ख़बरों के आगे–पीछे: बिहार जैसा 'खेल’ बंगाल में आसान नहीं

बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनाव आयोग मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के नाम पर 'खास तरह’ से मतदाता सूचियों की सफाई का 'खेल’ शुरू करेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कह दिया है कि बिहार के बाद बंगाल और फिर असम सहित देश के अन्य राज्यों से भी में गहन पुनरीक्षण होगा।
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव आयोग को इस काम के लिए अब सुप्रीम कोर्ट का भी साथ मिल गया है। बिहार में पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक नहीं लगाई। बिहार में जिस तरह पुनरीक्षण हो रहा है, उससे ममता बनर्जी को अंदाजा हो गया है कि चुनाव आयोग किस तरह से काम कर रहा है। उन्हें यह भी समझ में आ गया है कि यह सिर्फ मतदाता सूची का पुनरीक्षण नहीं है, बल्कि नागरिकता जांचने का अभियान है, जिसके आधार पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने का काम हो सकता है।
बहरहाल तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने समर्थक मतदाताओं के घर-घर जाकर उनके पहचान पत्र जांच रहे हैं और जिनके पास पहचान पत्र नहीं हैं उन्हें प्रखंड या जिला कार्यालयों से पहचान पत्र उपलब्ध कराया जा रहा है। बिहार में चूंकि जनता दल (यू) और भाजपा की सरकार है तो मामला अलग है। लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है इसलिए बिहार की तरह बंगाल में लोगों के नाम काटना चुनाव आयोग के लिए आसान नहीं होगा।
मान के सवाल सही, अंदाज़ ग़लत
कॉमेडियन से सियासतदां बने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि नरेंद्र मोदी पता नहीं किन-किन देशों में जाते हैं, मसलन 'मैग्नेशिया’, 'गैल्वेसिया’, 'टार्वेसिया’। फिर वहां का सर्वोच्च सम्मान उन्हें दिया जाता है, जो भारतीय मीडिया में हेडलाइन्स बनता है। उन्होंने कहा कि इनमें से कई देशों की आबादी दस हजार भी नहीं है। हालांकि मान ने जो नाम लिए, वैसे कोई देश दुनिया में नहीं हैं। चूंकि उन्होंने ये टिप्पणी प्रधानमंत्री की हाल की पांच छोटे-छोटे देशों की यात्रा के बाद की, तो लाजिमी है उसे इसी संदर्भ में देखा जाएगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मान की टिप्पणियों को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि एक राज्य के उच्च पदाधिकारी को ऐसी भाषा बोलना शोभा नहीं देता। बेशक, मान को उन देशों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, जहां मोदी गए। भले किसी देश में दस हजार लोग ही रहते हो, मगर उन व्यक्तियों की गरिमा और उनके देश का सम्मान किसी बड़ी आबादी वाले देश या वहां के बाशिंदों से कम नहीं माना जा सकता।
इस लिहाज से मान के बोलने के अंदाज की बेशक आलोचना होनी चाहिए। मगर मान ने जो सवाल उठाए, वे कतई महत्वहीन नहीं हैं। यह सवाल जायज है कि मोदी की अनवरत विदेश यात्राओं से भारत को क्या हासिल होता है? किस देश में कितने साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री गया, वहां का कौन-सम्मान उसे मिला, या वहां किस उद्योगपति को कौन-सा ठेका मिल गया, यह सब देश की विदेश नीति की कामयाबी को मापने का पैमाना नहीं हो सकता। ऑपरेशन सिंदूर के समय जो तजुर्बा यही हुआ कि कोई देश हमारे पक्ष में नहीं बोला।
नायडू और नीतीश का फ़र्क़
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार के जनता दल (यू) की मदद से चल रही है। लोकसभा में भाजपा की अपनी 240 सीटें हैं और तेलुगू देशम व जनता दल (यू) की 28 सीटों के सहारे एनडीए बहुमत के नजदीक पहुंचता है। लेकिन एक तरफ चंद्रबाबू नायडू हैं, जो अपने समर्थन की मनचाही कीमत वसूल रहे हैं तो दूसरी ओर नीतीश कुमार हैं, जिन्हें किसी बात का एहसास ही नहीं है।
पिछले एक साल में केंद्र सरकार की ओर से आंध्र प्रदेश को दो लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं मिली हैं। चंद्रबाबू नायडू न सिर्फ सरकार को समर्थन दे रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपने कोटे से भाजपा को राज्यसभा की दो सीटें भी दी हैं। लेकिन उन्होंने इसकी कीमत भी वसूली है। ऊर्जा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं के बाद उन्होंने अपनी पार्टी के एक बड़े नेता अशोक गजपति राजू को गोवा का राज्यपाल बनवा दिया। अरसे बाद यह देखने को मिला की भाजपा ने किसी सहयोगी पार्टी के नेता को राज्यपाल बनाया है। उधर बिहार में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और केंद्र सरकार की स्थिरता में नीतीश के 12 सांसदों की अहम भूमिका है। फिर भी बिहार को कुछ नहीं मिल रहा है। प्रधानमंत्री के बिहार में दौरे हो रहे हैं तो सीवेज और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की घोषणाएं हो रही हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है, सो सब कुछ उनके आसपास के लोग कर रहे हैं, जिनका सारा फोकस अपना हित साधने पर है।
