डीयू : एडहॉक टीचरों को हटाने के ख़िलाफ़ हड़ताल, वीसी दफ़्तर का घेराव

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के शिक्षकों ने स्थायी पदों पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में जारी परिपत्र के विरोध में बुधवार को कुलपति कार्यालय का घेराव किया।
वाइसरीगल लॉज इस्टेट में डीयू कुलपति का कार्यालय है। दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यापक संघ (डूटा) के नेतृत्व में शिक्षकों का हुजूम आर्ट्स फ़ैकल्टी से शुरू होकर साइंस फ़ैकल्टी से होता हुआ वीसी कार्यालय पहुँचा जहाँ शिक्षकों ने काफ़ी देर तक प्रशासन के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की।
आपको बता दें कि ये पूरा मामला दिल्ली विश्वविद्यालय के हजारों एडहॉक शिक्षकों से जुड़ा है। इन सभी एडहॉक का वेतन रोक दिया गया है और अब इन्हें नौकरी से हटाया जा रहा है।
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शिक्षकों को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजीव रे ने कहा कि हज़ारों एडहॉक शिक्षकों को नौकरी से बेदख़ल करना अमानवीय है और शिक्षक इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए रे ने कहा, “इस पूरी परिस्थिति का ज़िम्मेदार विश्वविद्यालय प्रशासन है। शिक्षक संघ की साथ हुई कई बैठकों के बाद भी वीसी अपनी मनमानी पर अड़े हुए है। ऐसी परिस्थिति में जब तक प्रशासन अब्ज़ॉर्प्शन यानी शिक्षकों को बहाल नहीं करते, यह हड़ताल ऐसे ही जारी रहेगी।”
दरअसल, शिक्षकों के इस ग़ुस्से के पीछे कई कारण रहे है। धरना देने वाली शिक्षकों में सिमरप्रीत भी है जो दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री गुरु गोबिंद कॉलेज ऑफ़ कामर्स में पढ़ाती है। वे बताती हैं, “ प्रशासन ने एक झटके में हज़ारों शिक्षकों को नौकरी से बाहर निकल दिया। ये शिक्षक कई सालों से कॉलेजों को अपनी सेवाएँ देते रहे है। इनकी सेवा शर्तें इतनी ख़राब हैं कि किसी को सामाजिक सुरक्षा नसीब नहीं है। महिला शिक्षकों को डिलीवरी के एक हफ़्ते के बाद ही नौकरी जॉइन करनी पड़ती है। फिर भी शिक्षक काम करते रहे। ऐसे में हमारी जीविका पर ख़ासा असर पड़ेगा। किसी को घर की ईएमआई देनी है तो किसी को बच्चों की फ़ीस देनी है। ऐसी परिस्थिति में बिना बहाली के आदेश के हम वापस नहीं जाएँगे।"
दयाल सिंह कॉलेज के शिक्षक राजीव कुँवर बताते है कि वर्तमान परिस्थिति की जड़ें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निहित हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति हर कॉलेज को स्वायत्त बनाने की वकालत करती है। साथ ही, कॉलेजों को अपने संसाधन अब ख़ुद जुटाने होंगे। ऐसी परिस्थिति में यह स्वाभाविक है कि बच्चों को अब काफ़ी ज़्यादा फ़ीस देनी होगी। यह ऐसा ही है जिसके पास पैसा है वो शिक्षा ख़रीद पाएगा जिसके पास नहीं है वो अशिक्षित ही रहेंगे। यह मौजूदा संविधान के प्रावधानों के ख़िलाफ़ है।”
शिक्षकों के बीच व्याप्त रोष की दूसरी वजह आरक्षण से जुड़ी हुई है। दरअसल, गेस्ट टीचरो की नियुक्ति में किसी भी आरक्षण संबंधी नियमों का कोई पालन नहीं होता। दौलतराम कॉलेज की शिक्षिका रितु बताती हैं कि नई व्यवस्था से दलित और आदिवासी विश्वविद्यालयों से बाहर हो जाएँगे। उन्होंने कहा,”आरक्षण पर पहला हमला 13 सूत्री रोस्टर के रूप में हुआ। बड़े विरोध के बाद हम पुरानी व्यवस्था पर लौटे। नई व्यवस्था संविधान द्वारा दी गयी सुरक्षा को ख़त्म कर देगी। आप इस बात से समझिए कि निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू नहीं होता। अब ये यही व्यवस्था विश्वविद्यालयों पर थोपना चाहते हैं।”
ख़बर लिखे जाने तक शिक्षकों और प्रशासन का गतिरोध जारी है और हड़ताली शिक्षक वीसी लॉज में जमे हुए हैं।
आपको बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यापक संघ (डूटा) ने हड़ताल पर जाने का फैसला डीयू के 28 अगस्त को जारी परिपत्र के आधार पर किया, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा शैक्षाणिक सत्र में स्थायी नियुक्तियों के पद पर केवल अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जा सकती है। शिक्षक परिपत्र को वापस लिए जाने और एडहॉक यानी तदर्थ शिक्षकों को शामिल करने के लिए नियमन की मांग कर रहे हैं ।
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