उमर मोहम्मद और 5 गायों को किसने माराः पुलिस या गौरक्षकों ने?

गौरक्षकों की बर्बरता के शिकार उमर का भयभीत परिवार और गाँव के वृद्ध लोग पूरी रात मोरेटोरियम के बाहर बैठे रहे। उनका कहना था कि जब तक पुलिस एफआईआर (अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गयी है) दर्ज नहीं करती तब तक उमर मोहम्मद का शव नहीं लिया जाएगा। उमर मोहम्मद के शव के पोस्टमॉर्टम से जानकारी मिली कि उसकी मौत गोली लगने से हुई है न कि ट्रेन से कटकर।
पुलिस का कहना है कि मोहम्मद रेलवे ट्रैक पर पाया गया था और उसकी मौत ट्रेन की नीचे आ जाने से हुई थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक सबूतों को नष्ट करने का साफ तौर पर प्रयास किया गया था लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि हालांकि शव का सिर और एक अंग कटा हुआ मिला, फिर भी एक गोली का घाव बरकरार था I यह इस तथ्य के साक्ष्य हैं कि मोहम्मद को पहले गौरक्षकों की भीड़ ने गोली मारी थी।
पुलिस ने अब पुष्टि की है कि इस घटना में पाँच गायों को मारा गया था और एक को जिंदा बरामद किया गया। आधिकारिक सूत्रों ने स्थानीय मीडिया को बताया है कि मोहम्मद की मौत गोली के ज़ख्म से हुई थी भले ही उसके शव को रेलवे पटरियों पर रखा गया था। शुरुआती पुलिस बयानों से पता चलता है कि दोनों ही अलग-अलग घटनाएँ थीं।
डेयरी किसान उमर मोहम्मद के साथ जा रहे ताहिर मोहम्मद घटना के दौरान वहाँ से भागने में कामयाब रहा। इस घटना में गोलियों से घायल ताहिर मोहम्मद अस्पताल में भर्ती है। ताहिर का परिवार उसके साथ हुए हादसे को लेकर भयभीत है और उन्हें उसकी जान पर मंडरा रहा है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने राजस्थान में हुए इस घटना पर ताहिर को सुरक्षा देने के साथ ही मुआवजे के रूप में 10 लाख रूपए देने की माँग की है।
मीडिया ने गाँव के बुज़ुर्गों से बात की तो उन्होंने बताया कि उमर मोहम्मद एक डेयरी किसान था। वह और ताहिर हरियाणा के मेवात इलाके के अपने गाँवों से राजस्थान के भरतपुर पशु लेकर जा रहे थे। जब वे जा रहे थे तो गौरक्षकों की भीड़ राजस्थान में भरतपुर के पास घटमटिका पहाड़ी के पास घात लगाए बैठे थे। अलवर के मेओ पंचायत के चेयरमैन शेर मोहम्मद ने मीडिया को बताया कि गौरक्षकों ने उन्हें बुरी तरह पीटा और उनपर गोलियाँ चलाईं।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़, राजस्थान ने रामगढ़ थाना (अलवर) पुलिस तथा तथाकथित गौरक्षकों द्वारा उमर मोहम्मद की निर्मम हत्या की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है। प्रत्यक्षदर्शी ने गोलीबारी की पुष्टि की है, हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है गोलियां पुलिस द्वारा चलाई गईं थी।
पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव यह बताने में जरा भी नहीं हिचकिचाती हैं कि पुलिस इस अपराध में शामिल थी और अन्य निलंबनों में यह एक दर्शक की भूमिका नहीं निभा रही थी। पीयूसीएल ने तथाकथित गौराक्षकों और रामगढ़ पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि नागरिक अधिकार संगठन ने 25 लाख रूपए का मुआवजा और परिवार को जमीन और सुरक्षा देने की मांग की है। साथ ही रामगढ़ एसएचओ की बर्खास्तगी और अलवर के एसपी के निलंबन की मांग की है, जो पूरे दो दिनों तक शव का पता लगा नहीं सकी। संगठन ने अलवर और भरतपुर जिले के मेयो समाज के लोगों की सुरक्षा के लिए राज्य के गृह मंत्री से सुरक्षा योजना की भी मांग की है। ये समाज सांप्रदायिक हिंसा की मार झेल रहे हैं।
ताहिर ने कथित रूप से भीड़ में शामिल राकेश का नाम लिया है। इस भीड़ में करीब पांच अन्य लोग शामिल थें। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब तक इनमें से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। अलवर के एसपी ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा जिसे स्थानीय मीडिया ने बताया कि छह लोगों ने हमला किया था। उन्होंने कहा कि ये हत्या का मामला है लेकिन साथ ही कहा कि इसका गौरक्षकों से कोई संबंध नहीं है।
