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दिल्ली हिंसा : ’न्यू इंडिया’ के लिए बीजेपी की डरावनी परिकल्पना

कट्टरपंथियों को छोड़कर लगभग सभी लोगों ने इस सदमे और चिंता को गहराई से महसूस किया है। लोग रक्तपात, घरों के जलने, भयभीत बच्चों और मृत बेटे के सामने मां की चीख़ पुकार से घबरा गए हैं।
Delhi Riots

सांप्रदायिक हिंसा का कोई दूसरा उन्माद मास मीडिया द्वारा इस तरह विस्तार से कवर नहीं किया गया है जो कि कुछ दिन पहले ही दिल्ली में हुआ था। भीड़ द्वारा पथराव से लेकर फुटपाथ पर पुलिस का खड़े रहना (या कुछ मामलों में भाजपा के नेतृत्व वाले समूहों की मदद करना) और सशस्त्र गिरोहों द्वारा मस्जिदों और बाज़ारों और घरों में आग लगाकर तबाही मचाना और एक समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा को उजागर करने वाला है। पूरी गंभीरता से हुई इस कवरेज ने दिल्ली के लोगों और देश में अन्य जगहों में गहरी छाप छोड़ी है। कट्टरपंथियों को छोड़कर लगभग सभी लोगों ने इस सदमे और चिंता को गहराई से महसूस किया है। लोग रक्तपात, घरों के जलने, भयभीत बच्चों और मृत बेटे के सामने मां की चीख पुकार से घबरा गए हैं। दिल्ली ने भी ऐसा ही महसूस किया।

लेकिन क्रूरता और अन्याय के प्रति इस सहज प्रतिक्रिया के रूप में, इसके विस्तृत सूचना के बारे में परेशान करने वाले सवाल खड़े हुए। पुलिस या सुरक्षा बल तेजी से आगे क्यों नहीं बढ़े? कौन नेता कहां था? किसने किसको मारा? इसे किसने शुरू किया? और उन सभी में सबसे बड़ा सवाल कि अब आगे क्या?

झूठा नैरेटिव

एक ही जैसी जन मीडिया द्वारा सावधानीपूर्वक गढ़ा गया और सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा मैनेज किए गए नैरेटिव को तैयार किया गया और इसे आगे बढ़ाया गया है। ख़बर थी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 24 फरवरी की रात को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दिल्ली छोड़ने के बाद कई बैठकें कीं। ट्रंप के पास हिंसा में पीड़ित लोगों के लिए सांत्वना का एक शब्द नहीं था जिसमें क़रीब क़रीब 47 लोगों की जानें चली गईं जो 1984 के हत्याकांड की याद दिलाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने "शांति और सौहार्द" के लिए ट्वीटर पर एक अपील की थी। ध्यान दें कि हिंसा के बाद चौथे दिन यानी 26 फरवरी को यह किया गया।

शाह ने अपनी ओर से हिंसा के बारे में बहुत देर के बाद कहा जो वास्तव में 28 फरवरी का मामला है और वह भी ओडिशा में एक रैली को संबोधित करते हुए। उन्होंने यह कहकर पूरी नैरेटिव को बताया कि विपक्षी दल गलत सूचना फैलाकर नए नागरिकता कानून (सीएए) पर सांप्रदायिक हिंसा भड़का रही हैं। यह सच्चाई से बहुत दूर है जिसे हर कोई जानता है। दिल्ली में हिंसा की शुरुआत कांग्रेस या आम आदमी पार्टी (आप) ने नहीं की थी। और किसी भी मामले में, सीएए केवल अनुमानित कारण था। यह बहुत जल्द ही मुस्लिम लोगों और उनके क्षेत्र में संपत्ति पर एक पूर्ण पैमाने पर हमले में तब्दील हो गया जिसके चलते जवाबी हिंसा भी हुई।

लेकिन, शाह ने जो कहा हम उस पर एक नज़र डालते हैं। उसी रैली में उन्होंने यह भी कहा कि सीएए तीन पड़ोसी देशों में सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है न कि "किसी की नागरिकता छीनने" के लिए। दिसंबर में कानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू होने और तब से जारी रहने के बाद चालाकी दिखाना नया नहीं है यही भाजपा की मानक प्रतिक्रिया है। नया कानून मुसलमानों को नागरिकता से वंचित कर देगा क्योंकि दी गई छूट में उन्हें शामिल नहीं किया गया है। उन्हें कठिन से कठिन मार्ग पर चलना होगा।

