बिहार: सोशल मीडिया पर लगाम की कोशिश, ‘आपत्तिजनक’ पोस्ट माना जाएगा साइबर अपराध!

पटना: बेरोज़गारी और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर घिरती नीतीश सरकार या उसके अफ़सरों पर अब कोई भी टिप्पणी महंगी पड़ सकती है।
बिहार में एक शीर्ष पुलिस अधिकारी की ओर से एक पत्र जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मंत्रियों, सांसदों, विधायकों , अन्य निर्वाचित प्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट को साइबर अपराध माना जाएगा।
सत्ताधारी दल जेडीयू और बीजेपी ने इसका स्वागत किया है, जबकि विपक्षी दलों ने इसकी निंदा की है और इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश बताया है।
यह पत्र बृहस्पतिवार को आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के एडीजी नैयर हसनैन खान ने जारी किया, जो साइबर अपराधों के लिए पुलिस का नोडल निकाय भी है।
पत्र में राज्य के सभी प्रमुख सचिवों और विभिन्न विभागों के सचिवों को संबोधित करते हुए व्यक्तियों या संगठनों की ऐसी किसी भी गतिविधि की सूचना देने को कहा गया है ताकि ईओडब्ल्यू कानून के अनुसार कार्रवाई कर सके।
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस पत्र की तस्वीर को ट्विटर पर साझा करते हुए नाराजगी व्यक्त की है।
हिटलर के पदचिन्हों पर चल रहे मुख्यमंत्री की कारस्तानियां
*प्रदर्शनकारी चिह्नित धरना स्थल पर भी धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकते
*सरकार के ख़िलाफ लिखने पर जेल
*आम आदमी अपनी समस्याओं को लेकर विपक्ष के नेता से नहीं मिल सकते
नीतीश जी, मानते है आप पूर्णत थक गए है लेकिन कुछ तो शर्म किजीए pic.twitter.com/k6rtriCJ3x
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) January 22, 2021
यादव ने ट्वीट किया,‘‘ मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) के कार्यों को देखिए, जो हिटलर के पदचिह्नों पर चल रहे हैं।’’
उन्होंने कहा,‘‘ नीतीश जी हम समझ सकते हैं कि आप पूरी तरह से थक चुके हैं, लेकिन कुछ तो शर्म कीजिए।’’
सत्तारूढ़ एनडीए ने पत्र का समर्थन किया है और कहा है कि सोशल मीडिया पर जहर उगलने वालों पर लगाम लगाना जरूरी था ।
जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने एक बयान जारी करके कहा,‘‘ यह एक स्वागत योग्य कदम है। सोशल मीडिया को एक माध्यम समझा जाता था जो सूचना का प्रसार करके व्यापक पैमाने पर लोगों के बौद्धिक स्तर पर सुधार में मदद करेगा। लेकिन हम इन मंचों पर आए दिन ऐसी बातें देख रहे हैं, जो घृणित अपशब्दों से भरी पड़ी हैं।’’
भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने भी इससे सहमति जताई है।
उन्होंने कहा,‘‘ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि कोई सीमा नहीं है। सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर कोई दिशानिर्देश और नियमन होना चाहिए। देश और समाज के हितों को बरकरार रखा जाना चाहिए।’’
एक अन्य प्रमुख विपक्षी दल और महागठबंधन के सहयोगी भाकपा माले ने भी इस तरह के आदेश की कड़ी निंदा की है। माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने ट्वीट कर कहा, “यह मुझे जगन्नाथ मिश्रा के कुख्यात बिहार प्रेस बिल 1982 की याद दिलाता है। जिसके ख़िलाफ़ न केवल पत्रकार, बल्कि गांव के गरीबों समेत बिहार के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले सभी वर्ग उठ खड़े हुए थे और उसे वापस लेना पड़ा था। इसका भी यही अंजाम होगा।”
This reminds me of Jagannath Mishra's infamous Bihar Press Bill 1982. Not just journalists, but all sections of democratic opinion including the fighting rural poor of Bihar rose against it and it had to be withdrawn. Same will be the fate of @NitishKumar's tyrannical gag order! pic.twitter.com/6UO5sHCVfP
— Dipankar (@Dipankar_cpiml) January 22, 2021
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने भी इस तरह के आदेश की निंदा की है। पार्टी के बिहार राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा, “कुशासन बाबू के राज में, बढ़ते अपराध पर नियंत्रण का नया तरीका। विरोध होगा। लोकतंत्र है। जनता बोल रही है अपराधियों के संरक्षक नीतीश सरकार।”
कुशासन बाबू के राज में, बढ़ते अपराध पर नियंत्रण का नया तरीका।
विरोध होगा। लोकतंत्र है।
जनता बोल रही है अपराधियों के संरक्षक नीतीश सरकार। pic.twitter.com/5vgJKNIiST— Awadhesh Kumar (@awadheshcpim) January 22, 2021
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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