दिल्ली: अब ओखला पर मंडराया बुलडोज़र का ख़तरा, दशकों से रह रहे लोग ख़ौफ़ में

नई दिल्ली: बाटला हाउस के ख़सरा नंबर 277 और 279 पर रहने वाले निवासियों पर अब घर उजड़ने का ख़तरा मंडरा रहा है। 26 मई को उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की ओर से जारी नोटिसों के बाद लोगों में बेचैनी है। इन नोटिसों में सरकारी ज़मीन पर “अवैध निर्माण” का हवाला देते हुए 15 दिनों के भीतर निर्माण हटाने को कहा गया है, और बताया गया है कि 11 जून से बुलडोज़र कार्रवाई शुरू हो जाएगी।
डीडीए की तरफ़ से दक्षिण-पूर्व क्षेत्र के उपनिदेशक (भूमि प्रबंधन) द्वारा जारी नोटिस ख़सरा नंबर 279 से जुड़ा है। इसमें आरोप है कि डीडीए की भूमि पर अतिक्रमण हुआ है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें पीएम-उदय कॉलोनी की सीमा से बाहर बने अवैध ढांचों पर कार्रवाई करने को कहा गया है। नोटिस में तय समयसीमा तक घर खाली करने को कहा गया है, वरना ध्वस्तीकरण होगा।
इसी तरह, उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के आगरा नहर कार्य अनुभाग (ओखला) के ज़िलेदार प्रथम द्वारा ख़सरा नंबर 277 (मुरादी रोड स्थित ख़िजर बाबा कॉलोनी) के लिए नोटिस जारी किया गया है। इसमें ज़मीन को सिंचाई विभाग की संपत्ति बताते हुए अवैध रूप से बने घर और दुकानों को ख़ाली करने का आदेश दिया गया है, और अनुपालन न करने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
इन नोटिसों से इलाके में दहशत फैल गई है। कई परिवारों पर अपने घरों और रोज़ी-रोटी गंवाने का ख़तरा मंडरा रहा है। जैसे-जैसे 11 जून की तारीख़ नज़दीक आ रही है, समुदाय में असमंजस और चिंता गहराती जा रही है।
"यह मेरी इकलौती रोज़ी है..." – मोहम्मद जावेद की पीड़ा
60 वर्षीय मोहम्मद जावेद पिछले 30 वर्षों से ख़सरा नंबर 277 में एक मोटरसाइकिल सर्विस की दुकान चला रहे हैं। उन्होंने कहा: "उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग का नोटिस मिलने के बाद से मैं डर के साए में जी रहा हूं। हमें 15 दिनों में घर और दुकान ख़ाली करने को कहा गया है। मेरी एकमात्र आमदनी इसी बाइक शॉप से है। ये बाटला हाउस का सबसे पुराना बाइक गैरेज है।"
जावेद ने दावा किया कि उन्होंने और तीन अन्य लोगों—मोहम्मद बब्बू, दादा मल्ला और काली जैतून—ने इस ज़मीन पर मालिकाना हक़ को लेकर साकेत कोर्ट में सिंचाई विभाग के ख़िलाफ़ मुक़दमा जीता था। उन्होंने कहा:
"यह ज़मीन ओखला गांव के भीतर आती है और पहले मवेशियों के चारे के लिए इस्तेमाल होती थी। इसके बावजूद विभाग ने हमारे घरों और दुकानों पर नोटिस चिपका दिया है, लाल क्रॉस का निशान बना दिया है। 11 जून से बुलडोज़र चलाने की बात है लेकिन कब आएंगे, क्या तोड़ेंगे—कोई नहीं जानता। हम डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं।"
"ईद के मौक़े पर हमारा घर तोड़ने आ रहे हैं..." – मोहम्मद शमी
मुरादी रोड के ही रहने वाले 35 वर्षीय प्लंबर मोहम्मद शमी ने कहा:
"मैं यहीं पैदा हुआ, मेरे पिता ने ये फ्लैट मेरे जन्म से पहले खरीदा था। ये मेरे जीवन की सबसे बुरी ख़बर है—सरकार हमारा घर तोड़ने वाली है। मेरे दो छोटे बच्चे हैं। बकरा ईद के ठीक पहले मैं अपने परिवार को कहां ले जाऊं? हमें सिर्फ़ इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि हम मुसलमान हैं।"
उन्होंने बताया कि कॉलोनी के बुज़ुर्गों ने अगले दिन संकट पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई और सबके आधार कार्ड, ज़मीन के काग़ज़ और अन्य दस्तावेज़ इकट्ठा कर एक वकील को दिया ताकि अदालत में रोक लगवाई जा सके।
"मेरा घर उस ख़सरे में नहीं, फिर भी नोटिस चिपका दिया..." – बुज़ुर्ग की आपबीती
75 वर्षीय बहार आलम शम्सी, जो मुरादी रोड पर ख़सरा नंबर 284 में रहते हैं, ने कहा:
"मेरा घर 279 में नहीं आता, फिर भी हमारी इमारत पर बेदखली और ध्वस्तीकरण का नोटिस चिपका दिया गया है। दीवारों पर लाल क्रॉस बना दिया गया है। अब रात को ठीक से नींद नहीं आती। पता नहीं मेरा घर भी तोड़ दिया जाएगा या नहीं।"
उन्होंने बताया कि स्थानीय विधायक और पार्षद नाज़िया दानिश से संपर्क किया गया है लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
"अब विरोध करने का वक़्त नहीं, जो भी करना है, कानूनी रास्ते से ही करना होगा," उन्होंने जोड़ा।
"70 साल से वोटर हैं, फिर अवैध कैसे?" – ऐमन रिज़वी का सवाल
जामिया नगर की सामाजिक कार्यकर्ता ऐमन रिज़वी ने सरकारी दावों को “बेबुनियाद” बताया और कहा:
"अगर ख़सरा नंबर 277 की ज़मीन वाकई उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की है, तो फिर यहां रहने वाले लोग 70 साल से ओखला विधानसभा के वोटर कैसे हैं? दिल्ली सरकार ने उन्हें बिजली, पानी, सीवर जैसी सभी सुविधाएं कैसे दीं?"
