ग़ज़ा के हालात पर भारत के पूर्व नौकरशाहों का प्रधानमंत्री, गृह मंत्री को खुला पत्र

केंद्र और राज्यों में सेवाएं दे चुके सेवानिवृत्त वरिष्ठ नौकरशाहों के संगठन कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (Constitutional Conduct Group) ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री को पत्र लिखकर ग़ज़ा में इज़रायल की कार्रवाई को “नरसंहार” और “मानवता के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध” करार दिया है। समूह ने भारत की “कमज़ोर और दुविधापूर्ण प्रतिक्रिया” पर भी गहरी चिंता जताई है।
सौ से ज़्यादा पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों के हस्ताक्षर युक्त इस पत्र में कहा गया है कि 7 अक्तूबर 2023 को हमास के हमले के बाद इज़रायल ने ग़ज़ा पर असमान और निर्मम सैन्य कार्रवाई शुरू की। अब तक लगभग 62 हज़ार फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे, मानवीय कार्यकर्ता, संयुक्त राष्ट्रकर्मी और पत्रकार शामिल हैं। ग़ज़ा के 70 प्रतिशत से अधिक भवन मलबे में तब्दील हो गए हैं। खाद्य, दवाइयों और ईंधन की आपूर्ति रोके जाने से रोज़ाना कई बच्चे भुखमरी से मर रहे हैं। पत्र में इसे “धीरे-धीरे थोपे गए नरसंहार” और फ़लस्तीनियों को ग़ज़ा से जबरन विस्थापित करने की साज़िश बताया गया है।
पत्र में इज़रायल की सैन्य कार्रवाइयों के विस्तार पर भी चिंता जताई गई है। लेबनान के हिज़बुल्लाह, ईरान और सीरिया पर हमले, और गोलान हाइट्स में घुसपैठ को “ग्रेटर इज़रायल” की महत्वाकांक्षा का हिस्सा बताया गया है। समूह ने लिखा है कि इज़रायल के भीतर भी युद्ध को लेकर विरोध तेज़ हुआ है, हज़ारों लोग तेल अवीव में बंदियों की रिहाई और युद्धविराम की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दक्षिण अफ्रीका ने इज़रायल को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटा है, जबकि आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने फ़लस्तीन को आधिकारिक मान्यता दे दी है।
भारत की भूमिका पर असंतोष
पत्र में विशेष तौर पर भारत की भूमिका पर असंतोष जताया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत ने एक ओर संयुक्त राष्ट्र में फ़िलस्तीन के पक्ष में वोट दिए और दो-राष्ट्र समाधान की बात दोहराई, लेकिन इज़रायल की “निर्दयी सामूहिक सज़ा” और ग़ज़ा में हुए नरसंहार की खुलकर निंदा नहीं की। जून 2025 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस अहम प्रस्ताव से परहेज़ किया जिसमें तुरंत और बिना शर्त युद्धविराम, ग़ज़ा में मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति और भूख को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की निंदा की गई थी। 149 देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि भारत 18 परहेज़ करने वाले देशों में शामिल था।
समूह ने भारत में फ़िलस्तीन समर्थक आवाज़ों पर हो रहे दमन का भी ज़िक्र किया है—कई राज्यों में पुलिस ने छोटे-छोटे प्रदर्शनों पर कार्रवाई की, दिल्ली में एक एकजुटता कार्यक्रम को हिंसक ढंग से रोका गया और बॉम्बे हाईकोर्ट ने फ़िलस्तीन रैली की इजाज़त न देने के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि “देशभक्त बनो और भारत की समस्याओं पर ध्यान दो।”
पत्र में कहा गया है कि यह रुख़ भारत की आज़ादी की लड़ाई की अंतरराष्ट्रीयतावादी विरासत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की परंपरा से एकदम अलग है। समूह ने सरकार से अपील की है कि भारत अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाए, फ़िलस्तीन के पक्ष में स्पष्ट और मज़बूत रुख़ अपनाए और इज़रायल को उसके “नरसंहारक रास्ते” से रोकने के लिए ठोस पहल करे।
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