लॉकडाउन में मानसिक अवसाद के बढ़ते मामले और हमारी चिंताएं

उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती जिले के रहने वाले बाबूराम कई सालों से दिल्ली में एक फैक्टरी श्रमिक हैं। लॉकडाउन के चलते फैक्टरी बन्द है। ट्रेन, बसें भी बन्द हो जाने से वे अपने गांव भी न लौट सके। उनके बाकी साथी पैदल ही निकल पड़े थे अपने-अपने घर, लेकिन दिल्ली से उनके गांव की दूरी ज्यादा होने के कारण और हजारों की भीड़ देखकर बाबूराम ने परिवार के पास जाने का इरादा भी छोड़ दिया और दिल्ली स्थित अपने छोटे से किराए के कमरे में ही सुरक्षित रहना उचित समझा। बाबूराम के साथ उनके दो और साथी भी हैं जो अत्यधिक दूरी होने के कारण अपने गांव न लौट सके।
बेबी, जो कि बाबूराम की बहन है और हमारी घरेलू सहायिका है, से जब उसका हाल समाचार जानने के लिए फोन किया तो बड़ी परेशानी में लगी। उसने बताया कि उसका भाई बाबूराम मानसिक रूप से काफी परेशान चल रहा है। लॉकडाउन के शरुआती दिनों तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं उसके भाई की मानसिक परेशानी भी बढ़ रही है। बेबी ने बताया कि अब उसके भाई को लगता है कि हालात सुधरने के बाद भी उसकी जमी जमाई नौकरी चली जाएगी फिर शायद ही उसे कहीं दूसरी जगह भी नौकरी मिले।
ग्रेटर नोएडा के रहने वाले शिव चौहान का भी इन दिनों यही हाल है। एमटेक करने के बाद जल्दी ही उन्हें गुरुग्राम स्थित एक बड़ी कम्पनी में अच्छे पैकेज के साथ जॉब भी मिली। घर से ऑफिस की अधिक दूरी होने के कारण शिव गुरुग्राम में ही रूम लेकर रहने लगे। अभी जॉब मिले कुछ ही महीने हुए थे कि करोना के कहर के चलते लॉकडाउन लागू हो गया। चूंकि अब ऑफिस नहीं जाना था और सबको वर्क फ्रॉम होम के लिए कह दिया गया था तो ऐसी सूरत में शिव वापस ग्रेटर नोएडा अपने परिवार के पास आ गए। अब शिव घर से ही काम करते हैं लेकिन हालात को देखते हुए धीरे धीरे उसके मन में भी अपनी नौकरी और भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं। कभी नौकरी खोने का डर तो कभी सैलरी में कटौती की चिंता, उन्हें मानसिक अवसाद की ओर ले जा रही है। पर शिव के मामले में एक अच्छी बात यह है कि ऐसी दुश्चिंताओं के बीच शिव का परिवार उनके साथ है जो उनकी ताकत बने हुए हैं।
इसमें दो राय नहीं कि पूरे देश में जो हालात पैदा हो गए हैं उसने हर उम्र के लोगों के बीच मानसिक तनाव पैदा कर दिया है।
इस संबंध में जब हमने इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी (आईपीएस) के अध्यक्ष डॉ. पीके दलाल से बात की तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के चलते लोग गहरी दुश्चिंताओं से घिर रहे हैं और यही दुश्चिंताएं लोगों को डिप्रेशन का शिकार बना सकती हैं।
डॉ. दलाल के मुताबिक उनकी संस्था आईपीएस के द्वारा पूरे देश में ऑनलाइन सर्वे किया जा रहा है जिसका मकसद यह जानना है कि कोविड-19 और लॉकडाउन के माहौल में लोग किस मानसिक अवस्था से गुजर रहे हैं। इस सर्वे से लगातार लोग जुड़ रहे हैं और अपनी परेशानी, चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं।
डॉ. दलाल ने बताया कि इस समय जो हमारे पास फोन कॉल्स आ रहे हैं उनमें कुछ ऐसे लोग हैं जो हमारे पुराने मरीज हैं और इस माहौल के चलते और ज्यादा अवसादग्रस्त महसूस कर रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे नये मामले भी आ रहे हैं जो इस माहौल की वजह से गहरी चिंता का शिकार हो रहे हैं। उनके मुताबिक सोसायटी से जुड़े 600 से ज्यादा मनोचिकित्सकों की टीम सर्वे कर रही है। यह सर्वे सब जनमानस के लिए है। ऑनलाइकन जो फॉर्म उपलब्ध है उसमें हर किसी से उनके खाने, सोने, उठने यानी दिनचर्या के विषय में जानकारी दर्ज होती है ताकि हम ये तथ्य जान सके की इस माहौल का किस हद तक लोगों के दिमाग पर असर पड़ रहा है।
