एलिज़ाबेथ होम्स फ़ैसला: अमरीका में ग्राहकों से ठगी जायज़, पर निवेशकों से झूठ नहीं चलेगा

थेरानोस कंपनी की सीईओ, एलिजाबेथ होम्स के केस में फैसला आ गया है। फर्जीवाड़े के केस में उन्हें दोषी करार दिया गया है। थेरानोस नाम की कंपनी, होम्स और उनके पूर्व-साझीदार, रमेश ‘‘सनी’’ बलवानी ने स्थापित की थी और यह कंपनी टैस्टिंग में क्रांतिकारी बदलाव लाने के वादे के साथ सामने आयी थी। इस कंपनी का दावा था कि अपने उन्नत बायो-टैक उपकरणों के बल पर वह, खून की चंद बूंदों से ही, कई-कई टैस्टों के नतीजे मुहैया कराएगी।
जब इस कंपनी का सितारा बुलंदी पर था, थेरानोस की कीमत 9 अरब डालर आंकी गयी थी और एलिज़ाबेथ होम्स को बॉयो-टैक क्रांति की संभावित सिलिकॉन वैली के स्टीव जॉब्स की तरह देखा जा रहा था। होम्स के नाम पर, एक अरब डालर की निजी हिस्सा पूंजी और वेंचर फंडों की बिक्री हुई थी। 2015 में उनका नाम वर्ष के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में आया था और वॉल स्ट्रीट जर्नल ने दुनिया के सबसे युवा अरबपतियों में से एक के रूप में उनका अभिनंदन किया था। अब मुकद्दमे के दौरान पेश किए गए साक्ष्यों ने दिखाया है कि थेरानोस की प्रौद्योगिकी काम नहीं कर रही थी और सच्चाई को बखूबी जानते हुए, उसने जान-बूझकर टैस्टों के झूठे नतीजे दिए थे और फर्जी दस्तावेज बनाए थे। ये दस्तावेज यह भी दिखाते हैं कि किस तरह प्रमुख दवा कंपनियां, इस कंपनी के उत्पादों को आगे बढ़ा रही थीं और अमरीकी सेना तक मैदानी स्तर पर थेरानोस के उपकरणों का इस्तेमाल कर रही थी।
होम्स ने उद्योग जगत के प्रमुख खिलाड़ियों से थेरानोस में करीब एक अरब डालर का निवेश करा लिया था। उसके निवेशकों में वाल्टन परिवार शामिल था, जोकि वॉलमार्ट का स्वामी है। इसी तरह मीडिया मुगल माने जाने वाले रॉबर्ट मार्डोख, ट्रम्प की शिक्षा मंत्री बेत्सी डेवोस व उनका परिवार, ऑरेकॅल की संस्थापक, लैरी एलिसन और दूसरे अनेक धन्नासेठ उसमें निवेश करने वालों में शामिल थे। थेरानोस के निदेशक मंडल में एक से एक चमकने वाले सितारे थे जिनमें अमरीका के पूर्व-विदेश सचिव हेनरी किसिंगर तथा जॉर्ज शुल्त्ज और अमरीकी पूर्व-रक्षा सचिवगण, जेम्स मेटिस तथा वियिलम पैरी के नाम शामिल हैं।
आज के शेयर बाजार का चरित्र यही तो है–इसमें खरबों डालर की निजी संपदा की तूती बोलती है, जो कि द इकॉनमिस्ट के अनुमान के अनुसार 90 खरब डालर के आस-पास बैठेगी। (‘फेमिली ऑफिसेज़ बिकम फाइनेंशियल टाइटन्स’, 18 दिसंबर, 2018)
फर्जीवाड़े और लालच के खेल के इस किस्से में मोड़ यह है कि अदालत ने होम्स को उन हजारों ग्राहकों के साथ फर्जीवाड़े का दोषी नहीं ठहराया है, जिन्होंने थेरानोस के त्रुटिपूर्ण टैस्टों का उपयोग किया था। इससे संबंधित आरोपों में उन्हें बरी कर दिया गया। पूंजी के इस गढ़ में, निवेशकर्ताओं को ठगना ही गुनाह है, न कि अपने उपभोक्ताओं को ठगना! अमरीका का पुरानी चाल का जाना-परखा न्याय यही कहता है : उपभोक्ता ठग होते हैं और उनको ठगने में कोई बात नहीं है, पर निवेशकर्ताओं के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जा सकता है, वे बड़े धनपति जो हैं। थेरानोस के मामले में इन धनपतियों ने सिलिकॉन वैली की इस बेहतरीन परंपरा में कि जब तक चले फर्जीवाड़ा चलाते चलो, एलिजाबेथ होम्स द्वारा बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गयी प्रौद्योगिकी में, 94.5 करोड़ डालर का निवेश किया था!