उन्होंने दावा किया कि इस घटना से बचने वाले "ताहिर मोहम्मद" उनके खिलाफ आपराधिक मामले हैं और जांच चल रही थी।
यह पहली घटना है जब गाय को लेकर गौरक्षकों की भीड़ ने गोली मारकर हत्या की। अब तक भीड़, लाठी-डंडों से पीड़ितों को पीट-पीट कर जान से मार देते थे। पहलू खान, मोहम्मद अखलाक तथा अन्य कई घटनाएं हुईं जिसमें पीड़ितों को लाठी-डंडों से बुरी तरह पीटा गया था। गोली मारने की ये पहली घटना है।
शेर मोहम्मद ने मीडिया से कहा, "बहुत से लोग मारे गए हैं।" कृपया कुछ ऐसा करें कि हम सुरक्षित रह सकें, उन्होंने कहा कि इलाके में खौफ का माहौल बना हुआ है।
राजस्थान के नागरिक अधिकार संगठनों ने प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को एक खुला पत्र जारी किया जो उस समय अलवर में प्रचार कर रही थीं। पत्र में लिखा गया है:
12 नवंबर, 2017 को आप उपचुनाव के लिए अलवर में प्रचार कर रही थीं जब रामगढ़ थाना की पुलिस और कथित गौरक्षकों द्वारा उमर मोहम्मद की 10 नवंबर को अलवर जिले के गोविंदगढ़ के पास निर्मम हत्या कर दी गई।
उमर राजस्थान के भरतपुर के पहाड़ी कमान के निकट घटमटीका पहाड़ी का निवासी था और वह डेयरी किसान था। उमर रामगढ़ से कुछ गाय के साथ लौट रहा था। उसके पिकअप वाहन को रोका गया था और फिर उस पर हमला किया गया। तथ्यों से पता चलता है कि रामगढ़ की पुलिस उमर के हत्यारे गौरक्षकों के साथ समान रूप से शामिल थी। चौंकाने वाली बात ये है कि पुलिस और गौरक्षक गुंडों ने उसके शरीर को रेलवे ट्रैक पर फेंक कर सबूतों को नष्ट करने की कोशिश की। उसके शरीर की हालत से क्रूरता का पता चलता है कि पुलिस और तथाकथित गौराक्षक लोग इसमें शामिल हो सकते हैं। लेकिन यहां तक कि ट्रेन से कटने के चलते गोलियों के घावों को छिपाया नहीं जा सका। ताहिर पूरे मामले का एक मात्र प्रत्यक्षदर्शी है और गंभीर स्थिति में उसका इलाज अस्पताल में किया जा रहा है।
उमर की हत्या आपकी सरकार की पूरी विफलता है जो गौरक्षकों से मुसलमानों की रक्षा विशेषकर डेयरी किसानों की रक्षा करने में असफल साबित हुई है। कृपया निम्नलिखित हत्याओं को याद करें:
-30 मई 2015- अब्दुल गफ्फार कुरैशी, बिरलोका, तहसील-डिडवाना, जिला-नागौर
- 1 अप्रैल- पहलू खान, थाना-बेहरोर, जिला-अलवर
· 16 जून,- जफर खान, प्रतापगढ़, जिला-प्रतापगढ़
· 10 सितंबर- भगतरम मीना, नीम का थाना, जिला-सिकर
महोदया, क्या इस खूनी पागलपन को रोकने के लिए कोई योजना है, क्योंकि अब गौरक्षकों ने खून का मजा ले लिया है और इन्हें पुलिस तथा प्रशासन का समर्थन है (पहलू खान के हत्यारों को जांच के दायरे से बाहर निकाल दिया गया और जफर खान के हत्यारे आजाद घूम रहे हैं)। ये हत्याएं बढ़ती जा रही हैं? यह संविधान के अनुच्छेद 21 की सरकार द्वारा मुसलमानों के जीवन के अधिकार का बड़ा उल्लंघन होगा। आपसे जीवन की रक्षा चाहते हैं।
इस पत्र पर हस्ताक्षरकर्ताओं में कविता श्रीवास्तव (अध्यक्ष, पीयूसीएल राजस्थान) शामिल हैं।
अनंत भटनगर (पीयूसीएल राजस्थान के महासचिव)
निखिल डे (एमकेएसएस)
मौलाना हनीफ (उपाध्यक्ष, पीयूसीएल),
नूर मोहम्मद (अलवर जिला पीयूसीएल सचिव)
सुमित्रा चोपड़ा और कुसुम साईंवाल, एआईडीडब्ल्यूए
निशा सिद्धू, एनएफआईईडब्ल्यू
राशीद हुसैन, वेल्फेयर पार्टी, राजस्थान
मोहम्मद इकबाल, जमात-ए-इस्लामी हिंद, राजस्थान
बसंत, हरियाणा नागरिक मंच
सवाई सिंह, राजस्थान समग्र सेवा संघ
भंवर मेघवंशी, पीयूसीएल
तारा चंद, एचआरएलएन
कोमल श्रीवास्तव, बीजीवीएस
पप्पू कुमावत, पीयूसीएल
ममता जेटी, विविध, विमेन्स डॉक्यूमेंटेशन एंड रिसर्च सेंटर
रेणुका पमेचा, डब्लूआरजी
मुकेश गोस्वामी और कमल टाक, आरटीआई मंच
तथा अन्य लोग
यह लेख द सिटिज़न में प्रकाशित अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है I
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।