भगत सिंह जयंती: अत्याचार, प्रतिरोध और भविष्य की राह

हम आज भगत सिंह की 118वीं जयंती मना रहे हैं। भगत सिंह और उनके साथी ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्हें भारत की जनता उनकी कुर्बानियों और संघर्ष की दृष्टि से सम्मान देती है। भगत सिंह का शहादत दिवस हो या जयंती, भारत की शोषित-पीड़ित जनता हो या शोषक वर्ग—दोनों ही उन्हें याद करते हैं। भारत का शोषक वर्ग इसलिए उन्हें याद करता है क्योंकि वह इन शहीदों की कुर्बानियों को झुठला नहीं सकता, लेकिन उनके विचारों से उसमें घबराहट होती है। यही घबराहट उसे भगत सिंह के विचारों को दबाने, छुपाने या उन्हें केवल “महान व्यक्ति” या “स्वतंत्रता सेनानी” के रूप में सीमित करने पर मजबूर करती है। कभी-कभी उसे उन्हें “गरम दल-नरम दल” में बाँटने की कोशिश भी करनी पड़ती है।
भगत सिंह का उद्देश्य था—एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण समाप्त करना। आज भी हम देखते हैं कि उनके सपनों का भारत का निर्माण नहीं हो सका है, इसलिए उनके विचार और आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
भगत सिंह और उनके साथी जिस उम्र में अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, उस उम्र के युवाओं को आज की भाषा में ‘जेन-ज़ी’ कहा जाता है। उनकी साम्राज्यवादी विरोधी और शोषण रहित समाज की स्थापना का सपना अक्सर छिपा दिया जाता है। भगत सिंह जानते थे कि किसी भी बदलाव के आन्दोलन में युवाओं को अग्रिम पंक्ति में होना होगा।
नौजवान भारत सभा के लाहौर घोषणा-पत्र में लिखा गया है—
"नौजवान बहादुर, उदार और भावुक होते हैं। नौजवान भीषण अमानवीय यन्त्रणाओं को मुस्कुराते हुए सहन कर लेते हैं। मानव-प्रगति का सम्पूर्ण इतिहास नौजवानों के साहस, आत्मबलिदान और भावात्मक विश्वास से लिखा गया है। सुधार हमेशा नौजवानों की शक्ति, साहस और विश्वास के बल पर ही संभव हुए हैं।" भगत सिंह युवाओं से धर्म, जाति और संकीर्णता से ऊपर उठकर वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण अपनाने की अपील करते थे।
आज, दक्षिण एशिया के देशों (बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल) में नौजवानों ने भगत सिंह के विचारों को साकार किया है। नेपाल में हुए आन्दोलन को ‘जेन-ज़ी’ के रूप में प्रचारित किया गया। जेन-जी ही किसी देश का भविष्य होता है—जिसका आह्वान भगत सिंह ने भी किया था। नेपाल के युवाओं ने भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, आर्थिक संकट और सत्ता में चिपके नेताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी, और उनकी यह लड़ाई ओली सरकार को उखाड़ फेंकने तक पहुंची।
बांग्लादेश और श्रीलंका में भी स्थिति यही रही। बांग्लादेश में महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के विरोध में छात्र और युवा सड़कों पर उतरे। भाई-भतीजावाद और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमलों के विरोध में प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा। श्रीलंका में भी युवा महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी के विरोध में सड़कों पर उतरे, जिससे राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा। सभी जगह युवाओं में असंतोष का मुख्य कारण महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और भाई-भतिजावाद रहा है।
भारत में भी युवा समय-समय पर बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरे हैं। बिहार में अग्निवीर योजना के खिलाफ युवा सड़कों पर उतरे। दिल्ली में एसएससी परीक्षा में धांधली के विरोध में युवा प्रदर्शन किए, जिन पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। राजेंद्र नगर, दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों ने व्यापक प्रदर्शन किया। उत्तराखंड और लद्दाख में भी युवा व्यापक स्तर पर आंदोलन कर रहे हैं।