बीजेपी/आरएसएस का ज़ोर– माहौल में तनाव क़ायम रखना

हालांकि, यह केवल एक चीज़ नहीं है। इन भाजपा/ आरएसएस के कई विचारों की तरह विधायी या प्रशासनिक कार्रवाई धार्मिक आधारों पर विभाजन करने का एक तरीका है। अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और कश्मीर को एक आश्रित केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देना इसमें शामिल था। इसे इस्लामिक आतंकवादियों और दुश्मनों के ख़िलाफ़ एक कार्रवाई के रूप में देश के बाकी हिस्सों में भुनाया गया था, जिससे देश के बाकी हिस्सों के साथ इस राज्य को "एकीकृत" किया गया था। याद रखें, इस समय तक जम्मू-कश्मीर भारत का एकमात्र मुस्लिम बहुमत वाला राज्य था।

सीएए और प्रस्तावित जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जिसके लिए प्रक्रिया शुरू की जानी है इसी तरह के यंत्र हैं। भारत में काफी ज़्यादा अवैध आप्रवासी या घुसपैठिए नहीं हैं। लेकिन असामाजिक तत्वों की धार्मिक आधार पर लोगों के बीच एक देशव्यापी विभाजन करने की एक कोशिश है। नागरिकता की जांच के नाम पर और इसके प्रतिरोध को देखते हुए ऐसे विभाजन बुरे और गहरे हो जाएंगे जो देशद्रोही, विदेशी, दुश्मन आदि कहे जाने वाले लोगों पर किए जा रहे सोशल मीडिया अभियानों की भरमार से पोषित होंगे।

दिल्ली में जो हुआ उसकी छोटी सी झलक। मुसलमानों (देशद्रोही के रूप में परिभाषित किया गया था क्योंकि वे सीएए / एनपीआर / एनआरसी का विरोध कर रहे थे) के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए एक भड़काऊ, ज़हरीला सार्वजनिक चुनाव प्रचार था। यह व्यक्तिगत रूप से खुद अमित शाह द्वारा मैनेज किया गया था। फिर, कुछ हफ्तों के भीतर हिंसा भड़क उठी।

क्या यही 'न्यू इंडिया' है?

इस बात की पूरी संभावना है कि यह किसी न किसी बहाने या किसी दूसरे का इस्तेमाल करके पूरे देश में दोहराया जाएगा। वर्तमान का लक्ष्य पश्चिम बंगाल है जहां विधानसभा चुनावों होने वाले हैं। ओडिशा के बाद शाह ने 1 मार्च को कोलकाता में एक रैली को संबोधित किया जहां इसी तरह के भड़काऊ नारे सुनाई दिए। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर शरणार्थियों (यानी बांग्लादेश से आए हिंदू आप्रवासियों) पर ध्यान न देने और घुसपैठियों (यानी मुस्लिम आप्रवासियों) की रक्षा करने का आरोप लगाया।

शाह सीएए/एनपीआर/एनआरसी की हांडी को उबलते हुए रख रहे हैं क्योंकि ये वह तरीका है जिससे भाजपा/आरएसएस देश को विभाजित और सांप्रदायिक बना सकते हैं। लेकिन दिल्ली ने इस रणनीति के भयावह परिणाम दिखाए हैं। ज़हर और नफ़रत से लोगों को विभाजित करना हिंसा और अराजकता के जिन्न को मुक्त करता है। कई जिंदगियां समाप्त हो गईं, कारोबार नष्ट हो गए, घर जला दिए गए, परिवारों को तहस नहस कर दिया गया और भागने के लिए मजबूर किया गया। भड़काऊ बयानों ने सभी की ज़िंदगियों को तबाह कर दी। और अब यह हर जगह हो सकता है क्योंकि नफरत की राजनीति हर जगह फैलाई जा रही है।

यही वह भविष्य है यदि भाजपा / आरएसएस लगातार लोगों पर हुकूमत करती है और न्यू इंडिया के अपने दृष्टिकोण की ओर बढ़ाती है। यह मध्यकालीन रक्तपात और संघर्ष का भारत होगा न कि समृद्धि और शांति का।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Delhi Violence: The BJP’s Scary Vision for ‘New India’

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