रोहिंग्या शरणार्थियों को बेंत मारने की सज़ा रोकने के लिए मलेशिया से मानवाधिकार समूह ने मांग की

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मलेशिया की एक स्थानीय अदालत द्वारा शरण चाहने वाले रोहिंग्या को हाल में सुनाई गई ''क्रूर'' और ''बर्बर'' सज़ा को समाप्त करने की मांग की है। गिरफ़्तार शरणार्थियों की तरफ से पेश होने वाले मानवाधिकार वकील कोलिन एंड्रयू के अनुसार, मंगलवार 21 जुलाई को कहा गया कि शरण चाहने वाले रोहिंग्या के एक समूह के खिलाफ बेंत से मारने की सज़ा (caning sentence ) को समाप्त करने की अपील स्वीकार कर ली गई है।
जून महीने में 40 रोहिंग्याओं को जेल की सजा सुनाई गई थी जिनमें से 20 लोगों को मलेशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के लंगकावी ज़िले की एक अदालत ने बेंत मारने की सजा सुनाई थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के मलेशिया के शोधकर्ता रैचेल छोआ-होवार्ड ने एएफपी को बताया, "ये रोहिंग्या म्यांमार से बच गए हैं लेकिन दूसरे ख़तरे को मोल ले लिया है ... बेंत मारना एक बर्बर प्रथा है जो उत्पीड़न, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार को बढ़ाता है और मलेशिया को ऐसी सज़ा का इस्तेमाल करना रोकना होगा।"
अप्रैल महीने में अधिकारियों ने लगभग 202 रोहिंग्याओं को ले जाने वाली एक शरणार्थी नाव को ज़ब्त किया था। तब से 31 पुरुषों और 9 महिलाओं को वैध परमिट के बिना नाव से आने से आव्रजन कानूनों का उल्लंघन करने के लिए सात महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई है। उनमें से 20 पुरुषों को जेल की सज़ा के साथ-साथ हर एक को तीन बार बेंत मारने की सजा सुनाई गई जबकि उनमें से 14 नाबालिगों को वर्तमान में अलग से सज़ा सुनाई गई है।
मानवाधिकार वकील 2 लड़कियों सहित 6 किशोरों के ख़िलाफ़ ग़लत तरीक़े से गिरफ़्तारी को लेकर केस लड़ रहे हैं। इन किशोरो को हिरासत में लिए गए वयस्क शरणार्थियों की तरह सज़ा सुनाई गई थी।
मार्च के बाद से मलेशियाई अधिकारी COVID-19 महामारी को लेकर देश में बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों और शरण चाहने वालों पर कार्रवाई करते रहे हैं। शरण चाहने वालों के किसी भी अधिकार को मान्यता नहीं देने वाले मलेशिया में कथित तौर पर रोहिंग्याओं की गिरफ़्तारी और हिरासत में तेज़ी देखी गई है। कई अनुमानों के अनुसार वर्तमान में 1,000 से अधिक शरणार्थियों को अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिया गया है जबकि शरणार्थी से भरे कई नाव समुद्र में फंसी हुई थी
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