'राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म का राजनीतिकरण, संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला'

अयोध्या में आज 5 अगस्त को राम जन्मभूमि पूजन हुआ। इस पूजा में देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत पूरी सरकार की सक्रियता थी। इसको लेकर देश की तमाम वामपंथी पार्टियों ने अपना विरोध जताया और कहा भूमि पूजन सरकार का नहीं, मंदिर ट्रस्ट का काम है। वामपंथी दल भाकपा माले ने राम मंदिर भूमि पूजन समारोह को सरकारी आयोजन में तब्दील कर देने और उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार की इसमें पूर्ण भागीदारी के खिलाफ देशव्यापी प्रतिवाद किया और इसे काला दिवस की संज्ञा दी।
माले ने कहा 'राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म का राजनीतिकरण, संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला है।'
बिहार की राजधानी पटना में माले राज्य कार्यालय में माले राज्य सचिव कुणाल, विधायक दल के नेता महबूब आलम सहित पूरे बिहार में माले नेताओं ने प्रदर्शन किया और इसे संविधान की मूल मान्यताओं पर हो रहा हमला बताया।
बिहार राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म व राजनीति का घालमेल देश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर हमला है। भारतीय संविधान की मूल भावना को सोच समझ कर नष्ट करने का यह कृत्य है।
उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले ने मंदिर निर्माण की राह खोली थी, उसी फैसले में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढाहने की आपराधिक कृत्य के रूप में स्पष्ट तौर पर आलोचना की गयी है। केंद्र सरकार का प्रधानमंत्री के स्तर पर भूमि पूजन में शरीक होना, उस अपराध को वैधता प्रदान करने की कार्यवाही है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त का मखौल उड़ाना तो है ही, भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर भी हमला है।
माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने इस मौके पर कोरोना माहमारी को लेकर सवाल उठाए और कहा कि अयोध्या में आज का आयोजन केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी कोविड-19 से बचाव के प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन है, जिसमें धार्मिक आयोजनों, बड़े जुटान एवं 65 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों की भागीदारी पर रोक है। अयोध्या में पुजारी और तैनात पुलिस वालों का कोरोना पॉज़िटिव पाया जाना, बढ़ती महामारी के बीच लोगों को आमंत्रित करने से मानव जीवन के लिए पैदा किए जा रहे खतरे को रेखांकित करता है। राम मंदिर को कोरोना वारस का इलाज बताने वाले भाजपा नेताओं के बयान संघ-भाजपा की धर्मांधता और कोरोना महामारी के बीच सरकार की अनुपयुक्त प्राथमिकताओं को ही दर्शाते हैं। जब कोरोना के केस दिन दूनी-रात चौगुनी गति से बढ़ रहे हैं, तब सरकार अपनी पूर्ण विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढंकना चाहती है।
धीरेन्द्र झा ने कहा कि धर्म का राजनीतिकरण करने और जन स्वास्थ्य के बजाय धार्मिक आयोजन को प्राथमिकता देने के मोदी सरकार की कार्यवाही को खारिज करना होगा और धर्मनिरपेक्षता व न्याय के संवैधानिक उसूलों को बुलंद करना हम जारी रखेंगे।
इससे पहले अन्य वाम दलों ने भी इस आयोजन में सरकारी भागीदारी को लेकर अपनी आपत्ति जाता चुके है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने 3 अगस्त को जारी अपने बयान में इसकी आलोचना की थी। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने एक के बाद एक ट्वीट कर भूमि पूजन के इस अयोजन को लेकर सरकार पर हमला बोला।
Covid-19 is raging across the country. The preventive protocol stipulated by the Union Home Ministry rules out religious gatherings. Reports of priests and policemen deployed in Ayodhya testing Covid positive only highlights the risks to human lives (4/n) https://t.co/mGRSW8jbAj
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) August 3, 2020
उन्होंने लिखा कि सीपीआई-एम हमेशा से मानती रही है कि अयोध्या विवाद का हल या तो बातचीत से हो या फिर कोर्ट द्वारा। और कोर्ट ने इसका फैसला कर मंदिर निर्माण की अनुमति दी है। "
इसके साथ ही येचुरी ने कोरोना काल में हो रहे इस भव्य आयोजन पर गंभीर सवाल उठाए और लोगों से संविधान की रक्षा करने की भी अपील की।
सीपीआई ने भी बयान जारी किया और लगभग वही सवाल उठाए जो सीपीएम और भाकपा माले ने उठाए।
वाम दलों के विरोध के प्रमुख बिन्दु और सवाल इस प्रकार है:-
- उच्चतम न्यायालय जिसने अयोध्या की जमीन मंदिर ट्रस्ट को दी, उसने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना एक अपराध था। भारत के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें, शिलान्यास में शामिल होकर उस आपराधिक कृत्य का राजनीतिक लाभ क्यूँ उठाना चाहते हैं? भारत के नागरिक के तौर पर हम बाबरी मस्जिद गिराने के अपराधियों को राजनीतिक लाभ नहीं सज़ा दिये जाने की मांग करते हैं।
- अनलॉक-3 के दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक है और 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को घर पर और भीड़भाड़ से अलग रहने की सलाह दी गयी है। जब 69 वर्षीय प्रधानमंत्री इन दिशा निर्देशन का उल्लंघन करते हैं और धार्मिक समारोह में शामिल होते हैं, क्या वे सभी भारतीयों को कोरोना से बचाव के दिशा-निर्देशों को अनदेखा करने और उनका उल्लंघन करने के लिए उकसा नहीं रहे हैं ?
- भारत का संविधान इस बात में दृढ़ है कि धर्म और राजनीति का मिश्रण नहीं होना चाहिए। तब भारत के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्यूँ एक मंदिर के भूमिपूजन समारोह से राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रहे हैं?
- पूरा देश कोविड-19 और लॉकडाउन संकट से जूझ रहा है, साथ ही बाढ़ भी झेल रहा है, जो हर साल अपने साथ अन्य महामारियां भी लाती है. ऐसे समय में जनता को इन जानलेवा संकटों से बचाने के बजाय भारत के प्रधानमंत्री, मंदिर के शिलान्यास समारोह को राजनीतिक मंच में तब्दील करने में क्यूँ व्यस्त हैं?
- सरकार को धार्मिक आयोजनों से दूर रहना होगा. राम मंदिर को कोरोना वायरस का इलाज बताकर अंधविश्वास फैलाना बन्द किया जाए। कोरोना नियंत्रण में विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढंकना बंद किया जाए और धर्म का राजनीतिकरण करना बंद हो। साथ ही, जन स्वास्थ्य को प्रमुखता दी जाए।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।