डॉ. दलाल के मुताबिक लोगों की चिंताओं के कई कारण हैं, जैसे नौकरी जाने का डर, बचत कमाई खोने का डर, बिजनेस डूब जाने का डर, इस बीमारी के चलते अपनों को खोने का डर, करोना से पीड़ित हो जाने का डर आदि और यही डर। इसके अलावा चौबीस घंटे घर में कैद हो जाने और वर्षों के नियमित दिनचर्या टूट जाने के वजह से भी लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं ।
हाल ही में भारतीय क्रिकेट टीम के कोचिंग स्टाफ का हिस्सा रह चुके पैडी अपटन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि यदि इस बीमारी के चलते आईपीएल नहीं होता है तो निश्चित ही भारत के कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी एंजाइटी और डिप्रेशन का शिकार हो जाएंगे क्यूंकि उनके सामने प्रोफेशनली और फाईनेंशली कई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। अपटन भारतीय क्रिकेट टीम के मेंटल कंडीशनिंग कोच रह चुके हैं।
मनोचिकित्सकों के मुताबिक इस समय ऐसे केस भी मानसिक अवसाद के देखे जा रहे हैं जहां कोई इसलिए डिप्रेशन महसूस कर रहा है क्यूंकि उसका कोई अपना इस महामारी के बीच रात दिन डयूटी पर तैनात है जैसे डॉक्टर, नर्स, अन्य मेडिकल स्टाफ, पुलिस, आदि।
यह डिसऑर्डर मेंटल हेल्थ से जुड़ी वह समस्या है जो किसी ऐसी भयानक घटना से उत्पन्न होती है जिसे व्यक्ति ने खुद अनुभव किया हो। इससे पहले भी देश दुनिया में सार्स वायरस के फैलने पर यही स्थिति देखी गई थी। क्वारन्टीन में रहने के कारण भी लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
मानसिक अवसादग्रस्त स्थिति से निपटने के लिए अब हमारे सामने ऐसे उदाहरण भी है जहां यह कोशिश जारी है कि इस हालात में लोग डिप्रेशन का शिकार न हो। हाल ही में छिंदवाड़ा के ग्रामीण आदिवासी समाज विकास संस्थान, सौंसर ने जिले के नागरिकों के लिए मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन शुरू की है तो वहीं यूपी सरकार ने भी इस ओर कदम बढ़ाते हुए साईको सोशल काउंसिलिंग कराने की योजना बनाई है। जिसमें लगभग सौ काउंसलर्स को लगाया गया है।
करोना ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया है। इस विपदा के बाद जो एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि करोना से निपटने के बाद एक बड़ी जनसंख्या डिप्रेशन से कैसे बाहर निकलेगी? भारत जैसे देश में, जहां मानसिक स्वास्थ्य के मामले में हालात पहले से ही खराब हैं, वहां तो इस सवाल से निपटना और चुनौतीपूर्ण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त देश है उसके बाद अमेरिका और चीन का नंबर आता है। हमारे देश में हर पांचवा व्यक्ति किसी न किसी तरह से मानसिक परेशानी से जूझ रहा है। ऐसे में इस समय और इजाफा निश्चित ही चिंता का विषय है और ऐसे में तो यह चिंता और बढ़ जाती है जब डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट यह बताती है कि इतनी बड़ी आबादी के बीमार होने के बावजूद लगभग एक लाख लोगों पर मात्र एक मनोचिकित्सक है।
हम जानते हैं कि वक्त मुश्किलों भरा है, चुनौतीपूर्ण हालात हैं, बहुत कुछ अनिश्चित सा हो चला है पर बावजूद इसके हम सबको जितना हो सके खुद को मेंटली फिट रखना होगा ताकि हम एक स्वस्थ दिमाग के साथ नकरात्मक परिस्थितियों का मुकाबला कर सकें साथ ही अपने नागरिकों को मानसिक अवसाद में जाने से रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को भी सुचारू और कारगर उपायों की ओर बढ़ना होगा।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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