राज्यसभा में शृंगला तीसरे आईएफ़एस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार संसद में नौकरशाहों यानी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों पर बड़ा कटाक्ष किया था। उन्होंने कहा था कि आईएएस हो गए तो क्या मतलब है कि सारे काम करेंगे। लेकिन बड़े सरकारी बाबुओं से मोदी का प्रेम भी जगजाहिर है। वे चुन-चुन कर अधिकारियों को सांसद या विधायक बनाते हैं और फिर उन्हें मंत्री भी बनाते हैं। उनकी सरकार में कई आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारी मंत्री बने। विदेश सेवा के अधिकारी हर्षवर्धन शृंगला को केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। शृंगला कुछ दिनों पहले ही विदेश सचिव के पद से रिटायर हुए हैं। वे विदेश सेवा के तीसरे पूर्व अधिकारी हैं जो राज्यसभा में लाए गए हैं। इससे पहले दो पूर्व अधिकारी राज्यसभा में हैं। पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर को गुजरात से राज्यसभा में लाया गया है। वे विदेश मंत्री भी हैं। ऐसे ही विदेश सेवा के अधिकारी रहे हरदीप सिंह को भी राज्यसभा में लाकर पेट्रोलियम मंत्री बनाया गया है। उन्हें भाजपा ने एक बार अमृतसर सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ाया था लेकिन वे जीत नहीं सके थे। बहरहाल राज्यसभा में लाए गए हर्षवर्धन शृंगला अमेरिका में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं। उनके पिता सिक्किम के बौद्ध थे और मां हिंदू थीं। इन दिनों दलाई लामा और चीन को लेकर विवाद चल रहा है। यह भी संयोग है कि पिछले दिनों देश को पहला बौद्ध प्रधान न्यायाधीश मिला है।
केरल में पहली कक्षा से हिंदी की सिफारिश
महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने का फैसला हुआ तो उसका इतना विरोध हुआ कि सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। इसके बावजूद हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हो गया। हिंदी अनिवार्य करने के फैसले ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को एक कर दिया। उधर तमिलनाडु में पहले से ही हिंदी विरोध का आंदोलन चल रहा है। कर्नाटक में भी हिंदी का विरोध हो रहा है। लेकिन इनसे अलग केरल में जहां बहुसंख्य आबादी मलयालम भाषी है, वहां पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने पर विचार हो रहा है। वैसे भी केरल में हिंदी का विरोध कभी भी राजनीति का मुद्दा नहीं रहा है। इसीलिए राज्य सरकार की बनाई एक कमेटी ने सिफारिश की है कि पहली कक्षा से हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य की जाए। यानी मलयालम और अंग्रेजी के साथ-साथ बच्चों को हिंदी भी पढ़ाई जाए। बताया जा रहा है कि राज्य में काम करने वाले प्रवासियों की संख्या को देखते हुए यह सिफारिश की गई है।
राज्य में प्रवासियों की संख्या 45 लाख के करीब है, जिनमें ज्यादातर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल और ओडिशा के हैं। राज्य के कामकाज में इनकी भूमिका को देखते हुए सरकार ने यह पहल की है। अगर यह सिफारिश मान ली जाती है तो यह एक बड़ी शुरुआत होगी।
मानसून सत्र में थरूर क्या करेंगे?
संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है, जिसमें भारी हंगामे की संभावना है। सत्र 21 जुलाई से शुरू होगा है लेकिन कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 15 जुलाई को ही अपनी पार्टी के सांसदों की बैठक बुला कर सत्र की रणनीति बनाई। इस बैठक में शशि थरूर शामिल नहीं हुए। कहा गया कि वे यात्रा कर रहे हैं। उनके अलावा गौरव गोगोई और मनिक्कम टैगोर भी मौजूद नहीं थे। संसद के इस सत्र में सबकी नजर शशि थरूर पर रहेगी। वे कांग्रेस की ओर से अच्छे वक्ताओं में से एक हैं, हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बहुत अच्छा बोलते है और हमेशा तार्किक तरीके से सरकार को घेरते रहे हैं। लेकिन अब उनके तेवर बदले हुए हैं। इसलिए यह देखना होगा कि किसी मसले पर कांग्रेस की ओर से उन्हें बोलने के लिए कहा जाता है या नहीं। वे चौथी बार के सांसद है। अगर उनको बोलने नहीं दिया जाता है तो इस पर भी सवाल उठेंगे और अगर बोलने दिया जाता है तो वे क्या बोलते हैं, वह सुनना भी दिलचस्प होगा।
अगर कांग्रेस मौका नहीं देती है तब भी स्पीकर उनको बोलने का मौका दे सकते हैं। दरअसल इन दिनों थरूर लगातार इस कोशिश में हैं कि कांग्रेस उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दे, जिससे उनकी लोकसभा की सदस्यता बनी रहे और वे स्वतंत्र होकर राजनीति करें। संसद इस सत्र इस मामले में फैसला हो जाएगा कि शशि थरूर की आगे की राजनीति कैसी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं.)
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