सामने आया बिहार पुलिस प्रशिक्षण केंद्र का अमानवीय और शर्मसार करने वाला सच

बीती 9 नवम्बर को जब राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष व सदस्यों के सामने बिहार सरकार द्वारा बर्खास्त प्रशिक्षु महिला पुलिसकर्मियों ने अपनी व्यथा सुनाई तो सभी सकते में पड़ गयीं। बिहार पुलिस प्रशिक्षण केंद्र जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में उन सबों के साथ होनेवाली अमानवीयता का सच बेहद शर्मशार करनेवाला था।
उन्होंने बताया कि "पीरियड की परेशानी में विशेष छुट्टी मांगने पर कहा जाता था कि पहले इसका वीडियो बनाकर लाओ... सामान्य छुट्टी के बदले शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए कमरे में आने को कहा जाता था... बात बात पर गंदी–गंदी गालियाँ देकर हमारे अंगों की ओर इशारा करके अश्लील कॉमेंट्स किये जाते थे... विरोध करने पर बेशर्मी से धमकाया जाता था... केंद्र के डीएसपी और उनके शोहदे सहकर्मी हर प्रशिक्षु महिलाकर्मी के साथ यही व्यवहार करते थे...।"
महिला पुलिसकर्मियों ने महिला आयोग को बताया कि "10 अगस्त’18 को हमारी बहाली हुई और बिना पूरी ट्रेनिंग के हमें 15 अगस्त से ही ड्यूटी पर लगा दिया गया... 4 नवम्बर को हुए हंगामे की विभागीय जांच के अधिकारियों ने पक्षपात करते हुए घटना के मूल कारण को ही दबा दिया है। एक बार भी हमारा पक्ष या बयान नहीं लिया गया और न ही पूछा गया कि हमने ऐसा क्यों किया... केंद्र में पिछले 3 महीनों से हो रहे इस अमानवीयता से हमारी स्थिति आत्महत्या करने जैसी हो गयी थी.... तंग आकर ही हमने ऐसा किया है, लेकिन हमारी पीड़ा सुनने और हमें इंसाफ देने की बजाय हमें बर्खास्त कर आपराधिक मुकदमे दर्ज कर दिए गए हैं, हम कहाँ जाएँ कोई नहीं सुन रहा है।"
महिला आयोग की अध्यक्ष ने पूरी गंभीरता से संज्ञान लेकर कहा कि माहिला आरक्षियों ने जो आरोप लगाए हैं वो जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं। प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि मामले की सही तरीके से जांच नहीं हुई है। अधिकारी ही अधिकारी की जांच करेंगे तो धांधली और एकपक्षीय कार्रवाई होगी। इसलिए मामले की जांच दूसरी एजेंसी से करायी जाय। साथ ही राज्य के डीजीपी से हर बिंदु पर बारीकी से जांच कर रिपोर्ट माँगने की भी बात कही।
लेकिन राज्य महिला आयोग के इस पक्ष पर अभी तक सरकार या पुलिस महकमे की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं देना, दिखलाता है कि वे अपने फैसले पर ही अड़े हुए हैं और प्रशिक्षु महिला आरक्षियों के पक्ष में महिला आयोग के रुख की उन्हें कोई परवाह नहीं है।
मुख्यमंत्री नितीश कुमार की भूमिका तो और भी हैरान करने वाली है, जो आये दिन महिला आरक्षण व सशक्तिकरण को अपनी सरकार की विशिष्ट उपलब्धि गिनाते नहीं थकते। 4 नवम्बर की घटना पर उन्होंने खुद पुलिस के आला अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी लेकिन आन्दोलनकारी प्रशिक्षु महिला आरक्षियों से कोई बात तक नहीं की और अब तो उनकी बर्खास्तगी और उन पर मुकदमे किये जाने पर मौन भी साधे हुए हैं। आन्दोलन करनेवाली 79 महिला प्रशिक्षुओं व उनका साथ देनेवाले अन्य 96 पुरुष प्रशिक्षुओं की बर्खास्तगी व गंभीर आपराधिक मुकदमे दायर कर दिखावे के लिए पुलिस प्रशिक्षण केंद्र के कुछेक पुलिसवालों पर रस्मअदायगी की कार्रवाई की गयी है, लेकिन जिस मुख्य अफसर के कारण प्रशिक्षु सविता पाठक की जान गयी और जिन पर महिला आरक्षियों के साथ अनैतिक आचरण के अनगिनत गंभीर आरोप हैं, उसे हटाकर सिर्फ लाइन हाज़िर किया गया है।
राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनों स्वयं को सन ‘74 के ऐतिहासिक छात्र आन्दोलन की उपज बताते हैं। ये विडंबना ही है कि उस आन्दोलन के समर्थन में बिहार के पुलिस कर्मियों ने मानवीयता दीखते हुए सरकार की नाफ़रमानी कर गोली चलाने से इनकार कर दिया था, लेकिन आज जब उनकी सरकार का शासन है और उन्हीं के राज्य की पुलिसकर्मी बेटियों ने अपनी मर्यादा और मानवीय अधिकारों के लिए 4 नवम्बर को नाफ़रमानी कर इंसाफ की आवाज़ उठायी तो उन्हें बर्खास्त कर अपराधी घोषित कर दिया है। पुलिस प्रशिक्षण केंद्र जैसे महत्वपूर्ण सरकारी संस्थान में महिलाकर्मियों के साथ महीनों से हो रहे यौनिक दुर्व्यवहार की संगीन घटना पर पर्दा डालकर मामले को दूसरा रंग देने में सरकार और पूरा पुलिस महकमा लगा हुआ है।
ज्ञात हो कि चंद दिनों पूर्व ही वर्तमान बिहार की सरकार और पुलिस महकमे की ऐसी ही संदिग्ध भूमिका खुलकर सामने आयी जब मुज़फ्फापुर बालिका गृह में मासूम बच्चियों-नाबालिगों के साथ होनेवाले संस्थानिक हैवानियत कांड को रफा दफा करने की हरचंद कवायद हुई थी, जिसपर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ गया। उसे मामले की सही जांच का ज़िम्मा बिहार की सरकार और पुलिस महकमे से लेकर सीबीआई को देना पड़ा। बढ़ते राज्यव्यापी जनदबाव और सीबीआई के कारण उस जघन्य काण्ड के सत्ता से जुड़े बड़े रसूखदार आरोपियों को मंत्री पद से हटाने से लेकर जेलों में बंद करने को विवश होना पड़ा है, सरकार का बस चलता तो न सिर्फ इन सबों को बचा लिया जाता बल्कि जाँच रिपोर्ट में घटना का होना भी गायब रहता, 4 नवम्बर को राज्य पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में हुए महिला प्रशिक्षुओं के हंगामे की घटना के मामले में भी राज्य की सरकार और पुलिस महकमा फिर वही रवैया अपना रहा है। सरकारी तंत्र की सड़ांध और पुलिस प्रशिक्षण केंद्र का काला सच छिपाने के साथ साथ दोषी बड़े अधिकारीयों को बचाने के लिए विभाग की एकतरफा जांच में इस काण्ड के असली कारण को सिरे से ग़ायब कर मामले को दूसरा रंग दे दिया गया है, लेकिन कार्यस्थल पर यौनिक दुर्व्यवहार झेलनेवाली बर्खास्त महिला आरक्षियों द्वारा राज्य महिला आयोग का दरवाज़ा खटखटाने से लेकर मीडिया के जरिये अपना पक्ष सार्वजनिक करना , दिखलाता है कि अपने इन्साफ के लिए उन्होंने भी कमर कस ली है। उधर, सरकार और पुलिस विभाग त्योहार के बाद सभी आन्दोलनकारी प्रशिक्षु पुलिसकर्मियों पर और कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा कर रहा है तो दूसरी ओर, बर्खास्त महिला पुलिसकर्मियों के समर्थन में तथा इनके इंसाफ के लिए इन्हीं त्योहारों के बीच सड़कों पर प्रतिवाद का सिलसिला भी शुरू हो चुका है, जो धीरे धीरे राज्यव्यापी स्वरूप ले रहा है।
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