उन्होंने कहा कि इस नोटिस से 3600 से अधिक फ्लैटों पर ख़तरा मंडरा रहा है, जबकि लोग दशकों से यहां रह रहे हैं। उन्होंने सरकार की मंशा और दावों की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए।
दिल्ली हाईकोर्ट से पहली राहत
पिछले शुक्रवार दिल्ली हाईकोर्ट ने ख़िजर बाबा कॉलोनी, जामिया नगर में स्थित 115 संपत्तियों को तोड़ने की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश दिया। यह आदेश उन निवासियों की याचिका पर आया जिन्होंने 22 मई को जारी नोटिसों को "अन्यायपूर्ण और गैरक़ानूनी" बताया था।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने याचिकाकर्ताओं के वकील फर्रुख़ ख़ान की दलीलें सुनकर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग को नोटिस भेजा और जवाब मांगा। अब अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि मुरादी रोड स्थित ख़सरा नंबर 277 पर बनी संपत्तियाँ वर्षों से रहन-सहन और व्यापार के लिए उपयोग में हैं, और विभाग का इस ज़मीन पर कोई वैध दावा नहीं है। उन्होंने अदालत से निवेदन किया कि जब तक मामला अदालत में है, निवासियों पर घर खाली करने या ढांचे गिराने का दबाव न बनाया जाए।
याचिका में यह भी बताया गया कि 1991 में राज्य सरकार ने यह ज़मीन लेने के लिए मुआवज़े की मांग के साथ मुक़दमा दायर किया था, जिसे 2005 में सिविल कोर्ट ने दस्तावेज़ों की कमी के कारण खारिज कर दिया। 2011 में ज़िला न्यायालय और 2013 में हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। उसके बाद 12 वर्षों तक सरकार ने कोई कानूनी अपील नहीं की, जिससे यह फ़ैसला अंतिम माना जाता है।
हालांकि ख़सरा 277 के निवासियों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन अन्य इलाक़ों में रहने वाले लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें भी ऐसी राहत मिले।
अब सुप्रीम कोर्ट से उम्मीदें
बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाटला हाउस, मुरादी रोड, जामिया नगर में स्थित संपत्तियों को तोड़ने के नोटिसों को चुनौती देने वाली याचिका अगले सप्ताह सुनने पर सहमति दी। यह याचिका 40 लोगों ने दायर की है जो अपने को वैध निवासी और मालिक बताते हैं। अधिवक्ता अदील ख़ान ने मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई के समक्ष याचिका प्रस्तुत की।
अदालत में ख़ान ने कहा कि नोटिस सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्देशों का उल्लंघन करते हैं, जिसमें ध्वस्तीकरण से पहले 15 दिन का नोटिस और उचित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य बताया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि विभागों ने बिना कानूनी आधार और प्रक्रिया के मनमानी से नोटिस जारी किए।
शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश ने दिल्ली हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया, लेकिन अधिवक्ता ने तात्कालिक सुनवाई की ज़रूरत जताई और अदालत ने मामला अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने की अनुमति दी।
याचिकाकर्ताओं में से कई सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी, सरकारी कर्मचारी, महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग हैं, जो 1980 के दशक से यहां रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक स्थायी समुदाय है जिसमें स्कूल, क्लीनिक, दुकानें और सामाजिक ढांचा भी मौजूद है।
रेज़िडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने उप-मंडल मजिस्ट्रेट (दक्षिण-पूर्व ज़िला) को कॉलोनी की सीमा-रेखा में गड़बड़ी को लेकर पत्र लिखा है, और अन्यायपूर्ण ध्वस्तीकरण रोकने की अपील की है।
याचिका में कहा गया है कि डीडीए और अन्य एजेंसियों द्वारा की जा रही कार्रवाई का कोई कानूनी आधार नहीं है, खासकर उन लोगों के ख़िलाफ़ जिनके पास दस्तावेज़ हैं या जिनकी कॉलोनियाँ पीएम-उदय योजना के तहत अनंतिम रूप से नियमित की जा चुकी हैं। उन्होंने न्यायालय से नरम, न्यायोचित और मानवीय रवैया अपनाने की अपील की है।
अब जब 11 जून की तारीख़ नज़दीक आ रही है, ओखला के निवासियों में डर और बेचैनी फैलती जा रही है। सभी को उम्मीद है कि कोई रास्ता निकले और उन्हें वह इलाका न छोड़ना पड़े जिसे वे दशकों से अपना घर कहते हैं।
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के ए.जे.के. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर (AJK MCRC) में कन्वर्जेंट जर्नलिज़्म में एम.ए. के छात्र हैं।)
मूल अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें–
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