सीटों की कमी और मोटी फीस के कारण मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं छात्र !

यूक्रेन में पढ़ाई करने गए एक मेडिकल छात्र नवीन शेखारप्पा की रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान गोलीबारी में हुई मृत्यु के बाद वहां फंसे भारतीय छात्रों को लेकर चिंता काफी बढ़ गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि कुछ छात्र खुद वहां से लौट आए हैं जबकि करीब 2 हजार से अधिक छात्र सरकार की मदद से अपने देश सुरक्षित आ गए हैं लेकिन बड़ी संख्या में छात्र अभी भी वहां फंसे हुए हैं। उन्हें ऑपरेशन गंगा के तहत भारत लाने का प्रयास जारी है। यूक्रेन में करीब 76,000 विदेशी छात्रों में लगभग18,000 भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने गए हुए थें। यूक्रेन में फिलहाल करीब 14 बड़े मेडिकल कॉलेज हैं।
एमबीबीएस के चौथे वर्ष के छात्र नवीन (21वर्ष) कर्नाटक के हावेरी जिला के रहने वाले थे। मंगलवार 1 मार्च को विदेश मंत्रालय ने उनकी मृत्यु की पुष्टि की थी। खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में नवीन मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जब वह अपने अपार्टमेंट से स्टेशन की तरफ जा रहे थे तभी वह गोलीबारी की चपेट में आ गए जिससे उनकी मौत हो गई।
97% स्कोर करने के बाद भी नवीन को नहीं मिली सीट
नवीन की मृत्यु की दुखद खबर सुनने के बाद उनके पिता ने मीडिया से कहा, "पीयूसी में 97% स्कोर करने के बाद भी मेरे बेटे को राज्य में मेडिकल की सीट नहीं मिल पाई। मेडिकल की एक सीट हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करनी पड़ती है जबकि इसी पढ़ाई के लिए छात्रों को विदेशों में काफी कम पैसे लगते हैं।"
विदेश जाने के दो प्रमुख कारण
विशेषज्ञों की मानें तो विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए जाने की दो मुख्य वजहें हैं। पहली वजह यहां के सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में सीटों की संख्या में कमी और दूसरी वजह प्राइवेट कॉलेजों द्वारा ली जाने वाली महंगी फीस। अमूमन इन दोनों ही कारणों से डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाले छात्र यूक्रेन, किर्गिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं।
Despite scoring 97% in PUC, my son could not secure a medical seat in State. To get a medical seat one has to give crores of rupees&students are getting same education abroad spending less money, says father of Naveen Shekharappa, an Indian student who died in shelling in Ukraine pic.twitter.com/wXqArRW9eq
— ANI (@ANI) March 1, 2022
मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या कम
नवीन की तरह बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन समेत अन्य छोटे-छोटे देशों का रुख करते हैं क्योंकि भारत में मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों की तुलना में मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या काफी कम है। भारत सरकार के मुताबिक देश में सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 88,120 और बीडीएस की 27,498सीटें हैं और इनमें एमबीबीएस की सीटों में करीब पचास प्रतिशत सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं।मेडिकल की तैयारी करने वाले करीब 16.14 लाख छात्रों ने पिछले साल सितंबर महीने में हुए नीट परीक्षा के लिए पंजीकरण कराया था और इस परीक्षा में लगभग 15.44 लाख प्रतिशत अभ्यर्थी शामिल हुए थें। इस परीक्षा में करीब 8.70 लाख अभ्यर्थियों ने क्वालिफाई किया था ऐसे में एमबीबीएस और बीडीएस की सीटों की संख्या महज एक लाख के करीब होने पर उन छात्रों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है जो क्वालिफाई करने के बावजूद इस कोर्स में दाखिला लेने से वंचित रह गए। इस तरह मेडिकल कॉलेजों में सीटों की भारी संख्या में कमी एक बड़ा कारण है जिससे मेडिकल की पढ़ाई करने का सपना देखने वाले छात्रों को विदेशों में जाना पड़ता है। नेशनल मेडिकल कमीशन की वेबसाइट के अनुसार 284 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जबकि 269 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं।
कम खर्च में विदेशों में मेडिकल कोर्स
यूक्रेन जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए जाने का दूसरा बड़ा कारण यह कि जिन छात्रों का यहां के सरकारी कॉलेजों में दाखिला नहीं हो पाता वे कम खर्च में वहां से मेडिकल का कोर्स पूरा कर लेते हैं। भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई करना इतना खर्चीला है कि अभिभावक उस खर्च को वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं। यहां के प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने में जहां करीब 1 करोड़ रूपये के आस पास खर्च आता है वहीं यूक्रेन जैसे अन्य देशों में इसकी पढ़ाई करीब 35-40 लाख रूपये में पूरी हो जाती है। ऐसे में हर अभिभावक के लिए भारत के प्राइवेट कॉलेजों का खर्च वहन करना कठिन हो जाता है।
यूक्रेन में दाख़िला प्रक्रिया आसान
मीडिया रिपोर्ट की माने तो यूक्रेन में मेडिकल की पढाई सस्ती होने के साथ साथ वहां दाखिला लेना काफी आसान है। एक तरफ यूक्रेन में जहां दाखिले के लिए भारत में नीट पास कर चुके छात्रों के लिए वहां के किसी तरह की परीक्षा को पास करने का कोई झंझट नहीं है वहीं दूसरी तरफ नंबर प्रतिशत का भी कोई दबाव नहीं होता है। ऐसे में भारतीय क्षेत्र यूक्रेन जैसे देशों की तरफ रूख करते हैं जहां उन्हें दाखिला आसानी से मिल जाता है और वे डॉक्टर बनकर विदेशों से अपने वतन लौटते हैं।
प्रत्येक वर्ष मेडिकल अभ्यर्थियों की संख्या में हुई वृद्धि
मेडिकल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में वर्ष प्रति वर्ष वृद्धि हो रही है। ऐसे में छात्रों की संंख्या के अनुपात में सीटों की संख्या वृद्धि करना आवश्यक है। वर्ष 2021 में नीट परीक्षा के लिए जहां लगभग 16.14 लाख छात्रों ने पंजीकरण कराया था वहीं वर्ष 2020 में करीब 15.97लाख छात्रों ने इस परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। उधर वर्ष 2019 में इस परीक्षा के लिए लगभग 15.19 लाख छात्रों ने पंजीकरण कराया था जबकि वर्ष 2018 में करीब 13.26 लाख छात्रों ने इस परीक्षा में शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। इस तरह देखा जाए तो पिछले वर्षों में नीट परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या वृद्धि होती रही है।
प्रत्येक वर्ष 20-25 हज़ार छात्र मेडिकल कोर्स करने जाते हैं विदेश
विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने वाले छात्रों को लेकर हालांकि कोई पुष्ट आंकड़ा नहीं है लेकिन ओवरसीज एजुकेशनल कंसल्टेंट के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार करीब 20,000-25,000 हजार छात्र प्रत्येक वर्ष मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विदेशों में जाते हैं।
11.33 लाख छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे
पिछले साल के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार करीब 11.33 लाख छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे थे। भारतीय छात्रों के लिए यूक्रेन ऐसा ग्यारहवां सबसे पंसदीदा देश है जहां पढ़ाई के लिए जाते हैं। भारतीय छात्रों की सबसे अधिक संख्या यूनाइटेड अरब अमीरात में है जहां करीब 2.19 लाख छात्र पढाई कर रहे थें। इसके बाद करीब 2.15 लाख छात्र कनाडा में पढ़ाई करे रहे थें वहीं यूएसए में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2.11 लाख थी।
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