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बिहार : विपक्ष के सुशासन के सवाल पर बिफर रहा सत्ता पक्ष !

विपक्ष ने आरोप लगाया कि ‘विशेष राज्य’ के सवाल पर भाजपा के विश्वासघात व जदयू के आत्मसमर्पण को बिहार कभी माफ़ नहीं करेगा। इस सवाल पर बिहार के दोनों सदनों में काफी हंगामा हुआ।
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इस बार बिहार विधान सभा का चालू मॉनसून सत्र पक्ष और विपक्ष की तीखी सियासी नोक-झोंक के साथ साथ हर दिन हंगामेदार हो रहा है। एक ओर, सदन के शुरू होने से पहले ही विपक्ष INDIA गठबंधन दलों के विधायकों द्वारा राज्य के ज्वलंत सवालों को उठाकर सरकार से जवाब मांगा जा रहा है, लेकिन दिन भर बीत जाने के बावजूद सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर विधान सभा के सभागार के बाहर बैनर-पोस्टर लहराते हुए दबाव बनाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

वहीं दूसरी ओर, विपक्ष के हर सवाल से किनारा करते हुए सत्ताधारी दल के नेता-मंत्री कभी अनाप-शनाप बोलकर मामले को दूसरी दिशा में मोड़ दे रहें हैं। वहीं, स्वयं मुख्यमंत्री सदन में दलित महिला विधायक द्वारा शालीनतापूर्वक सवाल उठाने पर अमर्यादा के साथ सीधे “तू-तड़ाक” कर दे रहे हैं, तो कभी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में विपक्ष को- “हाय हाय, सबको हाय हाय” कर दे रहे हैं।

गौरतलब है कि 22 जुलाई को सत्र के पहले ही दिन सदन की कार्रवाई शुरू होने के पूर्व भाकपा माले व अन्य वाम दलों के विधायकों ने विधान सभा मुख्य द्वार के सामने बैनर-पोस्टरों में लिखे सवालों को प्रदर्शित करते हुए सरकार से जवाब मांगा कि- “ढह गया सुशासन, बह गया विकास” क्यों? पिछले दिनों जो प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में एक के बाद एक करके दर्जनों पुल कैसे ढह गए? सरकार इस पर अपनी जवाबदेही तय करे और पुलों के ध्वस्त होने की उच्चस्तरीय जांच कराये।

बाढ़ की विभीषिका से हर साल जानो-माल कि हो रही भारी क्षति का कारगर समाधान करने में हर बार सरकार और उसका सारा अमला क्यों फेल हो रहा है? पूरे राज्य में अपराध और अपराधी इतने क्यों बेलगाम हो रहे हैं कि चर्चित वीआइपी नेता मुकेश सहनी के बुजुर्ग पिता की घर में घुसकर नृशंश हत्या तक हो जा रही है।

लोकसभा चुनाव के बाद दलित, अति पिछड़ों-पिछड़ों पर सामंती हमले, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार और मुसलामानों के खिलाफ मॉब लिंचिंग पर रोक क्यों नहीं लग रही है? ऐतिहासिक रूप से अत्यंत गरीबी और पिछड़ापन झेल रहे बिहार को अभी तक “विशेष राज्य का दर्ज़ा” क्यों नहीं दिया जा रहा है?

सनद रहे कि लोकसभा चुनाव के तुरत बाद ही गया के टेकारी में “वोट नहीं देने” का आरोप लगाकर सामंती तत्वों ने एक दलित युवा का हाथ काट डाला। मुजफ्फरपुर में मुसहर जाति के एक शख्स पर दबंगों ने पेशाब तक कर दिया। उसी मुजफ्फरपुर में फर्जी निजी फाइनेंस कंपनी द्वारा पिछले कई महीनों से दर्जनों लड़कियों को बरगलाकर हजारों रूपये वसूलने के साथ साथ “अच्छा काम’ देने के नाम पर यौन शोषण किया गया। उसके मुख्य सरगने और मास्टर माइंड को राजनीतिक संरक्षण मिलने के कारण पुलिस ने आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया और उसकी ओर से पीड़ित लड़कियों को लगातार धमकाया जा रहा है। इधर, चालू मॉनसून सत्र का सियासी तापमान तब और अधिक सरगर्म हो उठा जब दिल्ली में जारी संसद के मॉनसून सत्र में मोदी-एनडीए सरकार द्वारा बेहद उपेक्षा भरे अंदाज़ में सुना दिया कि- बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जाएगा।

