'तन्हा गए क्यों अब रहो तन्हा कोई दिन और' ग़ालिब 223वीं जयंती पर विशेष

मिर्ज़ा ग़ालिब 1797 में 27 दिसंबर को आगरा में पैदा हुए। आज उनकी 223वीं जयंती है। आइये आज पढ़ते हैं उनकी वह ग़ज़ल जो उनके भतीजे की मौत पर लिखी गई थी।
दरअसल ग़ालिब और उनकी बेग़म उमराव के कुल 7 बच्चे पैदा हुए, मगर किसी भी बच्चे की उम्र 15 महीने से ज़्यादा नहीं हुई। लिहाज़ा अकेलेपन और उदासी की वजह से ग़ालिब ने बेग़म उमराव के भतीजे आरिफ़ को गोद लिया, मगर आरिफ़ की भी 34 साल की उम्र में मौत हो गई। उसके बाद हुई ये ग़ज़ल जिसमें ग़ालिब लिखते हैं,
"हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़,
क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और"
पढ़िये ग़ालिब की ग़ज़ल,
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और
मिट जाएगा सर गर तिरा पत्थर न घिसेगा
हूँ दर पे तिरे नासिया-फ़रसा कोई दिन और
आए हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊँ
माना कि हमेशा नहीं अच्छा कोई दिन और
जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे
क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और
तुम माह-ए-शब-ए-चार-दहुम थे मिरे घर के
फिर क्यूँ न रहा घर का वो नक़्शा कोई दिन और
तुम कौन से थे ऐसे खरे दाद-ओ-सितद के
करता मलक-उल-मौत तक़ाज़ा कोई दिन और
मुझ से तुम्हें नफ़रत सही नय्यर से लड़ाई
बच्चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और
गुज़री न ब-हर-हाल ये मुद्दत ख़ुश ओ ना-ख़ुश
करना था जवाँ-मर्ग गुज़ारा कोई दिन और
नादाँ हो जो कहते हो कि क्यूँ जीते हैं 'ग़ालिब'
क़िस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और
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