और थेरानोस का फर्जीवाड़ा क्या था? उसका दावा यह था कि उसका खून के परीक्षण का तरीका, उस परंपरागत तरीके से बिल्कुल अलग है, जिसमें खून के किसी भी टैस्ट के लिए करीब 3 घन सेंटीमीटर खून लिया जाता है, जो आम तौर पर बांह की नस में से निकाला जाता है। टैस्टों की संख्या के हिसाब से इस तरह निकाला जाने वाला खून 30 घन सेंटीमीटर तक जा सकता है। थेरानोस का यह दावा था कि वह ‘‘नानोटेनर’’ नाम की बहुत छोटी शीशी का उपयोग कर और एडीसन नाम की एक विशेष मशीन की मदद से, सामान्य परीक्षणों से सौवें हिस्से के बराबर यानी कुछ बूंद खून से ही, अनेकानेक टैस्ट कर सकती है। आगे चलकर वह एडीसन की जगह पर, मिनीलैब नाम की मशीन ले आयी, जिसके संबंध में दावा था कि वह और ज्यादा टैस्ट कर सकती है तथा और भी सटीक नतीजे दे सकती है।
बेशक, ऐसा भी नहीं है कि एडीसन या मिनीलैब ने टैस्टों के नतीजे ही नहीं दिए हों। उन्होंने टैस्टों के नतीजे दिए थे। लेकिन, इन नतीजों में बहुत भारी गलतियां थीं। थेरानोस का फर्जीवाड़ा सिर्फ इसी तक सीमित नहीं था कि उसके टैस्टों के नतीजे गलत-सलत थे। उसने अपनी मिनीलैब से 1000 से ज्यादा टैस्ट करने का दावा किया था, जबकि उससे सिर्फ 12 टैस्ट ही किए जा सकते थे। उसने इसका दावा किया था कि वह जांच लैबों की थेरानोस की अपनी शृंखला को छोडक़र, दूसरे किसी भी उपकरण का इस्तेमाल नहीं कर रहा था। लेकिन, इसके ठीक उलट उसके ज्यादातर टैस्ट बाजार में कारोबारी तौर पर उपलब्ध, दूसरी कंपनियों की मशीनों पर ही किए जा रहे थे। इसके लिए नानोटेनर में लिए गए खून के नमूनों को पतला कर के उनकी मात्रा बढ़ायी जाती थी ताकि नमूने को आम तौर पर उपलब्ध टैस्टिंग मशीनों के लिए जरूरी परिमाण में लाया जा सके।
अचरज की बात नहीं है एडीसन मशीनों में या नमूनों को पतला कर सामान्य उपलब्ध मशीनों से किए गए इन टैस्टों में, भारी गलतियां थीं। जाहिर है कि मरीजों को इन गलत नतीजों का खामियाजा भुगतना पड़ा था। मिसाल के तौर पर, मुकद्दमे के दौरान इसके साक्ष्य पेश किए गए थे कि थेरानोस के टैस्ट में एक मरीज के गर्भपात हुआ दिखाया गया था, जबकि उसे गर्भपात हुआ ही नहीं था।
अमरीकी कारोबारी पत्रिका, फॉच्र्यून (2014 जून) में प्रकाशित एक कवर स्टोरी में, रिपोर्टर रॉजर पार्लोफ ने इसके संबंध में लिखा था कि किस तरह थेरानोस कंपनी, टैस्टों के लिए फिंगरस्टिक पद्घति का प्रयोग कर और इससे हो सकने वाले टैस्टों की बड़ी संख्या के जरिए, चिकित्सकीय टैस्टिंक उद्योग में एक क्रांति लाने जा रही थी। उन्होंने लिखा था, ‘मुझे तो यह सुई चुभोने से ज्यादा थपथपाने का मामला लगा...और उन टैस्टों की संख्या की विशालता, जो यह कंपनी इससे कर सकती है, अपने प्रतिद्वंद्वियों से कम दाम में।’ फिंगरस्टिक वह उपकरण है जिसका उपयोग आम तौर पर घर पर ही शुगर आदि का टैस्ट करने के लिए किया जाता है। इसके लिए नसों से खून लेने की जरूरत नहीं होती है बल्कि उंगली की त्वचा के नीचे की बारीक शिराओं से, खून की एक-दो बूंदें निकालना ही काफी होता है।
