भारत में भ्रष्टाचार 'चीन से ज़्यादा, पाकिस्तान से कम'

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने दुनिया भर के 180 देशों में सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की अवधारणा से जुड़ी साल 2020 की सूची जारी की है। यह सूची बताती है कि जिन देशों में भ्रष्टाचार ज्यादा है वे कोरोना वायरस महामारी की चुनौती से निपटने में कम सक्षम रहे हैं। इस साल संगठन ने मापदंडों में कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर खासा ज़ोर दिया है।
आपको बता दें कि इस सूची के मुताबिक 100 अंक वाले देश को लगभग भ्रष्टाचार मुक्त माना जाता है और ज़ीरो का मतलब है कि तक़रीबन भ्रष्ट। इस सूची में भारत 40 अंकों के साथ 180 देशों में 86वें स्थान पर है। बीते साल भारत 80वें स्थान पर था। रिपोर्ट के अनुसार भारत अब भी भ्रष्टाचार सूचकांक में काफी पीछे है।
क्या है इस रिपोर्ट में?
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो भ्रष्टाचार खत्म करने का मकसद लेकर 100 से अधिक देशों में काम कर रही है। संस्था ने 2020 के लिए भ्रष्टाचार सूचकांक बृहस्पतिवार, 28 जनवरी को जारी किया। संगठन ने 180 देशों का सर्वेक्षण किया, जिसमें से दो तिहाई देशों ने 100 में से 50 से कम अंक हासिल किए तो वहीं औसतन अंक 43 रहा। रिपोर्ट में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए निगरानी संस्थानों को मजबूत करना जरूरी बताया गया है। साथ ही सरकार की ओर से खरीद प्रक्रिया को बेहद पारदर्शी बनाने पर भी जोर दिया गया है।
इस रिपोर्ट के माध्यम से संगठन ने निष्कर्ष निकाला कि जिन देशों ने स्वास्थ्य देखभाल में अधिक निवेश किया वे सार्वभौमिक स्वास्थ्य तक पहुंच मुहैया कराने में सक्षम रहे और वहां लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन करने की संभावना कम है। सूचकांक में शीर्ष पर रहने वाले देश स्वच्छ और भ्रष्ट्राचार मुक्त हैं तो वहीं, निचले पायदान वाले देशों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पाया गया।
न्यूजीलैंड और डेनमार्क सबसे बेहतर देश
बर्लिन स्थित संगठन के मुताबिक कोरोना वायरस को लेकर प्रतिक्रिया और भ्रष्टाचार के बीच रिश्ता दुनियाभर में व्यापक रूप में देखा सकता है। इस सूचकांक में 100 में से 88 अंक हासिल कर न्यूजीलैंड पहले पायदान पर है। न्यूजीलैंड की कोरोना महामारी से निपटने को लेकर संगठन ने तारीफ भी की है और कहा है कि वहां और बेहतरी की गुंजाइश है। 88 अंकों के साथ डेनमार्क भी शीर्ष पायदान पर न्यूजीलैंड के साथ है।
शीर्ष दस देशों में शामिल फिनलैंड, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड और स्वीडन ने 85 अंक हासिल किए जबकि नॉर्वे को 84, नीदरलैंड्स 82, जर्मनी और लक्जेमबर्ग 80 अंक मिले हैं। तो वहीं सोमालिया और दक्षिण सूडान 12 अंकों के साथ सबसे नीचे 179वें स्थान पर रहे।
ट्रंप शासन में बढ़ा भ्रष्टाचार!
इस साल के सूचकांक के मुताबिक डॉनल्ड ट्रंप के शासन में अमेरिका की रैंकिंग गिरी है। नई गिरावट के साथ अमेरिका 67वें पायदान पर है। इसके उलट 71 अंक हासिल करने वाले उरुग्वे को दक्षिण अमेरिका में कम भ्रष्ट देश माना गया है। उरुग्वे ने स्वास्थ्य देखभाल में भारी निवेश किया है। इसी वजह से वह कोरोना वायरस को लेकर तेज प्रतिक्रिया देने में सक्षम रहा।
चीन की स्थिति भारत से बेहतर, बांग्लादेश बदहाल
एशियाई देशों की बात की जाए तो इस रैंकिंग में चीन की स्थिति भारत से बेहतर है। चीन 78वें स्थान पर है जबकि पाकिस्तान 124वें और नेपाल 117वें स्थान पर है। तो वहीं स्वास्थ्य देखभाल में बहुत कम निवेश के कारण 26 अंक पाने वाले बांग्लादेश की स्थिति बेहद खराब है। बांग्लादेश फिलहाल क्लीनिकों में इस तरह की रिश्वतखोरी, दवाई की खरीद में भ्रष्टाचार की समस्याओं का सामना कर रहा है।
ट्रांसपेरेंसी ने सुझाव दिया है कि भ्रष्टाचार से मुकाबला करने और स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिए पारदर्शिता के साथ निरीक्षण संस्थानों को मजबूत किया जाना चाहिए। साथ ही खुला और पारदर्शी करार सुनिश्चित किया जाना चाहिए और सूचना तक पहुंच की गारंटी भी देनी चाहिए।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की चेयरपर्सन डेलिया फरेरिया रूबियो ने कहा, "कोविड-19 केवल एक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट नहीं है। यह एक भ्रष्टाचार संकट है, जिसे हम मौजूदा समय में संभालने में विफल हो रहे हैं।"
मालूम हो कि भ्रष्टाचार सूची सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर विशेषज्ञों की राय के आधार पर बनाई जाती है। विभिन्न देशों के स्कोर वहां की सूचनाओं और जनसेवा में जुड़े लोगों के व्यवहार पर नियंत्रण रखने वाले नियमों तक पहुंच से बनते बिगड़ते हैं, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र में जवाबदेही की कमी और सार्वजनिक संस्थानों में कार्यकुशलता की कमी इस स्कोर को प्रभावित करती है।
'ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर- एशिया' रिपोर्ट में भारत की स्थिति चिंताजनक
गौरतलब है कि बीजेपी ने भ्रष्टाचार को 'राष्ट्रीय संकट' बताते हुए वादा किया था कि इसे जन चेतना के माध्यम से बनाए गए एक सिस्टम के तहत जड़ से मिटाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान में ‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा' का नारा दिया था। कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार उनका सबसे अहम मुद्दा था। हालांकि अब तमाम दावों और वादों के बीच सत्ता पर काबिज़ मोदी सरकार में भी भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है।
बीते साल जून-सितंबर के बीच ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एशिया के 17 देशों में 20,000 लोगों के बीच भ्रष्टाचार और घूसखोरी को लेकर एक सर्वे किया था। जिसकी रिपोर्ट 25 नवंबर को जारी हुई थी। सर्वे में भारत को घूसख़ोरी के मामले में एशिया में टॉप पर बताया गया था।
इस रिपोर्ट के मुताबिक औसतन 100 लोगों में से 39 ने भारत में घूसख़ोरी की बात मानी थी। घूस देने की बात स्वीकार करने वालों में से आधे लोगों का कहना था कि उन्होंने घूस इसलिए दी, क्योंकि उनसे मांगी गई थी।
रिपोर्ट में देश के ज्यादातर लोगों का मानना था कि पुलिस और स्थानीय अफसर रिश्वत लेने के मामले में सबसे आगे है। इसके बाद सांसद, जज और मजिस्ट्रेट को भी लोगों ने भ्रष्ट बताया था। भ्रष्टाचार को लेकर ज्यादातर भारतीयों की आम राय थी कि बीते एक वर्ष में ये बढ़ा है।
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