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फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप : मोरोक्को ने राष्ट्रवाद पर डच प्रोफ़ेसर ने जो कहा उससे भारत को भी सबक लेना चाहिए

किसी भी देश में अल्पसंख्यकों के प्रति प्रेम में कमी अलगाव को जन्म देती है। जबकि,  क्लब के साथ संबंध लोगों के भीतर अन्य पहचानों से आगे बढ़ने में मदद करते हैं, और ऐसी भावनाओं को फुटबॉल के मैदान में व्यक्त किया जाता है।
Maurice Crul

जब मोरक्को फीफा विश्व कप फाइनल में जगह पाने के लिए फ्रांस के ख़िलाफ़ खेल रहा था, तो नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में कई श्वेत लोग भी डच लोग मोरक्को के स्टार हाकिम ज़िच के लिए उत्साह जता रहे थे। उनके भीतर ज़िच को लेकर कोई नाराजगी नहीं है कि उसने नीदरलैंड के बजाय मोरक्को के लिए खेलना चुना था। उनके भीतर ज़िच के फैसले को लेकर कोई गुस्सा नहीं है, जिसे हम भारतीय शायद विश्वासघात समझते। आखिरकार, वह उनका बेटा है, एम्स्टर्डमचे फुटबॉल क्लब अजाक्स के प्रशंसकों का एक नायक है, जिस क्लब को अजाक्स के नाम से जाना जाता है, जिसके लिए वह चार सीजन तक सफलतापूर्वक फुटबाल खेला है।

इसलिए अजाक्स के प्रशंसक मोरक्को के लिए खेलने वाले ज़िच का समर्थन करेंगे। “क्लब की पहचान राष्ट्रवाद पर हावी हो जाती है, खासकर अब जब नीदरलैंड टूर्नामेंट से बाहर हो गया है। इसलिए, खिलाड़ी जिस देश में पैदा नहीं हुए होते, उसके खेलने का विकल्प चुनने के बाद, तब समर्थक एक राष्ट्रीय टीम भी चुनते हैं, जिससे वे केवल उस खिलाड़ी के माध्यम से जुड़ते हैं," उक्त कथन मौरिस क्रुल ने एक ईमेल साक्षात्कार में मुझे लिखा था।

क्रुल पहचान के बारे में कुछ ऐसी एक या दो बातें जानते हैं जो हम में से अधिकांश नहीं जानते, क्योंकि वे व्रीजे यूनिवर्सिटी, एम्स्टर्डम में पहचान, विविधता और समावेशन के प्रोफेसर रह चुके हैं, और वे इस स्कूल में अप्रवासी बच्चों के लिए बनी एक परियोजना के साथ निकटता से जुड़े हुए थे। क्रूल वर्तमान में एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना के साथ जुड़े हुए हैं जो इस बात का अध्यन करतेती है कि बड़े पश्चिम यूरोपीय शहरों के निवासी अपने आसपास बढ़ती सामाजिक विविधता को कैसे अपना रहे हैं।

ज़िच का जन्म नीदरलैंड के एक छोटे से प्रांतीय शहर द्रोन्टेन में हुआ था, उनके माता-पिता मोरक्को से चले गए थे। गलियों में खेलते उनके कौशल को पहचाना गया, उन्हें तैयार किया गया और फुटबॉल की बड़े इवेंट के लिए उन्हे प्रशिक्षित किया गया। ज़िच उन चार मोरक्कन में से एक है- जिसमें अन्य तीन, नूस्सैर मज़रौई, सोफियान अमरबात और ज़कारिया अबोखल हैं- जिनका जन्म नीदरलैंड में हुआ था, लेकिन अब कतर में 2022 फीफा विश्व कप में खेलने वाले मोरक्कन दस्ते के सदस्य हैं।

राष्ट्रवाद का दंभ शायद ही कभी अलगाव में संचालित हो पाता है। खेल में अक्सर अन्य सामाजिक गतिशीलता भी देखने को मिलती हैं। डच टीवी चैनल आरटीएल4 को हाल ही में एक स्थानीय शौकिया क्लब असव ड्रोनतें के अध्यक्ष ने बताया था, जिसके लिए ज़ीच अपने शुरुआती वर्षों में खेले थे, कि उनकी टीम के युवा खिलाड़ी नीदरलैंड के स्टार खिलाड़ी मौरिस डेपे नहीं बनना चाहते हैं बल्कि वे हकीम ज़ीच  बनना चाहते हैं। क्रुल ने अध्यक्ष की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा, "ये युवा खिलाड़ी सफेद डच बच्चे हैं, जिनके लिए स्थानीय नायक [इतने महत्वपूर्ण] लगते हैं कि वे राष्ट्रवाद को धता बता सकते हैं। इससे पता चलता है कि पहचान एक दिलचस्प चीज है और यह कि राष्ट्रवाद अन्य पहचानों के साथ घुलमिल जाता है।”