उत्तराखंड में युवा पेपर लीक के खिलाफ सड़कों पर हैं और चोरी के आरोपों को उजागर कर रहे हैं। लद्दाख में युवा लोकतांत्रिक बहाली (विधानसभा की मांग) को लेकर सड़कों पर उतरे हैं। इन सभी आंदोलनों की जड़ में युवाओं के अंदर बढ़ती बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और असुरक्षा मुख्य कारण हैं।
लद्दाख में युवाओं का आंदोलन सरकार के प्रति उपजी निराशा और अंधकारमय भविष्य के प्रति आक्रोश का प्रतीक है। लेकिन नेपाल के जेन-ज़ी की तरह इसे पर्याप्त सुर्खियां नहीं मिलीं। सरकार ने सोनम वांगचुक पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगाकर इस आंदोलन को देशद्रोही बताने की कोशिश की।
लद्दाख के युवाओं की प्रमुख मांगें:
- लोकतांत्रिक अधिकार: केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख की अपनी विधानसभा नहीं रही, जिससे स्थानीय लोगों को नीति-निर्माण में भागीदारी नहीं मिल रही।
- छठी अनुसूची की मांग: लद्दाख की अधिकांश आबादी आदिवासी समुदायों से आती है। अनुच्छेद 370 हटने से पहले लद्दाख की ज़मीन और संसाधन स्थानीय नियंत्रण में थे, लेकिन अब यह नियंत्रण समाप्त हो गया है। युवाओं का डर है कि बाहरी कंपनियाँ और पूंजीपति लद्दाख की भूमि, जल और खनिज संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे।
- बेरोज़गारी और शिक्षा संकट: सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। पर्यटन पर अत्यधिक निर्भर अर्थव्यवस्था स्थायी रोजगार नहीं देती। सेना में नौकरी की अवधि घटकर चार साल हो गई है। नए वादों के बावजूद रोजगार और विकास पूरा नहीं हुआ। 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं के लिए बेरोजगारी दर 2023-24 में 22.2% थी।
- पर्यावरण और जलवायु संकट: लद्दाख संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी क्षेत्र है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और पानी की समस्या गंभीर हो रही है। युवाओं और कार्यकर्ताओं ने चेताया कि खनन, औद्योगिकीकरण और अंधाधुंध पर्यटन से संकट और बढ़ेगा।
- सांस्कृतिक असुरक्षा: बौद्ध और मुस्लिम (शिया) समुदाय आधारित स्थानीय संस्कृति बाहरी दबाव और बाजारवादी संस्कृति से खतरे में है। पहचान और विरासत बचाने के लिए युवा सड़कों पर उतर रहे हैं।
इस आंदोलन में चार युवाओं की मौत हो गई और लगभग 50 लोग घायल हुए। भारतीय मीडिया ने इसे नेपाल के आंदोलनों की तरह प्रमुखता नहीं दी। केवल सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और उनके पर्यावरणीय सेमिनारों के विदेशी दौरे तक इसे सीमित कर दिया गया।
साम्राज्यवाद के खिलाफ अपने लोकतंत्र के लिए लड़ते हुए भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई थी, जिससे पूरा देश उद्वेलित हो गया। लेकिन आज लद्दाख में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए चार नौजवानों की मौत हो गई। क्या भगत सिंह और उनके साथी इसी तरह के लोकतंत्र के लिए अपनी शहादत दिए थे? आज हम उन शहीदों के सपनों को टूटते हुए देख रहे हैं।
आज हम नौजवान भारत सभा के कथन को याद कर रहे हैं—
"हमारा देश अव्यवस्था की स्थिति से गुजर रहा है। चारों तरफ अविश्वास और हताशा का साम्राज्य है। देश के बड़े नेताओं ने अपने आदर्श खो दिए हैं और उनमें से अधिकांश को जनता का विश्वास नहीं मिला है। ...चारों तरफ अराजकता है। लेकिन किसी राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में अराजकता आवश्यक दौर है। ऐसी नाज़ुक घड़ियों में कार्यकर्ताओं की ईमानदारी की परख होती है, उनके चरित्र का निर्माण होता है और वास्तविक कार्यक्रम बनता है। जब नया उत्साह, नई आशाएँ और नए जोश के साथ काम आरंभ होता है, तो इसमें मनोबल कम होने की कोई बात नहीं है।"
आज जो भी हो रहा है—चाहे वह बांग्लादेश हो, श्रीलंका, नेपाल या भारत—यह भविष्य में बेहतर बदलाव की चेतावनी है। हमें दुनिया के सभी नौजवानों और अपने देश के जेन-जी के साथ एकजुटता दिखानी होगी। भगत सिंह के विचारों की सार्थकता इसी में है कि हम एक लोकजनवादी भारत का निर्माण करें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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