पार्लोफ ने लिखा था कि, ‘थेरानोस के टैस्ट खून की चंद बूंदों से या आम तौर पर टैस्ट के लिए जितने खून की जरूरत होती है उसके 100वें या 1000वें हिस्से के बराबर खून से ही किए जा सकते हैं, जोकि उन लोगों के लिए जिनके अस्पतालों में बार-बार टैस्ट किए जाते हैं या जो कैंसर से पीडि़त हैं, या बुजुर्ग हैं, नवजात हैं, बच्चे हैं, मोटापे से ग्रसित हैं या जिन्हें खून लिया जाना नापसंद है, एक असाधारण उपहार हो सकता है।’ बहरहाल, 2015 के दिसंबर में उन्होंने अपनी इस रिपोर्ट में सुधार करना भी जरूरी समझा था। तब तक, वॉल स्ट्रीट जर्नल में थेरानोस पर जॉन कैरीरू के रहस्योद्ïघाटनों की शृंखला शुरू हो चुकी थी। 2015 के अक्टूबर से शुरू हुई इस शृंखला ने, थेरानोस की मीडिया में गढ़ी गयी छवि को ध्वस्त कर दिया और अंतत: उसके पराभव का रास्ता ही तैयार किया।
फॉच्र्यून के उक्त कवर जैसे मीडिया के प्रचार ने और सिलोकॉन वैली की नामी-गिरामी हस्तियों के अनुमोदन ने ही, एलिजाबेथ होम्स को सितारा बनने और उनकी कंपनी को बॉयोटैक क्षेत्र की भीमकाय कंपनी बनने के रास्ते पर आगे बढ़ाया था। वह खुद तस्वीरों में बहुत सुदर्शन लगती थीं और एक ऐसे सपने को पेश कर रही थीं जिसे बड़ी आसानी से समझा जा सकता था और यह सब तब किया जा रहा था जब प्रौद्योगिकी ताबड़तोड़ रफ्तार से आगे बढ़ रही है और जिस सब पर अरबपतियों का भरोसा जम सकता था कि इस सफल नये ख्याल में शुरूआत से निवेश करने के जरिए, वे तगड़ी कमाई कर सकते हैं। थेरानोस की समस्या यह थी कि उसने बहुत दूर तक फर्जीवाड़ा किया था और अपने ऐसे दावों के रूप में, जिन्हें आसानी से झूठा साबित किया जा सकता था, फर्जीवाड़े के कुछ ज्यादा ही निशान छोड़ दिए थे।
एलिजाबेथ होम्स, स्टेनफोर्ट की 19 वर्षीया पूर्व-छात्रा थीं, जिन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी और शिक्षा के लिए अपने परिवार द्वारा दिए गए पैसे को इस काम में लगाया था। उन्होंने, एक टैक-उद्यमी सनी बलवानी के साथ टीम बनायी थी, जिसने नव्बे के दशक के डॉट कॉम बुलबुले के समय पर, सफलता के साथ एक स्टार्ट अप बेचकर, 4 करोड़ डालर बनाए थे। वह, थेरानोस का चीफ ऑपरेटिंग आफीसर (सीओओ) बन गया और एलिजाबेथ होम्स, चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफीसर (सीईओ) बन गयीं। सनी बलवानी पर भी फर्जीवाड़े के लिए अलग से मुकद्दमा चल रहा है।
मीडिया और इसमें मीडिया के वे हिस्से भी शामिल हैं जो इससे विक्षुब्ध हैं कि इस प्रकरण में मुकद्दमे में निवेशकर्ताओं के साथ हुए फर्जीवाड़े को तो ध्यान के केंद्र में रखा गया है, लेकिन उन मरीजों के साथ फर्जीवाड़े पर खास ध्यान नहीं दिया गया है, जिन्हें टैस्ट की गलत रिपोर्टें दी गयी थीं, पूंजीवादी कानून को समझते ही नहीं हैं। पूंजीवादी कानून के केंद्र में होता है, निजी पूंजी की हिफाजत का विचार, न कि लोगों की हिफाजत का विचार। ऐसे में यह सुनिश्चित करना विभिन्न नियमनों का काम होता है कि अपने मुनाफे अधिकतम करने की कोशिश में कंपनियों द्वारा चोट पहुंचाए जाने से, जनता की हिफाजत की जाए। लेकिन, 1990 के दशक से शुरू हुए अति-पूंजीवादी निजाम में, जिसे हम नवउदारवादी निजाम कहते हैं, उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और पूंजीपतियों के हित में, इन नियमनों को लगातार कमजोर किया गया है।
