क्या बच्चों को सुरक्षित किए बगैर कोरोना से जंग जीती जा सकती है?

दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण 2020 के अंत तक कम और मध्यम आय वाले देशों में गरीब घरों में रहने वाले बच्चों की संख्या 8.6 करोड़ तक बढ़ सकती है। यूनिसेफ और मानवतावादी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी 2020 के अंत तक 8.6 करोड़ और बच्चों को पारिवारिक गरीबी में धकेल सकती है।
विश्लेषण में कहा गया है कि यदि महामारी के कारण होने वाली वित्तीय कठिनाइयों से परिवारों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो कम और मध्यम आय वाले देशों में राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों की कुल संख्या वर्ष के अंत तक 67.2 करोड़ तक पहुंच सकती है।
विश्लेषण में कहा गया है कि इनमें से लगभग दो-तिहाई बच्चे उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में रहते हैं। सबसे अधिक 44 प्रतिशत वृद्धि यूरोप और मध्य एशिया के देशों में देखी जा सकती है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में 22 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा सकती है।
यही नहीं इससे पहले यूनिसेफ ने चेतावनी दी थी कि दुनिया भर में फैली कोरोना वायरस महामारी के चलते लाखों बच्चे खसरा, डिप्थीरिया और पोलियो जैसे जीवन रक्षक टीके से वंचित रह जाने के जोखिम का सामना कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने कहा है कि कोविड-19 महामारी से पहले हर साल खसरा, पोलियो और अन्य टीके एक साल से कम आयु के लगभग दो करोड़ बच्चे की पहुंच से दूर थे। यूनिसेफ ने मौजूदा हालात को लेकर चेतावनी दी है कि यह 2020 में और इसके आगे भी भयावह स्थिति पैदा कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने शनिवार को कहा कि 2018 में 1.3 करोड़ बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गये थे।
विश्व टीकाकरण सप्ताह के 2020 सत्र की शुरुआत पर अपनी अपील में यूनिसेफ ने कहा है कि कोविड-19 को फैलने से रोकने में विश्व के जुटे होने के चलते टीकाकरण सेवाओं के बाधित होने के चलते लाखों बच्चे खसरा, डिप्थीरिया और पोलियो के जीवन रक्षक टीकों से वंचित रह सकते हैं।
यूनिसेफ के प्रधान सलाहकार एवं टीकाकरण प्रमुख रॉबिन नंदी ने कहा, ‘...टीकाकरण के साथ बच्चों के लिये हमारा जीवन रक्षक कार्य ज़रूरी है।’ यूनिसेफ का आकलन है कि वर्ष 2010 से 2018 के बीच खसरे की पहली खुराक से 18.2 करोड़ बच्चे वंचित रह गये।
इससे पहले भी इसी महीने यूनिसेफ़ ने चेतावनी दी थी कि पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से भारत में अगले छह महीनों में पांच साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है।
यूनिसेफ के अनुसार आने वाले समय में पूरे दक्षिण एशिया में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का आंकड़ा लगभग चार लाख 40 हज़ार तक पहुंच सकता है। इनमें सबसे ज़्यादा मौतें भारत में ही होने की संभावना है।
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यूनिसेफ का ये अनुमान जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के एक विश्लेषण पर आधारित है। यह विश्लेषण हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसके अनुसार पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से भारत में अगले छह महीनों में पांच साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है। बाल मृत्यु का ये आँकड़ा उन मौतों से अलग होगा जो कोविड-19 के कारण हो रही हैं।
इस विश्लेषण के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण परिवार नियोजन, प्रसव, प्रसव से पहले और प्रसव के बाद की देखभाल, टीकाकरण और उपचारात्मक सेवाओं में रुकावट आ रही है। पोषण में कमी और जन्मजात सेप्सिस व निमोनिया के उपचार में कमी भविष्य में सबसे ज़्यादा बाल मृत्यु का कारण हो सकते हैं।
इन सबसे बचने के लिए यूनिसेफ और सेव द चिल्ड्रेन ने सभी सरकारों से अनुरोध किया है कि वे अपनी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का विस्तार करें। स्कूलों में बच्चों को खाना उपलब्ध करवाने में तेजी लाएं, जिससे महामारी के असर को कम किया जा सके।
यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिटा फोर ने कहा है कोरोना की वजह से परिवारों पर बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट आएगा। इससे बच्चों में गरीबी कम करने में अब तक हुई प्रगति कई साल पीछे हो जाएगी। बच्चे जरूरी सेवाओं से वंचित हो जाएंगे।
हालांकि सेव द चिल्ड्रेन के प्रमुख इंगर एशिंग के मुताबिक तत्काल और निर्णायक कदम उठाकर गरीब देशों पर पड़ने वाले महामारी के असर को रोका जा सकता है। इससे महामारी से सबसे अधिक प्रभावित बच्चों को भी बचाया जा सकेगा। इन बच्चों पर कम समय में भी भूख और कुपोषण का ज्यादा असर हो सकता है। इससे उनके पूरे जीवन पर असर पड़ने का खतरा है।
हालांकि दूसरी ओर भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को देखकर लगता है कि वह इन चेतावनियों से बेखबर हैं।
बच्चों के स्वास्थ्य पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार जैन लिखते हैं, '13 मई 2020 से पांच दिन तक देश की वित्तमंत्री ने 20.97 लाख करोड़ रुपये का आत्मनिर्भर पैकेज जारी करती रहीं, पर उन्होंने एक रुपये का भी आवंटन कुपोषण और मातृत्व हक के लिए नहीं किया। ऐसे में क्या सरकार बच्चों और महिलाओं को भूखे-कमज़ोर रखकर भारत को आत्मनिर्भर बना सकती है?'
फिलहाल बच्चे कोरोना महामारी की चपेट में सबसे ज्यादा है। एक तरफ उनके बीमार होने का खतरा ज्यादा है तो दूसरी तरफ इससे उनका टीकाकरण प्रभावित हो रहा है। साथ में उनके भुखमरी के चपेट में आने की संभावना ज्यादा है। ऐसे में यह तय है कि सरकारों को तत्काल कदम उठाकर बच्चों की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करना होगा। अन्यथा बच्चों के बगैर कोरोना महामारी से चल रही जंग में हम कमजोर ही बने रहेंगे।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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