर है कोरोना महामारी के चलते बेकाबू होते हालात के लिए सरकार और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठना लाजमी हैं।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।