कार्टून क्लिक: नफ़रती बोल से बेहतर है चुप रहना
असल लड़ाई आज भी सिर्फ़ दो भाषाओं में है, एक है— नफ़रत की भाषा और दूसरी है— प्यार की भाषा। अब यह आप पर है कि आप किसी भाषा का कैसा इस्तेमाल करते हैं।

हमारे देश में बोली-भाषा बहुत हैं और किसी में टकराव नहीं, जब तक सियासत उसे हवा न दे। असल लड़ाई आज भी सिर्फ़ दो भाषाओं में है। एक है— नफ़रत की भाषा और दूसरी है— प्यार की भाषा। दरअसल यह भाषा भी नहीं एक सोच है। अब यह आप पर है कि किसी भाषा का आप कैसा इस्तेमाल करते हैं।
शायर जावेद अख़्तर ने इसी बात को कुछ इस तरह कहा है—
एक हमारी और एक उनकी
मुल्क में हैं आवाज़ें दो
अब तुम पर है कौन सी तुम
आवाज़ सुनों तुम क्या मानो
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