क़ैदी, महामारी और सरकार की क्रूरता : कोर्ट को वरवर राव की कविता पढ़नी चाहिए
जेल में बंद क्रांतिकारी कवि वरवर राव कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए हैं। हाल में अखिल गोगोई को भी जेल में कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। उन्हें अब भी बेल का इंतज़ार है। दरअसल पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला है कि कैसे क्रूर राज्य, जिसमें सहानुभूति नाम की चीज नहीं है, वह बुनियादी न्याय देने की तक परवाह भी नहीं करता, जबकि लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने की प्रक्रिया सतत् जारी है।
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बहुत नाटक के बाद, जेल में बंद 79 साल के कवि और सामाजिक कार्यकर्ता वरवर राव को कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद मुंबई के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उन्हें पिछले हफ़्ते ही तलोजा जेल से मुंबई के जेजे हॉस्पिटल में लाया गया था। राव के परिवार वालों द्वारा उनकी गिरती सेहत और स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने पर चिंता जताई थी, इसके बाद मचे हंगामे के बाद वरवर राव को सेंट जॉर्ज लाया गया था। कथित तौर पर राव मई के महीने से बीमार हैं। उस वक़्त भी उन्हें जेजे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन बेल पर सुनवाई होने के पहले उन्हें जल्दबाजी में डिस्चार्ज भी कर दिया गया। राव तेलुगु साहित्य के प्रोफेसर रहे हैं, वे साहित्यिक पत्रिका श्रुजना के संपादक और प्रगतिशील लेखकों के आंदोलन ‘विरासम’ के संस्थापक रहे हैं।
उनकी उम्र को देखते हुए महामारी के दौरान वरवर राव को खास देखभाल की जरूरत थी। अब जब वरवर राव कोरोना संक्रमित हो गए हैं, तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।
जिस तरह से राज्य ने उनके साथ व्यवहार किया है, उसे सभी ने देखा है। उनके मामले में बुनियादी मानवाधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया। ना कोई मानवता दिखाई गई, ना ही कोई सहानुभूति जताई गई। नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी ने तो यहां तक कह दिया कि राव का परिवार महामारी को एक बहाने की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
परिवार वालों ने बताया कि हॉस्पिटल में राव पेशाब से सने बिस्तर पर मिले थे। यह बेहद दिल दुखाने वाला है। उनकी देखभाल करने के लिेए स्टॉफ का कोई भी सदस्य मौजूद नहीं था। जब इस बारे में सवाल किया गया तो हॉस्पिटल प्रशासन ने कहा कि ट्रांजिट वार्ड में कोई इलाज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहां किसी तरह की सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। ऐसा तब है, जब वरवर राव को कई दिन पहले भर्ती करवाया गया था। जब परिवार वालों ने बिस्तर पर पड़ी चादरों को बदलवाने की मांग की, तो उन्हें हॉस्पिटल से निकाल दिया गया।
11 जुलाई को उनके परिवार ने एक प्रेस स्टेटमेंट जारी किया और कहा कि वरवर राव को गिरती सेहत की वजह से देखभाल की जरूरत है। जब परिवार वालों को वरवर राव से फोन पर दो मिनट की बात करने की इज़ाजत मिली, तो राव बेहद बीमार और कमज़ोर समझ में आए। इसलिए उनके परिवार वालों ने "वरवर को जेल में मत मारो (Don't Kill Vara Vara In Jail)" नाम से मुहिम चालू की। भारतीय नागरिक समाज के लिए यह ख़बर एक झटके की तरह आई। इतिहासकार रोमिला थापर और दूसरे लोगों ने महाराष्ट्र सरकार को लिखित अपील में कहा कि कवि को तुरंत स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ दिया जाए।
इसके बाद राव को जे जे हॉस्पिटल में भेज दिया गया था। उन्हें उम्मीद थी कि जेल अस्पताल की तुलना में बाहर के अस्पताल में बेहतर गुणवत्ता की देखभाल हो सकेगी। बॉम्बे हाईकोर्ट में एक रिट पेटिशन दाखिल की गई, इसमें जेल अस्पताल में वरवर राव को अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं दिए जाने का ज़िक्र था। पेटिशन में अस्पताल में गुणवत्ता युक्त स्टॉफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के बारे में बताया गया। लेकिन ऐसा लगता है कि वहां से स्थानांतरित करने के बाद भी राज्य का उनके प्रति लापरवाही भरा रवैया जारी रहा और उनकी देखभाल नहीं की गई।
बता दें वरवर राव अकेले राजनीतिक कैदी नहीं हैं, जिनमें कोरोना का संक्रमण पाए जाने के बाद भी जेल में रखा गया है।