एलिजाबेथ होम्स के खिलाफ फर्जी साक्ष्य देने या निवेशकों से झूठे दावे करने का मामला बनाया गया था। लेकिन, ऐसा लगता है कि अमरीकी कानून की नजर में थेरानोस के टैस्टों का उपयोग करने वालों से झूठ बोला जाना, फर्जीवाड़ा नहीं माना जाएगा या जैसाकि वर्ज पत्रिका में (5 जनवरी 2022 को) एलिजाबेथ लोपाट्टो ने लिखा था, ‘आरोपों के साबित होने के लिए, न्यायकर्ताओं को इसका विश्वास होना जरूरी था कि होम्स की मंशा मरीजों को ठगने की थी, न कि सिर्फ उन्हें गलत नतीजे देने की।’ जान-बूझकर मरीजों को गलत नतीजे देना तो अपराध नहीं है, पर अपने निवेशकर्ताओं को गलत जानकारियां देना जरूर अपराध है!
और अमरीकी नियामकों ने, थेरानोस के एडीसन और मिनीलैब उपकरणों की कोई जांच-पड़ताल क्यों नहीं की? थेरानोस का सितारा जब बुलंदी पर था, यह कंपनी हर साल करीब 9 लाख टैस्ट कर रही थी और इसके बावजूद उसकी लैब या उपकरणों के मामले में, किसी भी तरह के अमरीकी नियमन या कानूनों के परिपालन का, तकाजा नहीं किया गया। इसके पीछे है अमरीकी नियनम कानूनों में छूटा हुआ बहुत बड़ा चोर दरवाजा। अमरीकी नियमन के दायरे में किसी भी लैबोरेटरी में विकसित ऐसे रोग पहचान टैस्ट आते ही नहीं हैं, जिनका किसी एक ही प्रयोगशाला में प्रयोग किया जा रहा हो और जिन्हें उसके लिए ही डिजाइन तथा विनिर्मित किया गया हो। यह सिर्फ थेरानोस के टैस्टों पर ही लागू नहीं होता है, दूसरे अनेक टैस्टों पर भी लागू होता है, खासतौर पर कैंसर के टैस्टों पर, जो इसी तरह के चोर-दरवाजे का इस्तेमाल करते हैं। क्या इस प्रकरण तथा अदालती फैसले से, लैबोरेटरी टैस्ट उद्योग में बदलाव आएगा और थेनारोस द्वारा इस्तेमाल किए गए चोर दरवाजे को बंद किया जाएगा? कम से कम अब तक तो अमरीकी अधिकारियों की ओर से इस पहलू से बायोटैक उद्योग पर नियमन को बढ़ाने की कोई प्रवृत्ति दिखाई नहीं दी है। थेरानोस जैसे प्रकरणों की पुनरावृत्ति के बाद कुछ हो, तो बात दूसरी है।
थेरानोस का काम-काज 2018 से बंद हो गया था और उसकी सीईओ, एलिजाबेथ होम्स अब सजा सुनाए जाने का इंतजार कर रही हैं। कंपनी के शेयर अब रद्दी बन चुके हैं और उसकी प्रौद्योगिकी कूड़ा। होम्स और बलवानी ने जो ताश का महल खड़ा किया था, पूरी तरह से बिखर चुका है। लेकिन, क्या सिलिकॉन वैली का, ‘जब तक चले, फर्जीवाड़ा किए जाओ’ का खेल भी खत्म हो गया है? एलिजाबेथ लोपाट्टो (वर्ज, 5 जनवरी 2022) इस मामले में कहीं संशयशील हैं और यह मानती हैं कि इस अनुभव से सिलिकॉन वैली और ज्यादा सतर्क हो जाएगी, कि अपने निवेशकर्ताओं से झूठ बोलते हुए, रंगे हाथों पकड़े जाने से किसी भी तरह से बचा जाना चाहिए। थेरानोस प्रकरण में अदालत का फैसला यही दिखाता है कि जनता को ठगना तो चलेगा, पर निवेशकों को ठगना गुनाह माना जाएगा।
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