ज़ीच के लिए अजाक्स प्रशंसकों का समर्थन लगभग कट्टर समर्थन है। क्रुल ने कहा कि अजाक्स समर्थकों के बीच "शरारती" एफ-साइड ने भी जब भी ज़ीच ने गोल किया तो उसके लिए एक "खास जयकार" वाले नारे का आविष्कार किया था। किसी अज्ञात कारण से, अजाक्स को यहूदी मूल का माना जाता है। एफ-साइड ने खुद को 'सुपर यहूदियों' के रूप में चित्रित करने के लिए इस आविष्कृत पहचान का सहारा लिया है। ऐतिहासिक यहूदी-मुस्लिम मतभेदों और संघर्ष को देखते हुए, एफ-साइड द्वारा मोरक्कन मुस्लिम ज़ीच के लिए समर्थन विडंबना से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि क्लब की समानताएं लोगों को अन्य पहचानों से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

लेकिन ज़ीच जैसे मोरक्कन खिलाड़ियों के लिए समर्थन तब आश्चर्यजनक लगता है जब वे अपने जन्म-स्थान के मुक़ाबले अपने मूल देश के लिए खेलना चुनते हैं। क्रुल ने कहा कि, खिलाड़ियों के लिए, सबसे प्रतिष्ठित फुटबॉल क्षेत्र यूरोप है। चाहे मोरक्को में पैदा हुआ हो या यूरोप में, मोरक्को के फुटबॉल दस्ते के सदस्य हमेशा यूरोप के फुटबॉल क्लबों के लिए सीधा रास्ता बनाते हैं। और "विश्व कप खेलने के लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ा है।"

क्रुल कहते हैं, कोई भी खिलाड़ी अक्सर, अपने मूल देश या जन्म वाले देश से खेलने का निर्णय लेने से पहले तीन महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करते हैं। "एक खिलाड़ी जानना चाहेगा कि, 'वह कौन सी टीम है जिसमें उसे सुरक्षित स्थान मिलने की सबसे अधिक संभावना है?' फिर, दो राष्ट्रीय टीमों में से किसकी विश्व कप में क्वालीफाई करने की अधिक संभावना है। उनके वित्तीय सलाहकार खिलाड़ी के फैसले में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इसमें बहुत बड़ा धन का दांव भी शामिल है जो तीसरा बड़ा कारक है।" 

ज़िच की कहानी क्रुल के विश्लेषण की पुष्टि करती है। 2015 में, उन्होंने कमोबेश नीदरलैंड्स को चुनने का फैसला किया था, एक साक्षात्कारकर्ता में बताया था कि उनके लिए निर्णायक कारक नीदरलैंड का अक्सर बड़े टूर्नामेंटों में क्वालीफाई करना था। अगले साल, डच 2016 यूरोपीय चैम्पियनशिप तक पहुंचने में विफल रहे, जिससे ज़िच का मन बादल गया। 

दरअसल, विश्व कप में किसी खिलाड़ी को जिस तरह का एक्सपोजर मिलता है, वही  अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल बाजार में उसकी वित्तीय कीमत तय करता है। उदाहरण के लिए, कुछ मोरक्कन खिलाड़ी, विशेष रूप से कनाडा में जन्मे उनके गोलकीपर बोनो (यासिन बाउनो), कतर में उनके शानदार प्रदर्शन के कारण दुनिया भर में घरेलू नाम बन गए हैं। उनका बाजार मूल्य बड़ी तेजी से बढ़ना चाहिए।

क्रूल के मुताबिक, तीसरा कारक पहचान का है। "वास्तव में यह एक वाइल्ड कार्ड है," मूल देश के साथ पहचान के मामले में खिलाड़ी की पहचान की तीव्रता पर निर्भर है। क्रुल ने कहा, "एटलस लायंस टीम में यूरोप में पैदा हुए खिलाड़ियों के लिए मोरक्कन पहचान मजबूत और गर्व से आवाज उठाई गई है।" मोरक्कन डायस्पोरा, ने इसे प्रदर्शित किया है।

मोरक्कन लोगों की यह ऊर्जा उनके द्वारा खुद के देश पर किए जाने वाले गर्व से उत्पन्न होती है। क्रुल ने कहा कि, यह ऊर्जा "9/11 के हमलों के बाद यूरोप में पैदा हुए भेदभाव और नफरत के कारण, बहुत से युवा मोरक्को के दिलों में गुस्से से भरी हुई है।" उन्होंने नफरत की राजनीति के कई उदाहरणों का हवाला दिया- मोरक्को की महिलाओं को नस्लवादी गालियां दी गईं और हमलावरों ने उनके दुपट्टे/हेडस्कार्व्स को चीरने का प्रयास किया।

कुछ समय पहले तक भी, मोरक्को के लोगों को श्रम बाजार में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था, शोध से पता चलता है कि नौकरी हासिल करने की उनकी संभावना डच वंश की तुलना में दो या तीन गुना कम थी। "मोरक्को के बच्चे अपने दैनिक जीवन में बहुत अधिक नस्लवाद का अनुभव करते हैं – तब-जब वे फुटबॉल मैचों के दौरान दूसरों के खिलाफ अपनी टीम के लिए खेलते हैं। क्रूल बताते हैं कि, किसी भी अन्य समूह के मुक़ाबले वे नस्लवाद के शिकार हुए हैं।" 

