अफ़्रीक़ा की आज़ादी का दूसरा आंदोलन साहेल में शुरू हो गया है
दाएं से बाएं: अबूबकर अलासेन, फिलिप नौडजेनौमे, और अची एकिसी। फोटो: पेड्रो स्ट्रोपासोलास
"गोरे लोगों के आने से पहले, अफ्रीका में कोई सीमा नहीं थी। सभी सीमाओं को उपनिवेशवादियों ने खींचा था। आज हमें इन सीमाओं को मिटा देना चाहिए और अपनी आने-जाने की आज़ादी फिर से हासिल कर लेना चाहिए," वेस्ट अफ्रीका पीपल्स ऑर्गनाइजेशन (WAPO) के नाइजीरियाई नेता अबूबकर अलासने ने सहेल के लोगों के साथ एकजुटता पर तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन सहेल राज्यों के गठबंधन (AES) के उद्भव पर एक पैनल चर्चा को संबोधित करते हुए उक्त बातें कही।
उन्होंने पूछा कि, "अमेरिका के 50 राज्य एकजुट हैं। फिर अफ्रीका एकजुट क्यों नहीं हो सकता है?" पैन-अफ्रीकनिस्ट नेता और स्वतंत्र घाना के पहले राष्ट्रपति क्वामे नक्रूमा ने "चेतावनी दी थी कि अफ्रीका को एकजुट हो जाना चाहिए वरना यह नष्ट हो जाएगा।" और परिणामस्वरूप, अफ़्रीका के टुकड़ों में बटने से वह "मारा जा रहा है।"
लेकिन माली, बुर्किना फासो और नाइजर ने अफ़्रीकी महाद्वीप को एक नया जीवन और एकता की उम्मीद दिखाई है, जिसने अपने पूर्व-उपनिवेशवादी फ्रांस को अपने देशों से सैनिकों को वापस बुलाने पर मजबूर किया, और बाद में एक साथ मिलकर एईएस का गठन किया।
अलासने ने कहा कि, "इन देशों के बीच 2000 किलोमीटर से ज़्यादा की सीमाएं मिट गई हैं। अब हम इन देशों के भीतर बिना पासपोर्ट या वीज़ा के आसानी से आ-जा सकते हैं।"
फोटो: पेड्रो स्ट्रोपासोलास
एईएस द्वारा शुरू की गई इस प्रक्रिया को आइवरी कोस्ट की क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी (पीसीआरसीआई) के महासचिव अची एकिसी ने अफ्रीका की आज़ादी का दूसरा आंदोलन बताया है। उन्होंने कहा कि, "यह दूसरा आंदोलन सच्ची आज़ादी होगी", उन्होंने आगे कहा कि, "हमें तब धोखे में रखा गया जब हमें बताया गया था कि हमें 1960 के दशक में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद से आज़ादी मिल गई थी।"
बेनिन की कम्युनिस्ट पार्टी (पीसीबी) के प्रथम सचिव, फिलिप नौडजेनौमे ने कहा कि आज़ादी के बाद भी फ्रांस ने औपनिवेशिक समझौते के ज़रिए अफ़्रीकी उपनिवेशों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा जमाए रखा, जिससे उन्हें बुनियादी ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा विकसित करने में कोई क्षमता हासिल नहीं हुई। जबकि यूरेनियम जैसे इसके संसाधनों का इस्तेमाल फ्रांस को रोशन करने वाले परमाणु संयंत्रों को चलाने के लिए किया गया जबकि "नाइजर अंधेरे में घिरा रह गया।"
एकिस्सी ने कहा कि इसी संदर्भ में माली, बुर्किना फासो और नाइजर जैसे सहेलियन राष्ट्रों ने "यह कहते हुए चुनौती स्वीकार कर ली कि वे अब फ्रांस के हुक्म के अधीन नहीं रहेंगे।"
नौडजेनौमे ने कहा कि "आज़ादी का दूसरा आंदोलन" शुरू करने की जिम्मेदारी सेना पर थी, जिसने इन देशों में फ्रांसीसी समर्थित शासन को हटाने के लिए तख्तापलट किया, क्योंकि नव-औपनिवेशिक संदर्भ में लोकप्रिय आंदोलनों के संगठन का स्तर कमजोर था। लेकिन उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की सफलता लोकप्रिय आंदोलनों के मजबूत होने पर निर्भर करती है।
नाइजीरियाई नागरिक समाज संगठन, पैट्रियटिक फ्रंट के महासचिव जिब्रिल अन्नासा ने इस संघर्ष में युवाओं की भूमिका पर एक पैनल को संबोधित करते हुए चेतावनी दी कि, "इस अखिल अफ्रीकी आंदोलन को रचनात्मक आलोचना की ओर उन्मुख होना चाहिए ताकि हम वे गलतियां न करें" जिनका इस्तेमाल अतीत में साम्राज्यवादी ताकतों ने इसे कुचलने के लिए किया था। घाना के समाजवादी आंदोलन (एसएमजी) के नेता ब्लेज़ टुलो ने इस बात पर जोर दिया कि लोकप्रिय शिक्षा और युवा कार्यकर्ताओं का विकास इस संघर्ष की सफलता के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।
शिक्षा जैसे क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद बाजौम के फ्रांस समर्थित शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस पर जोर देते हुए, डब्ल्यूएपीओ की अमीना हमानी हसन ने कहा कि यदि इस आंदोलन को सफल बनाना है तो महिलाओं को गौण भूमिका निभाने पर मजबूर नहीं किया जा सकता।
आंदोलन के सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, सभी पैनलिस्टों ने भविष्य के प्रति आशा व्यक्त की तथा एईएस देशों पर शासन करने वाली सैन्य सरकारों में विश्वास व्यक्त किया।
अलासने ने कहा कि, "बाहर देश के रहने वाले कई लोग सोचते होंगे कि हम एक सैनिक तानाशाही में जी रहे हैं। लेकिन सम्मेलन में भाग लेने आए प्रतिनिधि देख रहे हैं कि हम आज़ाद हैं" और पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी को जी रहे हैं।
सौजन्य: पीपल्स डिस्पैच
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