जिसके विरोध में तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बिहार विधान सभा में भी पूरे विपक्ष ने सदन में सरकार विरोध नारेबाजी करते हुए इसे बिहार प्रदेश का सरासर अपमान बताया। विपक्ष के कई विधयाकों ने तो नीतीश कुमार से केंद्र सरकार से फ़ौरन समर्थन वापस लेने की मांग तक कर दी।

बिहार इंडिया गठबंधन के तमाम दलों ने एक स्वर में नीतीश कुमार को याद भी दिलाया कि सन 2006 से ही वे लगातार इस राज्य को विशेष दर्ज़ा देने की मांग का खुद को चैम्पियन बताते रहे हैं। अब जबकि केंद्र में उन्हीं के समर्थन से चल रही सरकार ने टका सा जवाब दे दिया है तो वे और उनके प्रवक्ता इस पर चुप क्यों हैं।

भाकपा माले की ओर से महासचिव दीपंकर ने पार्टी की ओर से प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, नीतीश कुमार 2006 से बिहार के लिए विशेष राज्य की मांग उठाते रहे हैं। मोदी जी ने भी 2015 में 1लाख 25 हज़ार करोड़ रूपये के विशेष पैकेज देने की बात कही थी लेकिन 2024 के बजट में कुछ लंबित प्रस्तावों को मिलाकर कुल मात्र 26 हज़ार करोड़ का ही विशेष पॅकेज मिला। इससे बड़ा और विश्वासघात क्या होगा!

विपक्ष ने भी यही आरोप लगाया कि ‘विशेष राज्य’ के सवाल पर भाजपा के विश्वासघात व जदयू के आत्मसमर्पण को बिहार कभी माफ़ नहीं करेगा। इस सवाल पर बिहार के दोनों सदनों में काफी हंगामा हुआ।

इस मामले ने तब और अधिक तूल पकड़ लिया जब संसद के मॉनसून सत्र में केन्द्रीय वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में बिहार की बुनियादी ज़रूरतों को नज़रंदाज़ कर दिया गया। दूसरे ही दिन इसके विरोध में पूरे विपक्ष ने केंद्र सरकार के बिहार-विरोधी रवैये के खिलाफ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शित किया। कई विपक्षी विधायकों के “बिहार को झुनझुना धराये जाने” के प्रतीक को दर्शाने के लिए अपने अपने हाथों में झुनझुना लेकर बजाए।

सीपीआई ने केन्द्रीय बजट में बिहार की उपेक्षा किये जाने का आरोप लगाते हुए कहा है, न तो बिहार के गरीब, किसान और युवाओं को कुछ नहीं मिला और न ही बिहार को कोई विशेष पैकेज दिया गया। सीपीआईएम ने भी यही आरोप लगाया है कि बिहार के युवाओं-किसानों के लिए कुछ नहीं है। अखिल भारतीय किसान महासभा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि- केन्द्रीय बजट बिहार समेत पूरे देश की खेती-किसानी के लिए निराशाजनक है। जिसमें किसानों को संकटों से उबारने की बजाय उलटे बची-खुची खेती-किसानी को तबाह कर कॉर्पोरेट घुसपैठ का ही रास्ता बनाया जा रहा है।

कई प्रतिक्रियाओं में यह भी कहा जा रहा है- नए बजट में की गयी घोषणाएं, पुरानी ही योजनाओं की रिपैकेजिंग है। जिससे देश के लोगों को सुनियोजित ढंग से गुमराह बनाया जा रहा है। इस राज्य के लोगों को चाहिए भीषण गरीबी, बेकारी और पलायन जैसे संकटों से निजात, लेकिन बिहार को थमाया जा रहा है बड़े बड़े एक्सप्रेस-वे का झुनझुना!

कुल मिलाकर सारा मामला इसी मुद्दे पर आकर पर ठहर सा गया है कि बिहार के लिए विशेष दर्ज़ा की मांग थी, लेकिन केंद्र ने ठुकरा दिया। सिर्फ दो-तीन बड़ी सड़कों की घोषणा हुई है। उसी पर बीजेपी -जदयू वाले लहालोट होकर जनता को बरगलाने की कोशिश की जा रही है।

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