लेकिन क्रुल ने मोरक्कन राष्ट्रवाद के एक दिलचस्प पहलू की ओर भी इशारा किया, जो "यूरोप में प्रवासियों के बीच कभी बहुत मजबूत नहीं रहा। और ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रवासी ज्यादातर मोरक्को के उत्तरी हिस्से अमेजिग से हैं। अमाज़ी लोग अपनी संस्कृति और भाषा के मामले में एक विशिष्ट जातीय समूह हैं, और कुछ लोग उस अरबीकरण का विरोध करते हैं, जिसके अधीन उन्हे करना चाहते हैं। अमाज़ी कार्यकर्ता अब युवा पीढ़ी के बीच अपनी भाषा को लोकप्रिय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अमाज़ी को पहले बेरबर्स के नाम से जाना जाता था, यह शब्द बारबेरियन शब्द से लिया गया है, जो निर्विवाद रूप से एक नस्लवादी गाली है। इसका एक गाली है और इसे हतोत्साहित किया जाता है।

निश्चित रूप से, विश्व कप, मोरक्को के भीतर जातीय विभाजन पर आधारित है। क्रुल ने कहा, "यह केवल यह दिखाने के लिए है कि राष्ट्रवाद के अलावा कुछ और भी शामिल है। यह [यूरोपीय लोगों के लिए] एक बयान देने का मामला भर है कि जब आप मुझे चुनने के लिए कहेंगे, तो मैं उस देश के बजाय मोरक्को को चुनूंगा जहां मैं पैदा हुआ और पला-बढ़ा हूं। इसमें मोरक्को की युवा पीढ़ी ने जो दर्द और भेदभाव महसूस किया है, उसने एक बड़ी भूमिका निभाई है।

लेकिन राजनीति और स्थिति से परे, मोरक्को के खिलाड़ियों ने अपने जन्म के देश में अपने प्रशंसकों द्वारा दिखाए गए प्यार का जवाब दिया है। उदाहरण के लिए, ज़ीच ने चेल्सी में जाने से पहले, एम्स्टर्डम से सिर्फ 18 किमी दूर विंकवीन गांव में 4.4 मिलियन यूरो का एक विला खरीदा था। यह वह गांव है जो शो बिजनेस में शामिल हैं और अंतरराष्ट्रीय खेलों के सितारे यहाँ रहते हैं। अन्यथा, सफल मोरक्कोवासियों का आदर्श अपने मूल देश में आलीशान घर खरीदना होता है।

क्रुल ने कहा, "वहां विला खरीदने का उनका फैसला एम्स्टर्डम के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है न कि उनकी मातृभूमि मोरक्को के प्रति। एम्स्टर्डम अजाक्स समर्थक ज़ीच से प्यार करते हैं, लेकिन वे एम्स्टर्डम से भी प्यार करते हैं।" 

क्रुल ने समझाया कि, ज़ीच एम्स्टर्डम को उसकी सहिष्णुता की वजह से प्यार है - अजाक्स समर्थकों को देश में उनके नस्ल-विरोधी नस्लवादी रुख के लिए पहचाना जाता है, जिसमें आप्रवासी विरोधी और इस्लाम विरोधी पार्टियों के लिए समर्थन बढ़ रहा है। “अजाक्स भी उन टीमों में से एक थी जो 1990 के दशक में अश्वेत खिलाड़ियों और अप्रवासियों को अवसर प्रदान करती थी। ज़ीच एम्स्टर्डम और अजाक्स से जुड़ा हुआ है, लेकिन जब यह राष्ट्रीय टीम और नीदरलैंड की बात आती है तो यह एक अलग कहानी हो जाती है।" 

सीधी सी बात है, मोहब्बत से मोहब्बत बढ़ती है।

भारत मोरक्को के राष्ट्रवाद और उनके फुटबॉल विकल्पों के बारे में डच प्रोफेसर की मार्गदर्शिका से सीख ले सकता है। याद कीजिए कि कैसे मोहम्मद शमी को पिछले साल टी20 विश्व कप में खराब गेंदबाजी करने के लिए ट्रोल किया गया था, इसे उनकी मुस्लिमता से जोड़कर और उन पर पाकिस्तान के लिए सॉफ्ट स्पॉट होने का आरोप लगाया गया था। या अर्शदीप सिंह के बारे में सोचिए, जिन्हें इस साल टी20 विश्व कप मैच में रन लुटाने के लिए खालिस्तानी कहा गया था। उन मुसलमानों की भावनाओं पर विचार करें जिन्हें लगभग हर दिन राक्षस के रूप में चित्रित किया जाता है। एक देश में अल्पसंख्यकों के लिए प्यार की कमी अलगाव को जन्म देती है, सौभाग्य से जो फुटबॉल के मैदान में नदारद नज़र आती है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Dutch Prof’s Guide to Moroccan Nationalism at FIFA World Cup—And Lessons for India

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