असम के सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई और उनके साथ सहआरोपी बनाए गए लोगों भी कोरोना की पुष्टि हुई है। इन लोगों को अब भी कोर्ट से राहत की आश है। सोमवार को उन्हें नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी के कोर्ट में तीन मामलों में बेल मिल गई, लेकिन दो मामलों में अब भी बेल मिलना बाकी है। गोगोई का मामला एक नज़ीर है, जहां राज्य किसी राजनीतिक कैदी के खिलाफ़ कई FIR दर्ज़ करती है, ताकि उसे हिरासत में बरकरार रखा जा सके, भले ही एक-दो मामलों में बेल मिल जाए। आज इसी का परिणाम है कि कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद इन लोगों की कैद जारी है।
नागरिक समाज समूह, जेलों के कोरोना महामारी का हॉटस्पॉट बनने संबंधी घटनाओं के मद्देनज़र सरकार पर राजनीतिक कैदियों को छोड़ने का दबाव बना रहे हैं।
महाराष्ट्र की जेलों में कोरोना वायरस के मरीज़ बढ़ते ही जा रहे हैं, अब तक 596 कैदी और 167 कर्मचारियों में कोरोना का संक्रमण पाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों की भीड़भाड़ को कम करने और इस संबंध मार्च में ही राज्य सरकारों को एक उच्च स्तरीय कमेटी के गठन का आदेश दिया है। लेकिन सरकारें कार्रवाई करने में देरी कर रही हैं। कोरोना वायरस से संक्रमित हर कैदी और कर्मचारी ने जेल के दूसरे लोगों तक कोरोना का संक्रमण पहुंचाया है।
एलगर परिषद मामले में गिरफ़्तार एक और सामाजिक कार्यकर्ता व वकील वर्नन गोंजालेस जेल अस्पताल में वरवर राव की देखभाल कर रहे थे और अब राव वायरस से जूझ रहे हैं।
एलगर परिषद एक कार्यक्रम था, जो 31 दिसंबर 2017 को हुआ था, जो कोरगांव भीमा की लड़ाई के 200 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। शुरुआती दिनों में हिंदुत्ववादी कार्यकर्ता संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोते ने भीमा कोरेगांव के जश्न पर काला दिवस मनाने की कोशिश की। एक जनवरी 2018 को हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं के भगवा झंडा लेकर उत्सव की जगह पर पहुंच गए। इसके बाद राज्य ने एलगर परिषद में मौजूद कार्यकर्ताओं को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया। राज्य पर आरोप है कि उसने सबूतों से छेड़छाड़ कर "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की साजिश रचने" की बात जानबूझकर गढ़ी।
कैदियों, ख़ासतौर पर ऐसे जिनकी उम्र 50 साल के ऊपर है और जो कई बीमारियों से संक्रमित हैं, उन्हें जेल में कोरोना वायरस फैलने के पहले छोड़ देना चाहिए था। शोमा सेन, आनंद तेलतुम्बड़े और वरवर राव जैसे कार्यकर्ता सरकरा और कोर्ट से अपनी ज़्यादा उम्र और ज़्यादा ख़तरे को देखते हुए जेल से रिहा करने की अपील कर रहे हैं। लेकिन UAPA एक्ट में गिरफ़्तार होने के आधार पर उनकी अपील को ख़ारिज़ कर दिया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार की उच्च स्तरीय कमेटी UAPA में ट्रॉयल पर मौजूद लोगों को बेल पर न छोड़े जाने को अपवाद के तौर पर शामिल किया है। कमेटी ने उनकी उम्र, कोरोना वायरस संक्रमण के लिए पहले से मौजूद ख़तरों को भी नज़रदाज किया।
सामाजिक कार्यकर्ता लगातार राव और उनके जैसे दूसरे लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करने की अपील कर रहे हैं।
बॉक्स में उनकी एक कविता का अनुवाद है, जो एक दक्षिण अफ्रीकी क्रांतिकारी से संबंधित है, जिसे श्वेत सत्ता ने कैद कर लिया था। यह कविता "इंडियन पोएट्री ब्लॉग" से ली गई है, यह कविता क्रांतिकारी कवियों की बहुत बेहतर ढंग से व्याख्या करती है।
कवि: वरवर राव
(साभार-कविता कोश)
जब प्रतिगामी युग धर्म
घोंटता है वक़्त के उमड़ते बादलों का गला
तब न ख़ून बहता है
न आँसू ।
वज्र बन कर गिरती है बिजली
उठता है वर्षा की बूंदों से तूफ़ान।।।
पोंछती है माँ धरती अपने आँसू
जेल की सलाखों से बाहर आता है
कवि का सन्देश गीत बनकर ।
कब डरता है दुश्मन कवि से ?
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हिं
वह कै़द कर लेता है कवि को ।
फाँसी पर चढ़ाता है
फाँसी के तख़्ते के एक ओर होती है सरकार
दूसरी ओर अमरता
कवि जीता है अपने गीतों में
और गीत जीता है जनता के हृदयों में ।
"क्रांतिकारी कवियों को राजद्रोह के चलते जेल में डाला जाता रहा है और उन्हें मौत की सजाएं भी हुई हैं। लेकिन जेल की सलाखों में भी उनके शब्द तैरते रहते हैं और वे लोगों की जिंदा आवाजें बन जाते हैं।"
शायद इस कविता को कोर्ट को सुनाया जाना चाहिए, जिसे उनकी बेल पर सुनवाई करना है।
लेखिका सामाजिक-क़ानूनी शोधार्थी हैं। यह उनके निजी विचार हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
Prisoner, Pandemic and the Apathetic State: Why the Court Should Read Vara Vara Rao’s Poem
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